उस दिन आधे घंटे पहले बिल गेट्स नीतीश कुमार से मिलकर निकले थे. अचानक मेरा पटना जाना हुआ और नीतीश कुमार से मेरी मुलाकात हो गई. मुख्यमंत्री बनने के बाद उनसे यह मेरी संभवत: पहली मुलाकात थी. मैं सोचकर गया था कि मुझसे चिंतित, परेशान और बिहार के भविष्य को लेकर गुत्थियों से उलझ रहे नीतीश कुमार की मुलाकात होगी. लेकिन, मुझे नीतीश कुमार बिल्कुल सहज, सरल और निश्ंचत नीतीश कुमार मिले.
मेरे सामने सवाल था. कोई भी पत्रकार अपने मन के सवालों को दबा नहीं सकता. वह सवालों को पूछता ही है. मैंने बिना सवाल पूछे आम पत्रकारों से अलग कुछ जानने की कोशिश की. अगर सामान्य पत्रकार होते, तो लालू प्रसाद यादव से उनके रिश्ते के बारे में पूछते, नरेन्द्र मोदी से रिश्तों के बारे में पूछते, आने वाली परेशानियों के बारे में पूछते, लेकिन मुझे लगा कि नीतीश कुमार से शराबबंदी के ऊपर सवाल पूछना चाहिए. ऐसा इसलिए, क्योंकि नीतीश कुमार के ऊपर यह आरोप था कि जिस बिहार में गांवों में पानी नहीं है, वहां ठंडी बीयर उनके शासनकाल में ही सर्वसुलभ हुई. यह वह दौर था, जब नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी मिलकर सरकार चला रहे थे. अचानक नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले शराबबंदी की घोषणा कर दी थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद, पिछले मद्यनिषेध दिवस पर नीतीश कुमार ने घोषणा भी कर दी कि एक अप्रैल से राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू हो जाएगी. नीतीश कुमार इस काम को कैसे करेंगे? यह सवाल मेरे दिमाग में था. क्या नीतीश कुमार रोलबैक करेंगे? यू-टर्न लेंगे या इसमें कुछ संशोधन करेंगे. इस पर मैंने कुछ दाएं से, बाएं से नीतीश कुमार से जानना चाहा. जो मुझे पता चला, उससे मुझे थोड़ा अचम्भा हुआ.
नीतीश कुमार सौ प्रतिशत शराबबंदी लागू करने की मन:स्थिति में मुझे दिखाई दिए. उन्होंने अपने विभाग को बोल दिया है, संबंधित मंत्री से भी बोल दिया है कि योजना बनाई जाए कि किस तरह यह शराबबंदी लागू हो. आमतौर पर उच्च-मध्य वर्ग का तबका और उच्च वर्ग के लोग महंगी शराब पीते हैं, जिसे हम अंग्रेजी शराब कहते हैं और देहात में अपनी परेशानियों से थक-हार कर जो गरीब तबका शराब पीता है, वह कच्ची या देसी शराब कहलाती है. नीतीश कुमार दोनों ही तरह की शराब बंद करने के मूड में मुझे दिखाई दिए. लेकिन उनका सबसे ज्यादा ध्यान बिहार के गरीबों के ऊपर था. उन्होंने इसका कारण बताया कि मैं जब चुनाव से पहले महिलाओं की सभा में गया तो कई जगह महिला संगठनों ने मुझे कहा कि उनका घर बर्बाद हो रहा है. उनके पति जितना पैसा कमाते हैं, वो शराब में उड़ा देते हैं. इसलिए मैं इसके बारे में कुछ सोचूं. मुझे लगा कि इन महिलाओं का साथ देना चाहिए. तब नीतीश कुमार ने कहा था कि अगर मैं दोबारा मुख्यमंत्री बना तो पूर्ण मद्यनिषेध बिहार में लागू होगा. इसकी