मुंबई में पाकिस्तानी मंत्री

jab-top-mukabil-ho1सत्रह अप्रैल की शाम छह बजे हैदराबाद से मुंबई आने वाली फ्लाइट डॉ. फिरदौस आशिक अवान को लेकर मुंबई आई. डॉ. फिरदौस हैदराबाद में सानिया मिर्ज़ा की शादी में शामिल होने गई थीं. डॉ. फिरदौस स्यालकोट की रहने वाली हैं जहां के शोएब इक़बाल हैं. वे पाकिस्तान के लोगों की तऱफ से एक ताज लेकर आई थीं जिसे उन्होंने सानिया मिर्ज़ा को पहनाया. लेकिन डॉक्टर फिरदौस मुंबई क्यों आईं, इस सवाल का जवाब हमें तलाशना चाहिए.

मैं डॉ. फिरदौस के साथ लगभग पांच घंटे रहा. उन सभी विषयों पर बातें हुई. जिन पर हो सकती थीं. कश्मीर एक ऐसा विषय है जिस पर कोई भी पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ बात किए बिना रह ही नहीं सकता. उनका भी मानना है कि बिना कश्मीर का मुद्दा हल किए स्थायी शांति हो ही नहीं सकती.

डॉ. फिरदौस आशिक़ अवान के कार्ड पर लिखा है फेडरल मिनिस्टर, पॉपुलेशन वेलफेयर, गवर्मेंट ऑफ पाकिस्तान. वे वहां हमारे स्वास्थ्य मंत्री गुलाब नबी आज़ाद की समकक्ष हैं. डॉ. फिरदौस का मुंबई आना एक महत्वपूर्ण घटना थी. वे पाकिस्तान की पहली केंद्रीय मंत्री हैं जो छब्बीस नवंबर की घटना के बाद मुंबई आई हैं. डॉ. फिरदौस उसी ओबेराय होटल में ठहरीं, जहां दहशतगर्दों ने ताज के साथ ही हमला किया था. यह फैसला डॉ. फिरदौस का अपना फैसला था क्योंकि वे मुंबई हमले के शिकार, शहर के ज़ख्म पर मरहम लगाना चाहती थीं. पाकिस्तान सरकार नहीं चाहती थी कि वे मुंबई आएं. उन्हें सलाह दी गई थी कि मुंबई में उन पर हमले हो सकते हैं, बम और मिसाइलें चल सकती हैं. इस सलाह के बाद भी उन्होंने गुलाम नबी आज़ाद से अपनी इच्छा बताई तो उन्होंने मुंबई में डॉ. फिरदौस को एक एड्‌स नियंत्रण केंद्र देखने की दावत दी. डॉ. फिरदौस सत्रह अप्रैल की शाम से अठ्ठारह अप्रैल की शाम तक मुंबई में रहीं, घूमी फिरीं, खाना खाया, लोगों से बात की, एड्‌स नियंत्रण केंद्र में दो घंटे बिताए तथा मुंबई के सेक्स कर्मियों के बीच एड्‌स नियंत्रण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को जाना तथा पाकिस्तान में भी ऐसे ही कार्यक्रम चलाए जाने की इच्छा प्रगट की. मैं डॉ. फिरदौस के साथ लगभग पांच घंटे रहा. उन सभी विषयों पर बातें हुई. जिन पर हो सकती थीं. कश्मीर एक ऐसा विषय है जिस पर कोई भी पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ बात किए बिना रह ही नहीं सकता. उनका भी मानना है कि बिना कश्मीर का मुद्दा हल किए स्थायी शांति हो ही नहीं सकती. जब मैंने तर्क दिया कि कश्मीर हमारे लिए धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा सवाल है, क्योंकि अगर मुस्लिम बहुमत के तर्क पर कश्मीर पाकिस्तान में शामिल किया जाएगा तो हिंदुस्तान के हर गांव से मुसलमानों को निकालने की मांग उठेगी क्योंकि वे वहां बहुमत में हैं और तब सारे हिंदुस्तान में दंगा फैल जाएगा. डॉ. फिरदौस ने कहा कि हम कहां कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने की बात कह रहे हैं, हम तो कह रहे हैं कि कश्मीर के लोगों की इच्छा जानी जाए तथा वैसा ही हल निकाला जाए. अगर कश्मीर की बात छोड़ दें तो डॉ. फिरदौस पाकिस्तान की मुहब्बत की, पाकिस्तान की ममता की, नुमाइंदगी कर रही थीं. उनका कहना था कि जिन्होंने मुंबई पर हमला किया वे पाकिस्तानी नहीं, और जो पाकिस्तान में दहशतगर्दी कर रहे हैं वे हिंदुस्तानी नहीं है. ये एक अलग तरह का दिमाग़ है जो किसी भी मुल्क से रिश्ता नहीं रखता. इसके ख़िला़फ दोनों