अखिलेश यादव के एक बयान ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी. अखिलेश समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और मुलायम सिंह यादव के पुत्र. डी पी यादव को पार्टी में न लेने की घोषणा ने उनकी पार्टी में भी मतभेद पैदा किए और उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा को कॉर्नर पर खड़ा कर दिया. आम तौर पर माना जाता है कि अगर यह फैसला मुलायम सिंह को लेना होता तो वह संभवत: डी पी यादव को पार्टी में लेने के लिए हरी झंडी दे देते, लेकिन अखिलेश यादव ने निजी तौर पर यह फैसला लिया और यह फैसला उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की राय के खिला़फ लिया. आजम खान घोषणा कर चुके थे कि डी पी यादव समाजवादी पार्टी में शामिल कर लिए गए हैं. आज़म खान ने शायद यह सोचा होगा कि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव मुसलमानों के समर्थन के लिए इतने ज़्यादा लालायित हैं कि वे उनके किसी भी बयान का खंडन नहीं करेंगे, पर अखिलेश यादव ने तत्काल कहा कि डी पी यादव पार्टी में नहीं लिए जाएंगे.
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहन सिंह को लगा कि अखिलेश यादव पार्टी में ताक़तवर हो रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि ठीक है, यह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का फैसला है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व यह फैसला करेगा कि डी पी यादव को पार्टी में लिया जाए या न लिया जाए. मोहन सिंह के इस बयान को 12 घंटे भी नहीं बीते थे कि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से हटा दिया. ये घटनाएं बताती हैं कि उत्तर प्रदेश में लोगों का अपराधियों या दागी लोगों के प्रति जिस तरह का रुझान है, उसे देखते हुए अखिलेश यादव ने यह फैसला लिया. अखिलेश यादव ने एक तरफ यह फैसला लिया और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी में भूकंप आ गया. बाबू सिंह कुशवाहा और बादशाह सिंह को गुपचुप तरीके से, उत्तर प्रदेश भाजपा की ग़ैर जानकारी में, दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के घर पर भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर लिया गया. इसमें राजनाथ सिंह ने मुख्य भूमिका निभाई. बाबू सिंह कुशवाहा भ्रष्टाचार के आरोप में बसपा से निकाले गए. उन पर पिछले चार सालों से यह आरोप लग रहे थे कि वह दोनों हाथों से पैसे लूट रहे हैं और यह पैसा वह मायावती के नाम पर ले रहे थे कि उन्हें पैसा मायावती को पहुंचाना है.
बाबू सिंह कुशवाहा भ्रष्टाचार के आरोप में बसपा से निकाले गए. उन पर पिछले चार सालों से यह आरोप लग रहे थे कि वह दोनों हाथों से पैसे लूट रहे हैं और यह पैसा वह मायावती के नाम पर ले रहे थे कि उन्हें पैसा मायावती को पहुंचाना है. चाहे नोएडा हो या आगरा, उत्तर प्रदेश का कोई कोना हो, कहीं पर भी कोई कॉरपोरेशन अगर कोई डील करता था तो बिल्डर्स से कहा जाता था कि बाबू सिंह कुशवाहा से बात करके आओ.
चाहे नोएडा हो या आगरा, उत्तर प्रदेश का कोई कोना हो, कहीं पर भी कोई कॉरपोरेशन अगर कोई डील करता था तो बिल्डर्स से कहा जाता था कि बाबू सिंह कुशवाहा से बात करके आओ. बाबू सिंह कुशवाहा के घर पर डील होती थी और बिल्डर्स एक बड़ा कमीशन मुख्यमंत्री मायावती के नाम पर बाबू सिंह कुशवाहा को दे देते थे. किसी ने भी आज तक पैसा मायावती को अपने हाथ से नहीं दिया, लेकिन बाबू सिंह कुशवाहा अवश्य मायावती के नाम पर पैसे लेते रहे. बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में शामिल करने का फैसला भाजपा के गले की हड्डी बन गया. एक तरफ सुषमा स्वराज एवं अरुण जेटली इस फैसले से भन्ना गए, वहीं लालकृष्ण आडवाणी को लगा कि उनकी भ्रष्टाचार विरोध की सारी यात्रा उत्तर प्रदेश के नेताओं ने मटियामेट कर दी. जैसा भी माहौल उन्होंने बनाया, उसे उत्तर प्रदेश के नेताओं ने जानबूझ कर बिगाड़ दिया. भाजपा को आनन-फानन में यह घोषणा करनी पड़ी कि वह बाबू सिंह कुशवाहा को टिकट नहीं देगी, जबकि उन्हें चुनाव लड़ाने के नाम पर ही पार्टी में लाया गया था.
