भारतीय सेना देश का गौरव है. गौरव इसलिए है, क्योंकि देश का जवान मौत को चुनता है. सेना में जाने की एक ही क़ीमत है. जब भी युद्ध हो या देश में कहीं भी अशांति हो, सेना का जवान वहां हथियार लिए हुए मुस्तैद रहे. इस प्रोफेशन की यही एक मात्र शर्त है. इसका सीधा मतलब अपनी ख़ुशी से मौत को चुनना है. हमारे देश का वह जवान जो ख़ुशी-ख़ुशी देश की रक्षा के लिए, देश में अमन-चैन के लिए मौत को चुनता है. लेकिन जब वह नौकरी से रिटायर होता है, तो सेना और समाज उसे भटकने के लिए छोड़ देता है. होना यह चाहिए कि जो आदमी देश की रक्षा के लिए मौत को चुने, उसको पेंशन के साथ-साथ सेना या सरकार इस तरह का काम मुहैया कराए, जिससे वह अपनी समस्याओं का हल अपने आप कर सके. उसे किसी के दरवाज़े न जाना पड़े. उसके बच्चों को पढ़ने के लिए परेशानियों का सामना न करना पड़े. जितनी सरकार उसके प्रति उत्तरदायी हो, उतना ही समाज भी उसके प्रति उत्तरदायी हो, पर ऐसा होता नहीं है. अगर उसने कोई ट्रेनिंग कर ली, तो ट्रेनिंग करने के बाद नौकरी की कोई गारंटी नहीं. अगर उसने कोई काम सीखा तो उस काम से पैदा हुए उत्पाद की क़ीमत उसे मिलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है. नतीजे के तौर पर नौजवान जो चालीस साल की उम्र में सेना से रिटायर होता है, अपने बचे हुए चालीस साल वह अपनी ज़िंदगी के दोबारा मायने खोजने में बर्बाद करता है. चूंकि वह बीस साल सेना में लगाकर आता है, तो उसे समाज का कुछ भी पता नहीं होता है, या तो वो दूसरों को निराश कर देता है या फिर क्रोधित हो जाता है. क्रोधित होकर असामाजिक तत्वों को मदद देने लगता है. सेना के जवान में सबसे बड़ा गुण उसका अनुशासन और हथियारों के प्रति उसकी ट्रेनिंग होती है. इन दोनों चीज़ों का फायदा किस तरह से समाज को मिले, इसकी ज़िम्मेदारी सरकार और सेना दोनों की है. यह नौजवान समाज को दिशा दे सकता है. समाज में नए संदर्भ पैदा कर सकता है और उन सारे लोगों को जो सेना में नहीं गए हैं, बुनियादी ट्रेनिंग दे सकता है. लेकिन ऐसा होता नहीं है.
बीते सात मार्च को भारत की सेना ने एक नई पहल की. उसने मोरारका फाउंडेशन द्वारा जवानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देने के प्रस्तावों को मान लिया. एडजुटेंट जनरल नेहरा की अनुपस्थिति में मेजर जनरल मज़ूमदार ने उसपर दस्त़खत किए. इस सहमति पत्र के अनुसार, सेना से रिटायर होने के बाद अगर जवान अपने यहां जैविक खेती करते हैं, तो उस जैविक खेती के उत्पादन को बेचने के लिए उन्हें मंडी नहीं जाना पड़ेगा. अगर वे उत्पादन करते हैं, तो उनके उत्पादन क्षेत्र से या उनके खेत से या उनके दरवाज़े से उस फसल को मोरारका फाउंडेशन ख़रीदेगा और उसे बाज़ार में