लोकसभा और राज्यसभा में एक दिन का शोरशराबा और बात ख़त्म. केवल रस्म अदायगी हुई. एक पत्रिका ने छापा कि भारत सरकार की एक एजेंसी फोन टेप कर रही है. नाम आए, नीतीश कुमार और दिग्विजय सिंह के. पर यह सतही सच्चाई है. यह हमारा ध्यान बंटाने की सफल कोशिश हुई है. साजिश बहुत गहरी है, जिसके सिरे न्यायाधीशों, राजनीतिज्ञों और पत्रकारों तक पहुंचते हैं. हमने जनवरी में लिखा था कि पैंतीस लोग विदेशी ख़ु़फिया एजेंसी के निशाने पर हैं. इनमें भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों के नेताओं के साथ कुछ जुझारू पत्रकारों के भी नाम हैं. इनकी साख ख़त्म करने की पूरी योजना बनाई जा चुकी है. अब इनसे जुड़ी झूठी कहानियों का हम इंतज़ार कर रहे हैं, जो हमारे सामने एक नए खुलासे के रूप में पेश की जाएंगी. यह झूठ सच के नाम पर इस तरह से पेश होने वाला है कि लोगों के मन में संदेह पैदा कर दे.
लोकसभा में जब सरकार कहती है कि उसने टेलीफोन टेप करने का आदेश नहीं दिया तो वह सही कहती है. यह काम तो उसकी जानकारी के बिना विदेशी एजेंसियां कर रही हैं और समय-समय पर, ज़रूरत पड़ने पर भारतीय एजेंसियों को इन्हें मुहैया कराती रहती हैं. इन एजेंसियों के निशाने पर कोई भी राजनेता या पत्रकार हो, ज़्यादा फर्क़ नहीं पड़ता, पर यहीं राहुल गांधी के कंप्यूटर का डाटा, उनके ईमेल, उनकी बातचीत कहीं और रिकॉर्ड हो रही हो तो?
इस सारी योजना का दु:खद पहलू यह है कि दो बड़ी विदेशी एजेंसियों की मदद हमारे देश के ही कुछ लोग कर रहे हैं, जिन्हें इसके बदले बड़ी रकम मिलती है. ये दो विदेशी एजेंसियां हैं सीआईए और मोसाद. दोनों ही भारत को पूरी तरह पश्चिमी देशों की पुलिस चौकी में तब्दील कर देना चाहती हैं. ये दोनों एजेंसियां भारतीय एजेंसियों को ट्रेनिंग भी दे रही हैं और उन्हें समय-समय पर ख़ु़फिया सूचनाएं भी उपलब्ध करा रही हैं. दोनों ने अपना कार्यक्षेत्र बांट रखा है. सीआईए चीन को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाती है, जबकि मोसाद पाकिस्तान, ईरान और अ़फग़ानिस्तान को ध्यान में रखकर. देश में होने वाले कई बम विस्फोट आतंकवादी करते हैं, लेकिन कई विस्फोट ये एजेंसियां भी कराती हैं. एक प्रमुख ख़ु़फिया अधिकारी ने बताया है कि मालेगांव विस्फोट सीआईए और मोसाद द्वारा प्रायोजित था. 12 अप्रैल 2008 को सीआईए और मोसाद ने भोपाल के श्रीराम मंदिर में एक मीटिंग भी की थी, जिसमें रॉ और आईबी के कई पूर्व और वर्तमान अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया था. इसकी जानकारी उच्च ख़ु़िफया अधिकारियों को है, लेकिन कितनी जानकारी उन्होंने प्रधानमंत्री को दी है, कहा नहीं जा सकता. कुछ पत्रकारों पर शक़ है कि वे सीआईए और मोसाद के लिए सूचनाएं इकट्ठा कर रहे हैं. पत्रकार अगर अपने पेशे से गद्दारी करे तो अच्छा इन्फॉरमर बन जाता है, क्योंकि उसकी पहुंच आसानी से सूचना और निर्णय करने वाले केंद्रों तक होती है. साउथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक के दरवाजे आसानी से पत्रकारों के लिए खुल जाते हैं. उदाहरण भी है. सीआईए के लिए मुखबिरी करने वाले एक पत्रकार मैथ्यू रोज़ेनबर्ग, पाकिस्तान के संघ शासित स्वायत्त कबाइली क्षेत्र फाटा और पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत एनडब्ल्यू एफपी के अधिकारियों कैप्टन हयात ख़ान एवं हबीब ख़ान के साथ सघन यात्रा पर गए थे. दरअसल मैथ्यू रोज़ेनबर्ग सीआईए के साथ मोसाद के भी एजेंट हैं. मैथ्यू ने सीआईए के लिए तालिबान आतंकवादियों के ख़िला़फ पाकिस्तान में चल रहे सैन्य अभियान की भी मुखबिरी की थी. पाकिस्तान ने उन्हें चेतावनी भी दी थी, पर भारत में मैथ्यू के लिए कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि यहां कई बड़े अधिकारी मैथ्यू की तरह ही एजेंट