घोषणा की वजह से 50 प्रतिशत महिलाओं ने उन्हें खुलकर वोट दिए. नीतीश कुमार ने बताया कि मैं महिलाओं की एक सभा में गया और जब भाषण के बाद बैठ गया, तो पीछे से तीन महिलाओं ने आवाज लगाई कि शराबबंदी के बारे में कुछ बोलिए. महिलाओं की मांग थी कि बिहार में शराबबंदी होनी चाहिए. मैं फौरन दोबारा उठकर मंच पर गया और कहा कि मैं दोबारा मुख्यमंत्री बना तो मैं शराबबंदी करूंगा. उन्होंने कहा कि उस दिन की सबसे बड़ी खबर यही थी, जिसे देश के समाचार पत्रों और टेलीविजन पर दिखाई गई. यह खबर इस तरीके से दिखाई गई कि जैसे मैंने एक ऐसा वादा कर लिया है, जिसे मैं कभी पूरा नहीं करूंगा. इसीलिए, मद्यनिषेध के अवसर पर मुझे एक अप्रैल से शराबबंदी की घोषणा करने में अपार हर्ष का अनुभव हुआ. नीतीश कुमार गरीबों को लेकर ज्यादा संवेदनशील दिखाई दिए. उनका पहला सरोकार बिहार में गांवों में शराब को लेकर हो रहे आर्थिक नुकसान, मौत और बीमारी को लेकर है. इसलिए, उनके सारे विभाग पूरे तौर पर इसकी तैयारी कर रहे हैं कि कैसे एक अप्रैल से बिहार के गांवों में शराब न पहुंचे. अमीर लोग शराब पीते हैं. यह नीतीश कुमार की दूसरी चिंता है. उनका मानना है कि ऐसी शराब के ऊपर अगर तत्काल सकारात्मक ढंग से रोक नहीं भी लग पाई, तो उस पर बाद में वो रोक लगा लेंगे. चोरी-छिपे जितनी शराब आएगी, अमीरों को उतना ही ज्यादा पैसा देना पड़ेगा. लेकिन गरीब की जेब से ज्यादा पैसा निकलना शराबबंदी के उद्देश्य को पूरा नहीं करेगा. इसलिए, वो शराबबंदी और खासकर अवैध ढंग से शराब आने के रास्तों को रोकने के लिए पूरी तरह तत्पर हैं. जब मैंने सवाल पूछा कि आपको नहीं लगता कि सरकारी अमले के जरिए शराबबंदी लागू करना मुश्किल है. तब मुझे नीतीश कुमार का वो चेहरा दिखाई दिया, जिसकी मैं कल्पना नहीं कर रहा था. नीतीश कुमार ने कहा कि मैं शराबबंदी महिलाओं के सहयोग से रोकूंगा. मैं पूरे बिहार में शराबबंदी को लेकर महिलाओं से कहूंगा कि वो आगे आएं, आंदोलन करें, गांव-गांव में खड़ी हो जाएं और जहां पर भी उन्हें शराब आती हुई दिखे, बिकती हुई दिखे, उसके खिलाफ वो आंदोलन करें. पूरी सरकार उनका समर्थन करेगी. नीतीश कुमार जिस तरह पूरे बिहार में शराबबंदी को लेकर महिलाओं के खड़े होने की बात कर रहे थे, उससे मुझे लगा कि यहां एक नए नीतीश कुमार का जन्म होने वाला है. जब नीतीश कुमार ने कहा, ये मेरे लिए करो या मरो का प्रश्न है, तब मुझे लगा कि नीतीश कुमार अपने को बदल रहे हैं. एक ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में बदल रहे हैं, जो एक तरफ अच्छा प्रशासन, सुशासन, सक्षम प्रशासन देने में यकीन रखता है. भ्रष्टाचार का विरोध करने में यकीन करता है. बिहार का विकास करने में यकीन करता है. दूसरी तरफ, वो शराबबंदी या ऐसे सवालों, जिनका रिश्ता समाज की कुरीतियों से है, का मुकाबला जनता का साथ लेकर करना चाहते हैं. नीतीश कुमार इस काम में