बेचेगा. मोरारका फाउंडेशन बाज़ार दर से दस प्रतिशत ज़्यादा दाम उस जवान को देगा. अगर सेना इस सहमति पत्र के पक्ष में खड़ी रही और जवानों को मिलने वाले इस लाभ को रोकने की कोशिश नहीं की तो भारत की सेना को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि उसने पहली बार अपने जवानों के लिए एक बड़ा कार्यक्रम निर्धारित किया है. भारत की सेना में एक मोटे अंदाज़ के हिसाब से हर साल 60 से 70 हज़ार जवान रिटायर होते हैं, और उनके सामने बंदूक़ लिए शहर में घरों के आगे से सिक्योरिटी एजेंसिस के गार्ड के रूप में काम करने के अलावा और कोई विकल्प बचता ही नहीं है. कितनी बड़ी विडंबना है कि जो जवान हमारी रक्षा के लिए अपनी जान देने के लिए सीमा पर जाता है, वे जवान रिटायर होने के बाद हमारे दरवाज़े का दरबान बनता है. और उस दरबान को भी घर के सारे काम करने पड़ते हैं, ऐसा न करने पर उसकी नौकरी जा सकती है. अपने पेट के लिए वह रा़ेज अपमानित होता है. सेना को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि सेना ने अपने जवानों के लिए एक बेहतर तरीक़ा सोचा. मोरारका फाउंडेशन जैविक खेती के क्षेत्र में एक अग्रणी संगठन है, जो इस देश के लाखों किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन दे रहा है. इसमें लागत कम आती है और फायदा ज़्यादा होता है. सबसे बड़ा फायदा जैविक विधि से उपजाए गए उत्पाद ज़हर से मुक्त होते हैं, जिनमें अन्न, मसाले, तेल, घी शामिल है. सब्ज़ियां और फल शामिल हैं. देश का हर टेलीविज़न चैनल, हर अख़बार, हर रिसर्च इंस्टीट्यूट यह बता चुका है कि अब हमारे खेतों से आने वाला अन्न, सब्ज़ी ज़हरीली होती है. यह ज़हर इंसेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड के ज़रिये से अन्न में आता है. हमारी बीमारी के साठ प्रतिशत कारण हमारे खाने में छिपे हुए हैं. अगर हमारा खाना अगर शुद्ध हो जाए. इन कीटनाशकों और ख़तरनाक खाद से मुक्त हो जाए, तो हम अपने स्वास्थ्य का, देश के स्वास्थ्य का साठ प्रतिशत ध्यान ख़ुद रख लेंगे, तो डॉक्टरों को फीस देने से बच जाएंगे. इसमें न्यूट्रिशंस भी हैं. मोरारका फाउंडेशन द्वारा किया जाने वाला यह अद्भुत काम एक आंदोलन के रूप में सारे देश में फैल रहा है. इस आंदोलन को चलाने के लिए ऐसे लोग चाहिए, जो अपना काम करते हुए जैविक उत्पादों के इस्तेमाल के लिए अपने पड़ोसी को प्रेरित कर सकें.
सेना की यह पहल सेना से रिटायर होने वाले जवानों को सम्मानजनक जीवन देगी और शान से सिर उठाकर जीने का हौसला देगी, क्योंकि जवान जब अपने खेत में जैविक खेती करेगा तो बाज़ार भाव से दस प्रतिशत अधिक क़ीमत पर उसकी फसल बिकेगी और उसे बेचने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं होगी.