ही मुल्कों को खड़ा होना होगा. डॉ. फिरदौस को चिंता है कि बातचीत शुरू होने में जितनी देर होगी उतना ही फायदा दहशतगर्दों को होगा. डॉ. फिरदौस ने मुझसे साफ कहा कि चाहे जितनी देर लड़ाई चले, न आप हमें जीत सकते हैं और न हम आपको. जब मसला बात से ही हल होना है तो बात क्यों न अभी शुरू हो. डॉ. फिरदौस का मीडिया पर बहुत भरोसा है. उनका मानना है कि मीडिया चाहे तो दोनों देशों के बीच बातचीत का माहौल बना सकता है. उनकी राय है कि सही ढंग के पत्रकारों को दोनों देशों में ज़्यादा आना जाना चाहिए तथा दोनों देशों के लोग क्या सोचते हैं, क्या जानना चाहते हैं, बताना चाहिए. उन्हें इस बात का दुख है कि पाकिस्तान के जंग और हिंदुस्तान के टाइम्स ऑफ इंडिया की अमन की आशा अभियान, आगे नहीं बढ़ पाया. उन्होंने पाकिस्तान की मीडिया पर गुस्सा भी दिखाया जिसने सानिया मिर्ज़ा के ख़िला़फ अभियान छेड़ा है क्योंकि सानिया ने कह दिया था कि वे पाकिस्तान की नहीं, शोएब की बीवी हैं. मैंने उनसे जानना चाहा कि वे ओबेराय होटल में ही क्यों रुकीं तो उनका कहना था कि वे मुंबई के दर्द में अपने को शामिल करना चाहती थीं. मैंने उनकी यह ग़लतफहमी दूर की कि मुंबई बमों या मिसाइलों का केंद्र है और उन पर हमला हो सकता है. कुछ उपद्रवी तो हर जगह होते हैं पर मुंबई के लोग उतने ही शांतिप्रिय और मेहमान नवाज़ हैं जितने कराची या लाहौर के. एड्‌स नियंत्रण सेंटर में कुछ पत्रकारों से बातचीत में डॉ. फिरदौस को इस बात का अहसास भी हुआ. किसी भी पत्रकार ने उनसे मुंबई हमलों, या फिर उन हमलों में पाकिस्तान के शामिल होने जैसे सवाल नहीं पूछे. डॉ. फिरदौस के साथ मुंबई में रहना एक सुखद अनुभव रहा, लेकिन ज़्यादा अच्छा होता अगर यह दौरा थोड़ा प्रचारित होता. तब मुंबई के लोग भी उनसे मिल पाते और डॉ. फिरदौस को पता चलता कि मुंबई में रहने वाले लोग कितने ज़िंदादिल हैं. उनसे मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि भी मिलते और बताते कि ऐसे हमले भारत में रहने वालों का मनोबल नहीं तोड़ सकते और उन्हें यह बताते कि वे दुआ करेंगे कि पाकिस्तान के लोगों का मनोबल भी दहशतगर्दों के सामने मज़बूत बना रहे. जिस एक बात ने मुझे हैरान किया वह यह कि, मुंबई हमलों के बाद पहली बार पाकिस्तान की एक केंद्रीय मंत्री मुंबई आईं और सरकार ने उनकी सुरक्षा में केवल एक सादी वर्दी में सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराया. मुझे न सीआईडी दिखाई दी, न सादी वर्दी में सुरक्षा कर्मी, न कोई पायलट कार और न ही हथियार बंद सुरक्षा कर्मी. वे बिल्कुल एक आम इंसान की तरह मुंबई में रहीं. अगर कहीं कोई हादसा हो जाता तो, या शैतान दिमाग़ लोग उन पर कहीं हमला कर देते तो हमारे ऊपर यही आरोप लगता कि हम अपने मेहमान की हिफाज़त भी नहीं कर सकते. उन्हें हवाई अड्डे पर भी सामान्य प्रोटोकॉल  नहीं मिला. यह केंद्र सरकार की ग़लती है या मुंबई सरकार की, यह हम नहीं जानते लेकिन यह ग़लती, बड़ी ग़लती है. डॉ. फिरदौस में मुझे दो तरह के व्यक्तित्व नज़र आए. एक ओर वे पाकिस्तान की सरकार की मंत्री थीं वहीं वे पाकिस्तान के आम आदमी की इच्छाओं का भी प्रतिनिधित्व कर रही थीं. मुझे उनके आम आदमी की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करना अच्छा लगा. काश हम हिंदुस्तान और पाकिस्तान की राजनीति का बोझ उतार कर आम आदमी की इच्छाओं को अपनी मंज़िल बना सकते. आशा करनी चाहिए कि आज नहीं तो कल, ऐसा होगा.


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