दरअसल, यह स्थिति बताती है कि राजनीति में हम कितने नीचे स्तर पर आ गए हैं. सीट लेने के लिए हम किसी को भी अपनी पार्टी में शामिल कर सकते हैं, चाहे उस आदमी की साख शून्य हो गई हो. भारतीय जनता पार्टी ने कुल्हाड़ी के ऊपर अपना पैर मार दिया, अब ऐसा कहा जा सकता है. अन्ना हजारे के आंदोलन का समर्थन करना, परोक्ष में यह घोषणा करना कि अन्ना हजारे के आंदोलन के पीछे हमने ही सारे देश में लोगों को भ्रष्टाचार के खिला़फ तैयार किया. उसके बाद लोकसभा में अन्ना हजारे के क़दमों का चालाकी से समर्थन करना और अब जब परीक्षा का व़क्त आया तो सबसे पहले अन्ना हजारे के सिद्धांतों को लात मारकर भ्रष्टाचारियों को गले लगा लेना और यह कहना कि हम गंगा हैं, जो भी इसमें नहाएगा, वह पवित्र हो जाएगा. यानी जितने भ्रष्टाचारी हैं, वे अगर भाजपा की गंगा में चले जाएं तो पवित्र हो जाएंगे. यह सब आखिर क्या साबित करता है. इस बयान को सुनकर गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय एवं रज्जू भैया की आत्माएं रो रही होंगी. भारतीय जनता पार्टी के लोग मानते हैं कि आत्मा होती है. अगर आत्मा होती है तो वह जार-जार रो रही होगी. मैं निश्चित रूप से यह मानता हूं कि अटल बिहारी वाजपेयी इस खबर को सुनकर अपने कमरे में अकेले बैठे आंसू बहा रहे होंगे.
भाजपा ने अपने मृत इतिहास पुरुषों का तो अपमान किया ही, अभी उसके पास एक मात्र व्यक्तित्व लालकृष्ण आडवाणी हैं, उनकी भी आशाओं को धो दिया गया. भारतीय जनता पार्टी को इसका खामियाज़ा और कोई नहीं, उसके मतदाता ही शायद चुकाने का मौका दें, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के मतदाताओं को उसका यह तरीका, यह क़दम कतई पसंद नहीं आया. मजे की बात यह कि लोगों की इतनी राय जानने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी बाबू सिंह कुशवाहा पर बेशर्मी से तीन-तीन दिनों तक मीटिंग कर रही है. भाजपा में भ्रष्टाचारियों को लें या न लें, इसके लिए भारतीय जनता पार्टी की सेंट्रल कमेटी या केंद्रीय नेता तीन-तीन दिनों तक बैठकर बातें कर रहे हैं. कमाल है भारतीय जनता पार्टी! यह भारतीय जनता पार्टी दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की भारतीय जनता पार्टी नहीं है. यह भारतीय जनता पार्टी नितिन गडकरी और बाबू सिंह कुशवाहा की भारतीय जनता पार्टी है. उत्तर प्रदेश के लोगों की आंखें इस घटना से खुल जानी चाहिए और उन्हें इसके लिए इसे सबक सिखाना चाहिए, ताकि आगे से राजनीति में ऐसे लोगों को रोकने की संभावना खड़ी हो जाए, जो बेशर्मी के साथ न केवल भ्रष्टाचार करते हैं, बल्कि लाठी, डंडे और गोली की सियासत करना चाहते हैं. इलेक्शन कमीशन या सरकार का रोल कम है, आम आदमी के वोट का रोल बहुत ज़्यादा है.इसलिए ऐसे क़दम उठाने और ऐसी सियासत करने वालों के खिला़फ अगर किसी का सबसे बड़ा हस्तक्षेप हो सकता है तो वह उत्तर प्रदेश की जनता का हो सकता है और उत्तर प्रदेश की जनता यह हस्तक्षेप करेगी, ऐसा मेरा मानना है.