इतिहासपुरुष अवतार नहीं लेते, अपने कर्मों से बनते हैं. ऐसे लोग अपने जीवनकाल में कुछ ऐसा कर जाते हैं, जिसे आने वाली पीढ़ियां याद रखती हैं, उन्हें नमन करती हैं. जब ऐसे महापुरुषों का जीवन समाज के सबसे ग़रीब और कमज़ोर वर्गों की संघर्ष की कहानी बन जाता है, जो दूसरों के लिए कष्ट उठाता हो, जो अपनी मौत से लड़कर दूसरों की ज़िंदगी संवारता हो, जो मर कर भी बेसहारों का सहारा बन जाता हो. उसे हम मसीहा कहते हैं. वी पी सिंह ऐसे ही लोगों में से हैं.दादरी के किसान खुश हैं. उन्हें न्याय मिला है.
जो लड़ाई वी पी सिंह ने छेड़ी थी, उसका परिणाम आया है. दादरी के मामले पर वी पी सिंह ने न स़िर्फ आंदोलन किया, बल्कि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की. इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया. रिलायंस की दादरी बिजली परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई ज़मीन किसानों को लौटाने का आदेश दिया.
खबर मिलते ही दादरी में दीवाली जैसा माहौल बन गया. गांव वाले पटा़खे फोड़ने लगे. यह जीत स़िर्फ दादरी के किसानों की नहीं, दरअसल देश भर में चल रहे किसान आंदोलन की जीत है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में भूमि अधिग्रहण क़ानून 1894 के तहत धारा 4 की उस नोटिस को ही रद्द कर दिया है, जिसके ज़रिए किसानों की ज़मीन ली गई थी. हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि इस ज़मीन के अधिग्रहण के लिए नए सिरे से किसानों की आपत्तियां मंगाई जाएं. हाईकोर्ट के इस फैसले का प्रभाव देश भर में चल रहे जनांदोलन और किसान आंदोलन पर पड़ने वाला है. आज किसान वी पी सिंह को धन्यवाद दे रहे हैं, जिन्होंने सड़क से लेकर हाईकोर्ट तक किसानों के लिए लड़ाई लड़ी. दादरी के किसान राजा साहब को याद कर रहे हैं, जिन्होंने इन किसानों को यह उम्मीद दिलाई थी कि उन्हें ज़मीन के बदले जो मुआवज़ा मिला है, बहुत ही कम है और वह ज़मीन को वापस दिलाकर ही दम लेंगे.दादरी का मामला 2004 में शुरू हुआ था, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने रिलायंस एनर्जी कंपनी को क़रीब ढाई हज़ार एकड़ ज़मीन गैस से चलने वाला बिजली कारखाना लगाने के लिए दी थी. परियोजना पूरी होने पर यहां दस हज़ार मेगावाट बिजली काउत्पादन होना था. परियोजना के लिए किसानों की ज़मीन छिनी जाने लगी. ज़मीन के बदले जो मुआवज़ा मिल रहा था, वह बहुत ही कम था. यहां के किसान खुद को बिल्कुल असहाय महसूस करने लगे. उन्होंने मदद के लिए हर राजनीतिक दल का दरवाजा खटखटया. जब सभी राजनीतिक दलों ने इन किसानों को दुत्कार दिया, तब ये लोग वी पी सिंह से मिले. वी पी सिंह ने इन किसानों को गले लगाया और यह भरोसा दिलाया कि जब तक ज़मीन वापस किसानों को न मिल जाए, तब तक वह उनके लिए लड़ते रहेंगे. दादरी के किसान वी पी सिंह के किसान मंच के साथ जुड़ गए. उस दौरान सारे लोग कहते थे कि यह एक हारी हुई बाज़ी है और राजा साहब किसानों को भड़का रहे हैं, बेवजह इस मामले को तूल देकर राजनीति कर रहे हैं. वी पी सिंह दूरदर्शी थे, इसलिए उन्हें यह पता था कि यह लड़ाई आने वाले दिनों में देश के किसानों की आवाज़ बनेगी.वी पी सिंह के नेतृत्व में किसानों ने ज़बरन ज़मीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया. डायलिसिस पर जीवित रहने के बावजूद उन्होंने किसानों के सवाल को लेकर न स़िर्फ एक व्यापक आंदोलन छेड़ा, बल्कि किसानों को लामबंद करने में कामयाब रहे. उन्होंने बुंदेलखंड, देवरिया और दादरी जैसे देश के कई इलाक़ों में किसानों के साथ धरना-प्रदर्शन किया. जनमोर्चा और किसान मंच के ज़रिए वी पी सिंह ने इस आंदोलन के साथ रालोद, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, इंडियन जस्टिस पार्टी और कई छोटे-दलों को जोड़ा. हाईकोर्ट के फैसले ने वी पी सिंह द्वारा उठाई गई सभी बातों को सही ठहराया है. यह जीत सही मायने में वी पी सिंह की जीत है.वी पी सिंह की यह लड़ाई राजनीति नहीं थी. यह उनके विश्वास और ग़रीब किसानों के हक़ का सवाल था. वी पी सिंह को इस बात की चिंता थी कि राजनीति पैसेवाले के हाथ की कठपुतली बन चुकी है. वह इस बात को मानते थे कि सरकारी तंत्र के हाथों ग़रीबों को सताए जाने का सिलसिला रुकना चाहिए. उन्हें चिंता थी कि अगर देश के ग़रीब किसान और मज़दूर भड़क गए तो उन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा, पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी. यह उनके विश्वास और निष्ठा की ही शक्ति है, जो कि वह डायलिसिस पर जिंदा रहने के बावजूद 46 डिग्री की गर्मी में किसानों के साथ ज़मीन पर बैठकर धरना-प्रदर्शन किया करते थे. वह देश के अकेले पूर्व प्रधानमंत्री थे, जिन्हें प्रशासन ने ज़िला बदर किया हो. उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके ग़ाज़ियाबाद घुसने पर पाबंदी लगा दी थी. इसके बावजूद पूरे उत्तर प्रदेश में जगह-जगह जाकर वी पी सिंह ने एक सफल जनांदोलन का नेतृत्व किया. वह अपने अंतिम समय तक सेज के नाम पर किसानों की ज़मीन औने-पौने दामों में लिए जाने के खिलाफ आंदोलन करते रहे. 16 साल वह डायलिसिस पर रहकर लगातार आंदोलन और संघर्ष से जुड़े रहे. आज की राजनीति में अगर हम नज़र उठाकर देखें तो जनता के लिए लड़ने वाला ऐसा नेता कोई नहीं है.यही वजह है कि पिछड़ी जातियों, दलितों, वंचितों और अल्पसंख्यकों के वह हमेशा महानायक ही रहे. उन्होंने दादरी के किसानों का सवाल उठाया तो वह देशव्यापी आंदोलन में तब्दील हो गया. भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदलने वाले वी पी सिंह कई वर्षों से किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे, लेकिन उन्होंने किसान आंदोलन का जो बीज बोया है, उसके फलने-फूलने का समय आ गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद देश भर के किसानों की आशा जगी है. आज वी पी सिंह हमारे बीच नहीं हैं. वह जहां कहीं भी होंगे, उनकी आत्मा को खुशी मिली होगी कि किसानों की ज़मीन वापस मिल गई है.