सरकार आईएसआईएस का प्रचार कर रही है

Santosh Bhartiyaआईएसआईएस देश में इतनी चर्चा का विषय कभी भी नहीं था. लेकिन अब आईएसआईएस या संक्षेप में आईएस यानी इस्लामिक स्टेट चर्चा का विषय बना हुआ है. टेलीविजन चैनल और भारत सरकार आईएस की चर्चा को तेजी के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. लोगों के मन में एक डर पैदा हो रहा है कि क्या हमारे देश में भी कुछ अफ्रीकी देशों की तरह या इराक और सीरिया की तरह आईएस के हमले प्रारंभ हो जाएंगे. यह डर इसलिए बैठ रहा है, क्योंकि भारत सरकार इस डर को समाप्त नहीं कर रही है, बल्कि तेजी के साथ इसे आगे बढ़ा रही है.

मुझे अच्छी तरह याद है, जब कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियां प्रारंभ हुई थीं, उस समय यह कहा जा रहा था कि कश्मीरी लड़ाके, कश्मीरी युवक इन आंतकवादी समूहों में शामिल नहीं हैं, बल्कि अफगानिस्तान से आए हुए विदेशी आतंकी इसमें शामिल हैं और वे कश्मीर में हत्याकांड भी कर रहे हैं, वे बमों के धमाके भी कर रहे हैं और लोगों को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. उस समय मीडिया जब विदेशी कहता था तो वे पाकिस्तानी नहीं होते थे. हालांकि हमारे लिए पाकिस्तान भी विदेश ही है. लेकिन मीडिया में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोगों के अलावा जो लोग होते थे, वे चाहे अफगानिस्तान के हों या किसी और देश के, उन्हें विदेशी कहा जाता था. ये अलग बात है कि ऐसे बहुत कम लोग उस समय जिंदा या मुर्दा पकड़े गए, जिन्हें हम विदेशी कहते हैं या पाकिस्तान के अलावा किसी दूसरे देश का नागरिक मानते हैं. इसके बावजूद मैं उस दौैर को याद करता हूं, तो हमारे देश में तेजी के साथ यह कल्पना होती थी कि विदेशी लड़ाके आतंकवादी बनकर हिंदुस्तान को तबाह करने के लिए आ चुके हैं और वे कश्मीर से धीरे-धीरे आगे बढ़ेंगे.

जब वह चर्चा ख़त्म हुई, तब एक दूसरी चर्चा शुरू हो गई है. अचानक सीरिया और इराक में लड़ाई के जिम्मेदार इस्लामिक स्टेट नाम के संगठन की चर्चा तेजी से शुरू हो गई है. उदाहरण के रूप में कहा जा रहा है कि कश्मीर में लोग आईएस की शर्ट पहने या आईएस का झंडा भीड़ में दिखाते हुए देखे जा सकते हैं. यहीं पर सरकार का रोल आता है कि क्या सरकार के पास इतनी खुफिया एजेंसियां होते हुए, इतनी लॉ इंफोर्समेंट एजेंसीज के होते हुए, क्या आईएसआईएस के समर्थक या उनका प्रचार करने वाले लोग हिंदुस्तान में आसानी से रह सकते हैं? यहां दो स्थितियां हो सकती हैं, एक तो सचमुच उनमें विश्वास करने वाले लोग हों या फिर दूसरे ऐसे लोग, जो सरकार को चिढ़ाने के लिए आईएसआईएस की शर्ट या आईएसआईएस का झंडा कहीं पर भी दिखाएं और फिर गायब हो जाएं. सरकार के खिलाफ एक मनोविज्ञान होता है और वह मनोविज्ञान है, जब आप किसी से नफरत करते हैं या किसी को अपनी बात ज्यादा गंभीरता से सुनाना चाहते हैं, तो आप उसे चिढ़ाते हैं. आईएस के नाम से जगह-जगह दिखने वाले झंडे और टी-शर्ट भारत सरकार को चिढ़ाने का हिस्सा तो नहीं है, जिसे भारत सरकार आईएस की आहट के रूप में देश को दिखा रही है? मेरा अपना मानना है कि हिंदुस्तान में होनेवाली वे सारी घटनाएं, जिनमें बम धमाके  होते हैं, जिनमें गोलियां चलती हैं या जिनमें जन-धन की हानि होती है, वे सारी चीजें हमारी अपने काउंटर इंटेलीजेंस सिस्टम की असफलता है. हमारी पुलिस, हमारी इंटेलीजेंस यूनिट्‌स की असफलता है और चूंकि हमारी पुलिस और इंटेलीजेंस यूनिट्‌स किसी भी ऐसे केस को वर्कआउट नहीं कर पातीं, इसलिए उन्हें एक नए बहाने की जरूरत है और वह बहाना अब आईएस के रूप में उन्हें मिल चुका है. अब सारे देश में आईएस का संभावित हमला, उसलेकर नई रणनीति बनेगी, नई योजनाएं बनेंगी, आईएस के नाम पर नये खर्चे होंगे, लेकिन आईएस को रोकने की अगर कोई गंभीर कोशिश हो सकती है, तो वह कोशिश शायद नहीं होगी. अब तक तो ऐसा ही देखा गया है.

