जनता को अखिलेश से बहुत उम्मीदें हैं

jab-top-mukabil-ho1उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दो फैसलों पर उनकी आलोचना हो रही है. पहला फैसला उत्तर प्रदेश में शाम सात बजे केबाद बाज़ारों और मॉल को बिजली न देना और दूसरा फैसला, जिसमें उन्होंने विधायकों को विकास निधि से कार खरीदने की अनुमति दी थी. मुख्यमंत्री के ये दोनों फैसले आलोचना का विषय ज़रूर बनते, लेकिन मुख्यमंत्री ने दोनों ही फैसलों को लागू होने के 24 घंटे के अंदर वापस ले लिया. जब उन्होंने इन फैसलों को वापस लिया तो कहा गया कि अखिलेश यादव कमज़ोर मुख्यमंत्री हैं. कमज़ोर मुख्यमंत्री शायद इसलिए कहा गया कि उन्होंने फैसले वापस ले लिए. मुझे लगता है कि जिन्होंने अखिलेश यादव को कमज़ोर मुख्यमंत्री कहा, उनके दिमाग़ में कोई शैतानी रही होगी. उनकी चाहत रही होगी कि अखिलेश यादव इन फैसलों पर बने रहते, ताकि उत्तर प्रदेश में उनके खिला़फ अशांति, आलोचना और आंदोलन का माहौल बनाया जा सकता. लेकिन अखिलेश यादव ने समझदारी का काम किया. अखिलेश यादव की समझदारी एक अच्छे राजनेता की समझदारी कही जा सकती है. अच्छा राजनेता और अच्छी सरकार वही कही जाती है, जो लोगों की आलोचनाओं से सीख ले, और लोगों की मांग और इच्छाओं के आधार पर फैसले ले. जब अखिलेश यादव के बिजली न देने के फैसले की आलोचना हुई, तो उन्होंने उसे वापस ले लिया. वैसे ही जैसे कार खरीदने का फैसला लोगों की आलोचना का कारण बना, उन्होंने फैसला वापस ले लिया. एक ज़िम्मेदार सरकार को यही करना चाहिए था. अखिलेश यादव ऐसे लोगों की साज़िश में नहीं फंसे, जो यह चाहते थे कि अखिलेश यादव फैसले पर बने रहें. इसे मैं उनकी समझदारी मानता हूं.

अखिलेश यादव को सावधानी बरतनी चाहिए और समझना चाहिए कि उनके सामने चुनौतियां क्या हैं. उन्हें एकांत में बैठकर उन बिंदुओं को रेखांकित करना चाहिए, जिनकी वजह से भूतपूर्व मुख्यमंत्री मायावाती को नापसंद किया गया और अखिलेश यादव को पसंद किया गया. सिद्धांत:, यह कह सकते हैं कि समाजवादी पार्टी को पसंद किया गया. लेकिन वास्तविकता यह है कि समाजवादी पार्टी से ज़्यादा पसंद अखिलेश यादव का अपीयरेंस, उनकी बातें, उनके चेहरे का भोलापन और उनकी बातों में छिपे हुए विकास के नए संदेश को लोगों ने पसंद किया. इसलिए कह सकते हैं कि मायावती के मुक़ाबले लोगों ने अखिलेश यादव के वायदों को पसंद किया. अगर अखिलेश यादव अंडरलाइन करेंगे कि क्यों लोगों ने उन्हें पसंद किया, तो उन्हें अपने लिए एक रोडमैप दिखाई देगा. अगर अखिलेश यादव उस रोडमैप पर चलेंगे तो फिर अखिलेश यादव को इस तरह के फैसले लेने से बचने में सुविधा होगी. अखिलेश यादव को, अब जब वह मुख्यमंत्री बन गए हैं, इसलिए समझदारी दिखानी चाहिए, क्योंकि लोगों को उनसे अपेक्षाएं बहुत ज़्यादा हैं.