हैं. विदेशी अख़बारों में रिपोर्ट करने के नाम पर शातिर जासूसों का दल दिल्ली से अपनी गतिविधियां चला रहा है. मोसाद का मानना है कि भारत में, ख़ासकर दिल्ली में मुस्लिम बहुल इलाक़ों की जमकर जासूसी होनी चाहिए. करोड़ों की मशीनें मंगाई गई हैं. ये मशीनें महंगी गाड़ियों में लगाई गई हैं तथा उन्हें जामिया, ओखला, पुरानी दिल्ली जैसे इलाक़ों में लगाया गया है. बहाना है कि आतंकवादी गतिविधियों को पकड़ने का जाल बिछाया जा रहा है, पर इनका असल इस्तेमाल राजनीतिक नेताओं की जासूसी में हो रहा है. मुस्लिम राजनीति करने वाले नेता तथा उनसे सहानुभूति रखने वाले ग़ैर मुस्लिम राजनीतिक नेता इस श्रेणी में आते हैं. नीतीश कुमार और दिग्विजय सिंह पर भी इसीलिए नज़र रखी गई. ख़ु़फिया सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी भी नज़र के दायरे में हैं, क्योंकि ये विदेशी एजेंसियां चाहती हैं कि वे राहुल गांधी की कमज़ोरियां पकड़ें. इनका मानना है कि रात आठ बजे के बाद यदि राहुल गांधी की बातचीत या वीडियो रिकॉर्ड हो जाए तो राहुल गांधी की राजनीति भी इनके क़ब्ज़े में आ जाएगी. लोकसभा में जब सरकार कहती है कि उसने टेलीफोन टेप करने का आदेश नहीं दिया तो वह सही कहती है. यह काम तो उसकी जानकारी के बिना विदेशी एजेंसियां कर रही हैं और समय-समय पर, ज़रूरत पड़ने पर भारतीय एजेंसियों को इन्हें मुहैया कराती रहती हैं. इन एजेंसियों के निशाने पर कोई भी राजनेता या पत्रकार हो, ज़्यादा फर्क़ नहीं पड़ता, पर यहीं राहुल गांधी के कंप्यूटर का डाटा, उनके ईमेल, उनकी बातचीत कहीं और रिकॉर्ड हो रही हो तो? भारत सरकार को चाहिए कि वह राहुल गांधी को इस जासूसी से बचाए. इन एजेंसियों का मानना है कि भारत के होने वाले प्रधानमंत्री को अभी से अपने क़ब्ज़े में लेना चाहिए. आपके पास हाईटेक लैपटॉप हो, आपको पता न चले और आपकी तस्वीर रिकॉर्ड हो रही हो तो क्या करेंगे. भारत के अंदर ऐसे यंत्र, जिनसे तीन किलोमीटर के भीतर मोबाइल और लैंडलाइन की बात रिकॉर्ड हो जाए, लैपटॉप से वीडियो बन जाए, कार के अंदर बटन बराबर चिप लगाकर आपकी गतिविधियां रिकॉर्ड कर ली जाएं, मोसाद द्वारा ले आए गए हैं. ये सब इज़रायल के बने हैं. पाकिस्तान की सीमा पर लगा उपग्रह इज़रायली है, जो दावा तो करता है कि वह बकरी की गतिविधि भी पकड़ सकता है, पर घुसपैठिए हैं कि आए जा रहे हैं. दंतेवाड़ा में एक हज़ार से ज़्यादा लोग इकट्ठे होते हैं और जवानों को मार देते हैं और ये उपग्रह कोई जानकारी नहीं देते. इतना ही नहीं, हमारी रॉ का अफसर अमेरिका के लिए सालों जासूसी करता है और फिर वहीं भागकर बस जाता है और हम कुछ नहीं कर पाते. माधुरी को पकड़ने में तीन साल लग जाते हैं. कुछ अफसरों का कहना है कि माधुरी को हमारी जांच एजेंसियों ने डबल एजेंट बनाया. उसने जो सूचनाएं दीं, हमने उनका फायदा नहीं उठाया, जबकि आईएसआई ने उन सूचनाओं पर अमल किया. हमारी एजेंसी समझ नहीं पाई कि कब माधुरी पूरी की पूरी आईएसआई की होकर रह गई. शर्म की बात यह है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस सीआरपीएफ के कैंपों पर छापा डाल रही है. उसे सूचना मिली है कि माओवादियों को हथियार और गोलियां इन कैंपों से ही जा रही हैं. जिस देश की पुलिस, अर्द्धसैनिक बल और सेना से हथियार उनके दुश्मनों के पास जा रहे हों, और राजनीति करने वाले नेताओं और प्रशासन चलाने वाले नौकरशाहों को लज्जा न आए तो क्या कहें. सचमुच सिस्टम फेल हो रहा है. ये कुछ घटनाएं हैं, जो हमें चेतावनी देती हैं. हम प्रधानमंत्री जी से कहना चाहते हैं कि व्यवस्था ठीक कीजिए. घुन लग चुका है. कुछ तो देश के बारे में सोचिए, अन्यथा देश को तोड़ने का सपना देखने वालों को सफलता मिल जाएगी. आख़िर अमल तो सरकार को ही करना है. देश की ओर ईमानदारी से देखिए प्रधानमंत्री जी.