सेना की यह पहल सेना से रिटायर होने वाले जवानों को सम्मानजनक जीवन देगी और शान से सिर उठाकर जीने का हौसला देगी, क्योंकि जवान जब अपने खेत में जैविक खेती करेगा तो बाज़ार भाव से दस प्रतिशत अधिक क़ीमत पर उसकी फसल बिकेगी और उसे बेचने के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं होगी. वह ख़ुद भी स्वस्थ रहेगा और उसके परिवार के सदस्य भी स्वस्थ रहेंगे. अब तक गांव में जिस तरह कीटनाशक और खादों के ज़रिये खेती ज़हरीली होती चली जा रही थी, उसे रोकने का काम यह रिटायर हुआ सिपाही उसी जज़्बे के साथ करेगा, जिस जज़्बे के साथ वह दुश्मन को रोकता है. दरअसल, यह ज़हरीला खाना, यह मिलावटी खाना इतना ख़तरनाक है कि हम पेट से संबंधित, आंत से संबंधित, हाथ-पैर से संबंधित जितनी भी बीमारियां देखते हैं, वे सारी इन खानों की वजह से ही होती हैं. कैंसर का मुख्य कारण आज का खाना है. आज से पचास साल पहले हमारे यहां इतने क़िस्म के कैंसर नहीं थे, जितने आज हैं. इसकी जड़ में स़िर्फ और स़िर्फ आज का खाद्यान्न है. इसलिए मैं इन जवानों को बधाई देता हूं और इन जवानों से पहले मैं सेना को बधाई देता हूं और इससे पहले मैं इन नौजवानों को बधाई देता हूं. सेना ने इस कार्यक्रम को पूरे देश में लागू करने के बारे में सोचा है. जवान अगर इसमें शामिल होंगे और उनके घरवाले उनके रिटायर होने से पहले ही इस प्रक्रिया को अपना लें तो उनके घरवालों को भी मोरारका फाउंडेशन वही सुविधा देना चाहता है, जो सेना से रिटायर होने वाले जवान को मिलने वाली है. इसलिए ऑर्गेनिक खेती यानी जैविक खेती को लेकर किसी संगठन ने पहली बार इतने बड़े पैमाने पर सेना से हाथ मिलाया है. उसे यह आश्वासन दिया है कि वह सेना के सिपाही के रिहब्लिटेशन में अपना सौ प्रतिशत योगदान देंगे. सेना जितने लोगों को कहेगी, फाउंडेशन उतने लोगों को ट्रेनिंग देगा. इन लोगों द्वारा ऑर्गेनिक पद्धति से पैदा किए खाद्यान्नों को कसौटी पर कसेंगे और हर उत्पाद को ख़रीदेंगे. मोरारका फाउंडेशन ने दूसरा अद्भुत काम यह किया है कि सेना को उसने आश्वासन दिया है कि जिन सिपाहियों के पास ज़मीन नहीं है, उन्हें भी वह जैविक खेती की तकनीक बताएगा. इस अद्भुत तकनीक का नाम है ट्रे कल्टीवेशन. मोरारका फाउंडेशन ने ट्रे के भीतर कुछ ऐसी तकनीक अपनाई है कि उस ट्रे से सब्ज़ियां और फल बड़े पैमाने पर पैदा किए जा सकते हैं. अगर किसी के पास ज़मीन नहीं है, लेकिन घर है, उसके घर में कोई बाल्कॉनी या छत है जो अक्सर गांव में होती है, तो वहां पर वह ट्रे में सब्ज़ियां और फल पैदा कर सकता है. वह उसे बाज़ार भेज सकता है. उसका भी माल उस दिन के बाज़ार भाव से दस प्रतिशत ज़्यादा क़ीमत देकर मोरारका फाउंडेशन द्वारा ख़रीद लिया जाएगा. यह भारतीय सेना के लिए एक ऐसा अद्भुत अवसर है, जिसका लाभ उठाकर सेना अपने जवान को नौकरी के बाद भी शान से ज़िंदगी बिताने का मौका दे सकती है. मुझे लगता है, सेना अपने जवानों के हित में ज़रूर इसी तरह के क़दम उठाएगी, ताकि उनके जवान रिटायर होने के बाद समाज में अनुशासन क़ायम कर सेना की इज्ज़त को क़ायम रखें. सेना के इक़बाल को, सेना के शौर्य को और सेना की गरिमा को क़ायम रखें, ताकि लोगों को लगे कि सेना में जाना बहुत ज़रूरी है. अगर सेना में जाएंगे तो अवश्य हमारे संपूर्ण भविष्य के लिए और हमारे परिवार के अच्छे भविष्य के लिए नए रास्ते खुलेंगे. सेना के उस अच्छे काम के लिए आ़खिर में एक बार फिर बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि सेना से रिटायर हुए जवान इस सहमति पत्र के आधार पर सेना और मोरारका फाउंडेशन द्वारा उठाए गए क़दमों का फायदा उठाएंगे और सम्मान के साथ अपने गांव में रहकर जीवन यापन करेंगे तथा समाज में एक नए नेतृत्व का विकास करेंगे, जो नेतृत्व अनुशसित भी होगा और कल्पनाशील भी.