सफल हो पाएंगे या नहीं, ये अप्रैल का महीना बताएगा, लेकिन नीतीश कुमार उसकी तैयारी अभी से शुरू कर रहे हैं. बिहार के गांव-गांव में उनकी योजना है कि महिलाओं की समिति बने, जो शराबबंदी के लिए चट्टान की तरह गांव की सुरक्षा कवच में तब्दील हो जाए. बिहार की महिलाएं अगर नीतीश कुमार के साथ खड़ी हो गईं, मुझे पूरा विश्वास है कि वो खड़ी होंगी, तो मैं यह भी भविष्यवाणी कर सकता हूं कि नीतीश कुमार देश में पहले ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाएंगे, जो जनता की इच्छा के फैसले को सरकार द्वारा लागू करवाने में प्रथम स्थान पर होंगे. महिलाओं का प्रयोग शराबबंदी के लिए अगर तूफानी सफलता हासिल करता है, तो मेरा यह भी मानना है कि फिर बिहार के विकास के कामों में होने वाले भ्रष्टाचार का मुकाबला पंचायतों के द्वारा कैसे किया जा सकता है, इसकी भी योजना नीतीश कुमार बनाएंगे. नीतीश कुमार ने अपना एक दर्द मुझसे कहा और शायद इसलिए कहा कि उस दर्द का एक हिस्सा उन्हें मुझसे भी मिला है. नीतीश कुमार के पिछले कार्यकाल में या पिछले से पिछले कार्यकाल में हमने उन्हें अहंकारी मुख्यमंत्री लिखा था. बिहार के जितने भी जनता दल यूनाइटेड के विधायक थे, उनकी शिकायत थी कि नीतीश कुमार उनसे नहीं मिलते. नीतीश कुमार ने इस बातचीत के अंत में, जो लगभग कई घंटे चली, बताया कि अगर वो बैठकर योजनाएं नहीं बनाते और बिहार के विकास का नक्शा बिहार के अफसरों को नहीं समझाते, तो बिहार आज वहां नहीं होता, जहां पर है. उन्होंने कहा कि इसके लिए मुझे बहुत अपमान झेलना पड़ा और लोगों की बहुत बातें झेलनी पड़ीं. मैं समझ गया कि उनका इशारा मेरी तरफ भी है. लेकिन उन्होंने कहा कि मिलता मैं सबसे था, पर उस समय नहीं मिलता था, जब वो चाहते थे. मैं तब मिलता था, जब मेरा प्रशासनिक काम पूरा हो जाता था. तब मुझे लगा कि नीतीश कुमार के रूप में बिहार को एक ऐसा नेता मिला है, जिसे हम देश में आदर्श मुख्यमंत्री या जननेता की संज्ञा दे सकते हैं.
मैं इतना जरूर कहूंगा कि यह नीतीश कुमार के लिए परीक्षा की घड़ी है. साथ ही बिहार के लिए भी परीक्षा की घड़ी है. अगर बिहार में मद्यनिषेध जनता या महिलाओं की ताकत और सहयोग से लागू होती है, नीतीश कुमार इसमें सफल होते हैं, तो नीतीश कुमार देश के ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में सामने आएंगे, जिन्हें लोग देश के नेता के रूप में देखना शुरू कर देंगे. समस्या कठिन है. उसका समाधान और कठिन है. नीतीश कुमार की रणनीति उन्हें देश में अद्वितीय मुख्यमंत्री के रूप में पहचान देगी या नहीं देगी, इसका फैसला एक अप्रैल से होगा. लेकिन जिस तेवर के साथ उन्होंने मुझसे कहा कि यह मेरे लिए करो या मरो का प्रश्न है, वह बताता है कि गांधी के इस वाक्य के पीछे की प्रेरणा आज नीतीश कुमार को एक नए दायरे में ले जाने के लिए अवश्य प्रेरित करेगी और उन्हें सफल भी करेगी.