अखिलेश यादव को सावधानी बरतनी चाहिए और समझना चाहिए कि उनके सामने चुनौतियां क्या हैं. उन्हें एकांत में बैठकर उन बिंदुओं को रेखांकित करना चाहिए, जिनकी वजह से भूतपूर्व मुख्यमंत्री मायावाती को नापसंद किया गया और अखिलेश यादव को पसंद किया गया. सिद्धांत:, यह कह सकते हैं कि समाजवादी पार्टी को पसंद किया गया. लेकिन वास्तविकता यह है कि समाजवादी पार्टी से ज़्यादा अखिलेश यादव का अपीयरेंस, उनकी बातें, उनके चेहरे का भोलापन और उनकी बातों में छिपे हुए विकास के नए संदेश को लोगों ने पसंद किया. इसलिए कह सकते हैं कि मायावती के मुक़ाबले लोगों ने अखिलेश यादव के वायदों को पसंद किया. अगर अखिलेश यादव अंडरलाइन करेंगे कि क्यों लोगों ने उन्हें पसंद किया, तो उन्हें अपने लिए एक रोडमैप दिखाई देगा. अगर अखिलेश यादव उस रोडमैप पर चलेंगे तो फिर अखिलेश यादव को इस तरह के फैसले लेने से बचने में सुविधा होगी. अखिलेश यादव, अब जब वह मुख्यमंत्री बन गए हैं, इसलिए उन्हें समझदारी दिखानी चाहिए, क्योंकि लोगों को उनसे अपेक्षाएं बहुत ज़्यादा हैं. चूंकि अपेक्षाएं बहुत ज़्यादा हैं, इसलिए अखिलेश यादव की असफलता के खतरे भी बहुत ज़्यादा हैं. उन्हें कोई ऐसा जुआ नहीं खेलना चाहिए, जिससे यह लगे कि वह फैसले लेने में जल्दबाज़ी दिखाते हैं या वह लोगों के कहने पर फैसले ले लेते हैं. इससे सरकार की साख नहीं गिरती, बल्कि साख सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे लोगों की गिरती है, चाहे वे मुख्यमंत्री हों या प्रधानमंत्री. अखिलेश यादव को लोग इसी नज़र से जांचेंगे और परखेंगे.

अखिलेश यादव को सबसे ज़्यादा सावधानी फैसले लेने में इसलिए दिखानी चाहिए, क्योंकि उत्तर प्रदेश विकास के रास्ते पर बहुत पहले रुक चुका है, उस रुकी हुई गाड़ी को त़ेजी से चलाने में एक बड़ा डर यह है कि गाड़ी डिरेल न हो जाए. और डिरेल होने का एक ब़डा कारण है ब्यूरोक्रेसी, जो नीतियों का पालन कराती है. भ्रष्टाचार उस गाड़ी को रोकने में एक बड़े रोड़े का काम करता है. अखिलेश यादव कई सारी नई परंपराएं डाल सकते हैं. अगर वह विकास के काम की ज़िम्मेदारी तय करें और हर तीसरे महीने इस बात की समीक्षा करें कि किसकी वजह से सरकार द्वारा लिए फैसले क्रियान्वित नहीं हो पाए और अगर उस शख्स को चिह्नित कर सज़ा दें तो मेरा मानना है कि उत्तर प्रदेश में विकास का रुका हुआ पहिया शायद चल पड़े. अखिलेश यादव बदले की कार्यवाही नहीं कर रहे हैं, यह स्वागत योग्य है. फैसलों को देखने का नज़रिया विकसित करना बहुत ज़रूरी है. किस फैसले का असर समाज के ग़रीब और कमज़ोर तबक़ों पर पड़ता है और अगर वह फैसला ग़रीब और कमज़ोर तबक़ों को ताक़त नहीं देता, उन्हें रोटी नहीं देता, उन्हें रोज़गार नहीं देता तो वह फैसला लोगों के हित का फैसला नहीं है. ऐसे फैसले लेने से बचना चाहिए. अखिलेश यादव से उत्तर प्रदेश के ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोगों को एक बड़ी अपेक्षा है, और खासकर उन लोगों को सबसे ज़्यादा अपेक्षा है जो नौजवानों को सत्ता में देखना चाहते हैं. अखिलेश यादव की समझदारी, अखिलेश यादव की फैसला लेने की क्षमता, अखिलेश यादव की जनता के मंसूबों को समझने की इच्छा सब कसौटी पर है. और सबसे बड़ी कसौटी पर है यह सवाल कि क्या नौजवान मुख्यमंत्री प्रदेश के विकास के लिए फैसले ले सकते हैं? क्योंकि अगर अखिलेश यादव असफल होते हैं तो देश में एक संदेश जाएगा कि नौजवानों के हाथों में सत्ता नहीं दी जानी चाहिए और अगर अखिलेश यादव सफल होते हैं तो दूसरा संदेश यह जाएगा कि नौजवानों के हाथ में ही सत्ता देनी चाहिए और जिन्हें देश का भविष्य कहते हैं, उन्हें ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराना चाहिए. अखिलेश यादव के लिए उत्तर प्रदेश में स़डकें, पीने का पानी, छोटे-छोटे उद्योग और उनकी मार्केटिंग की रणनीति बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए. जातीय वैमनस्य न ब़ढे, इस पर अगर कोई सबसे कारगर ढंग से ध्यान दे सकता है, तो वह अखिलेश यादव ही हैं.

अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने, तब उनसे लोगों ने अपेक्षा की थी कि उत्तर प्रदेश का लॉ एंड ऑर्डर अच्छा हो. अभी तक उत्तर प्रदेश में यह दिखाई दे रहा है कि क़ानून व्यवस्था पर लगाम लगाने की कोशिश हो रही है. अखिलेश यादव को इस क़ानून व्यवस्था को अपनी निजी ज़िम्मेदारी मानना चाहिए और उन्हें हर उस जगह प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए, जहां क़ानून व्यवस्था खराब होती दिखाई दे और इसके लिए भी ज़िम्मेवारी उन्हें तय करनी चाहिए. शासन में मंत्री की ज़िम्मेदारी, ब़डे नौकरशाहों की ज़िम्मेदारी और उनका अनुपालन करने वाले छोटे कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी अत्यावश्यक है. अखिलेश यादव को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ज़िम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया में ऐसा न हो कि उच्च स्तर पर अनुचित फैसला किया गया हो, फिर ध्यान न दिया गया हो, लेकिन सज़ा किसी छोटे कर्मचारी को देकर बचने का रास्ता निकाल लिया गया हो.

दरअसल, अखिलेश यादव बहुत कम उम्र में मुख्यमंत्री बन गए हैं. कम उम्र में मुख्यमंत्री बनना उनके लिए खतरनाक है, लेकिन इस स्थिति को अवसर में बदलना भी अखिलेश यादव के हाथ में है. अगर अखिलेश यादव सफल मुख्यमंत्री साबित होते हैं, अगर अखिलेश यादव सबको साथ लेकर चलते हैं, अगर अखिलेश यादव ऐसे फैसले लेते हैं, जिससे आम जनता खासकर ग़रीब और कमज़ोर जनता को, बिना जातीय भेदभाव के फायदा मिले तो अखिलेश यादव के लिए देश के सर्वोच्च पद पर जाने के रास्ते खुल जाएंगे. उत्तर प्रदेश के लोग चाहेंगे कि अखिलेश यादव अगले दो-तीन चुनाव तक उनके मुख्यमंत्री बनें और अगर उन्होंने उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदली तो फिर लोग चाहेंगे कि अखिलेश यादव देश के प्रधानमंत्री पद की तऱफ जाएं. यह तभी संभव है, जब अखिलेश यादव स्वयं अपने लिए सावधानियां तय करें, स्वयं अपने लिए रोडमैप बनाएं और स्वयं अपने लिए मानक निर्धारित करें कि उन्हें तीन महीने में इतना काम करना है और फिर अगले तीन महीने में इतना आगे जाना है. अगर अखिलेश यादव ने यह सोचा कि वह चार साल तक अपने साथियों के दिमाग़ से चलेंगे और पांचवें साल अपने दिमाग़ से चलेंगे तो अखिलेश यादव को पांचवां साल मिलना मुश्किल हो जाएगा. अभी तक के फैसले यह बताते हैं कि अखिलेश यादव जनता की चाह, जनता की आकांक्षा, जनता की नब्ज़ को ध्यान में रख रहे हैं. अगर अखिलेश यादव अपनी इस सोच पर डटे रहे तो हमें उत्तर प्रदेश के लिए ऐसा मुख्यमंत्री मिल जाएगा, जो उत्तर प्रदेश के संपूर्ण विकास के लिए नए रास्ते खोलेगा.


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