मुझेे सारी तकनीक और उन सारे देशों के ऊपर, जो सीरिया और इराक में आईएस को रोकने के लिए बमबारी कर रहे हैं, थोड़ा सा संदेह है. अब आपके पास ऐसे-ऐसे जासूसी उपकरण और उपग्रह हैं, जहां से बैठकर आप मथुरा की एक गली में रखी हुई किसी वस्तु की फोटो खींच सकते हैं. ये उपग्रह इराक और सीरिया में आईएस के ट्रेनिंग कैंपों की फोटो क्यों नहीं खींचते, ये उपग्रह आईएस के लड़ाकों को ले जाने वाले काफिले की फोटो क्यों नहीं खींचते और ये आईएस के हेडक्वार्टर्स की सटीक जानकारी क्यों नहीं देते? इराक और सीरिया में निर्दोष नागरिक ज्यादा मारे जा रहे हैं और उन निर्दोष नागरिकों में इन हमलों की वजह से होने वाली मौतों को लेकर जबरदस्त रोष और गुस्सा है. और वे लोग आईएस के लड़ाकों के समर्थन में खड़े हो रहे हैं. कोई भी हमला सटीक जगह पर हो, तो किसी को परेशानी नहीं, लेकिन जब कोई हमला सटीक जगह पर न होकर निर्दोष लोगों के ऊपर होता है, तो फिर परेशानी पैदा हो जाती है.

मैं एक चीज और बताऊं. हिंदुस्तान के तकनीकी संस्थानों में पढ़ने वाले लड़कों के बीच में आईएस अपनी वैचारिक घुसपैठ बढ़ाता जा रहा है, जो सच में चिंता की बात है. मुझसे कुछ लोगों ने कहा कि 20, 22, 24 साल के लड़के, जो इंजीनियर हैं, डॉक्टर हैं, उन सबके बीच में आईएस की वैचारिक धारा तेजी से फैल रही है और इसमें हर धर्म के लोग शामिल हैं. पश्चिम के देशों से वैचारिक धरातल का फैलाव अब हमारे देश में भी पहुंच गया है. इस चुनौती का सामना न सरकार कर रही है और न वे संगठन कर रहे हैं, जो आईएस की विचारधारा को हिंदुस्तान के लिए गलत मानते हैं. उल्टे हो यह रहा है कि इस देश में जिस तरह से टेलीविजन के ऊपर आईएस की वीडियो फुटेज दिखाई जा रही है, वो सारे वीडियो फुटेज आईएस को हिंदुस्तान में ग्लैमराइज कर रहे हैं. खबर दिखाना एक बात है और आईएस के द्वारा जारी वीडियो फुटेज को दिखाना बिल्कुल दूसरी बात. हमारे यहां हम खबर नहीं दिखाते, हम आईएस के द्वारा जारी वीडियो फुटेज को दिखाकर इस देश में आईएस का खौफ पैदा कर रहे हैं. इस खौफ को बढ़ाने में अगर सरकार जिम्मेदारी नहीं कबूलती, तो सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है. दूसरी तरफ टेलीविजन चैनल जिम्मेदारी समझना ही नहीं चाहते. उन्हें लगता है कि जितना वीभत्स, जितना ग्लैमराइज करने वाला वीडियो फुटेज वे टेलीविजन पर दिखाएंगे उतनी ही उनकी वाहवाही होगी.

मैं आईएस के बारे में ज्यादा न लिखकर सिर्फ सरकार से इतना कहना चाहता हूं कि आप अपनी इंटेलीजेंस एजेंसीज को, यूनिट्‌स को, लॉ इंफोर्समेंट एजेंसीज को थोड़ा मजबूत कीजिए. उन्हें मोटीवेट कीजिए. उन्हें नई तकनीक की जानकारी दीजिए और ऐसे हादसों से कैसे निपटा जाए, यह उन्हें सिखाइए, जो नहीं हो रहा है. इसलिए बजाय आईएस को ग्लैमराइज करने के या बजाय इसके कि आप सारी जिम्मेदारी आईएस के ऊपर डाल दें और अपने हाथ झाड़ लें कि ये तो अंतरराष्ट्रीय समस्या है, इसमें हम क्या कर सकते हैं, इससे देश का भला नहीं होने वाला. देश का भला करने वाली सरकार को चारों तरफ लड़ना पड़ता है. चाहे वह लड़ाई अंदर की विचारधारा से हो या बाहर की विचारधारा से, उसको विचार से ही परास्त करना पड़ता है. किसी भी विचारधारा को हथियार से परास्त नहीं किया जा सकता. विचारधारा को विचारधारा से ही परास्त करना चाहिए और अब यही चुनौती न केवल सरकार के सामने है, बल्कि उनके सामने भी है, जो मानवता में विश्वास करते हैं.


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