ऐसे बनी मनमोहन की सरकार

colage-261x2401यह इतिहास का वह पन्ना है, जिसके बारे में केवल चंद लोग जानते हैं। उनमें से दो अब इस दुनिया में नहीं हैं। इस पन्ने में 2004 में कांग्रेस की सरकार कैसे बनी, उसकी कहानी है। अब, जबकि पांच साल बाद 2009 में फिर से केंद्र में सरकार बनने जा रही है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि उस पन्ने को सार्वजनिक कर दिया जाए, जिससे लोगों को पता चले कि उस पन्ने की सच्चाई क्या है।
घटना 8 मई 2004 की है। सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल डॉक्टर मंज़ूर आलम से मिलते हैं। डॉक्टर आलम समाज वैज्ञानिक हैं और इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज़ के निदेशक हैं। अहमद पटेल उनसे कहते हैं कि चुनाव परिणाम आने वाले हैं और नए प्रधानमंत्री का चुनाव होना है। सोनिया गांधी के नाम पर कांग्रेस एकमत है लेकिन कांग्रेस को इस बात का डर है कि वे दल जो कांग्रेस के विरोध में हैं, कहीं कोई कमिटी न बना दें, जो यह तय करे कि गठबंधन कैसा होगा और उसका नेता कैसा होगा? कांग्रेस के भीतर यह बात चल रही थी कि भाजपा से जो दल अलग हैं उन्हें लेकर एक गठबंधन बनाया जाए और किसी भी तरह भाजपा को सरकार न बनाने दी जाए। भाजपा अपनी ओर दलों को मिलाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है तथा उसने इस काम में जद-यू के जार्ज फर्नांडिस व शरद यादव को लगा दिया था।
डॉक्टर मंज़ूर आलम ने आठ मई को ही मुझसे बात की। उन्होंने कहा कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो एक इतिहास बन जाएगा और देश के मुसलमानों को इससे बड़ी राहत मिलेगी क्योंकि वे भाजपा की सरकार बनने की आशंका से बुरी तरह परेशान हैं। वैसे उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा की सरकार सात साल चल चुकी है और अल्पसंख्यकों को गुजरात जैसी घटनाओं का डर है। अगर भाजपा की सरकार बनती है तो यह डर बढ़ेगा। उन दिनों हम सब गुजरात में घटी घटनाओं और अटल बिहारी वाजपेयी की शून्य बनती स्थिति तथा गुजरात में उनकी असहायता से परेशान थे। मैंने डॉक्टर आलम से कहा कि मैं श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से बात करके देखता हूं। मुझे भरोसा नहीं था कि श्री वी पी सिंह इस स्थिति में पुनः पड़ने के लिए तैयार होंगे क्योंकि वे बार-बार अपने को राजनीति से दूर ले जाने में लगे थे। आशा सिर्फ इतनी सी थी कि श्री वी पी सिंह ने दिल्ली की झुग्गी बस्तियों से कांग्रेस उम्मीदवारों को जिताने की अपील की थी और झुग्गीवासियों ने उनकी बात मानी थी। उन दिनों वी पी सिंह ग़रीबों के एकमात्र प्रतिनिधि और प्रवक्ता बन गए थे।

आठ और नौ मई को कम से कम 15 बार वी पी सिंह जी ने मुझे बुलाया और देश की हालत तथा नई सरकार के बनने के फायदे-नुकसान पर बात की। नौ की शाम तक उन्हें लगा कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह ग़रीबों, विशेषकर देश की झुग्गी बस्तियों के निवासी और किसानों के पक्ष में ज्यादा काम करेगी। मैंने उनकी बात डॉक्टर मंजूर आलम को बताई। उन्होंने एक घंटे के बाद मुझे कहा कि सोनिया गांधी वादा करती हैं कि वे दोनों काम और ग़रीबों को लेकर जो भी सलाह वी पी सिंह देंगे, वे उसे लागू करेंगी। उन्हें सोनिया गांधी की ओर से पहले अहमद पटेल और बाद में खुद सोनिया गांधी ने इस बात का आश्वासन दिया। मैंने रात के नौ बजे वी पी सिंह जी को इसकी सूचना दे दी। वी पी सिंह ने एक घंटे तक इसकी गहराई और संभावना पर बात की। रात दस बजे वी पी सिंह जी ने कहा, चलिए सो जाइए, कल सुबह आइए तो बात करते हैं। अगले दिन उनकी डायलिसिस थी।
रात में डॉक्टर आलम और मेरी बात हुई, जिसमें मैंने कहा कि ऐसा न हो कि वी पी सिंह को बाद में निराशा मिले, तब डॉक्टर आलम ने कहा कि आप चलें और सोनिया गांधी से बात करें। रात 11।30 बजे अहमद पटेल और डॉक्टर आलम के साथ मैं दस, जनपथ गया और वहां विस्तार से सोनिया गांधी से बात की।
सोनिया गांधी इस बात पर परेशान थीं कि यदि देश के नेताओं ने कांग्रेस की सरकार बनाने में सहयोग नहीं दिया तो प्रतिकूलता खड़ी हो जाएगी क्योंकि कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहती है और भाजपा उनके विदेशी मूल पर सवाल खड़ा कर रही है। उन्हें डर था कि यदि वी पी सिंह ने मदद नहीं की तो कोई ऐसा नहीं है जो गैर-भाजपा विपक्ष को समझा सके और तैयार कर सके। सोनिया ने कहा कि वह वी पी सिंह से मिलना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वह सिंह से उनके घर पर मिलेगी और अपनी बात कहेंगी। मैंने उन्हें अगले दिन वी पी सिंह की प्रतिक्रिया बताने की बात कही।
दरअसल, उस समय इतिहास बनने की प्रक्रिया शुरू हो रही थी। वी पी सिंह ने मतभेदों के कारण बोफोर्स को हथियार बना राजीव गांधी की सरकार गिरा दी थी। इस बात को कांग्रेस और सोनिया गांधी कभी भुला नहीं पाईं। उधर वी पी सिंह के मन में कहीं था कि वे क्यों न एक बार सरकार वापस राजीव गांधी के परिवार को लौटा दें। वी पी सिंह के मन में इंदिरा गांधी को लेकर बड़ा आदर था तथा अपने राजनीतिक जीवन का पूरा श्रेय वह इंदिरा गांधी को देते थे। कहते थे कि इंदिरा जी ने मुझे हमेशा दुलरा कर रखा और कभी किसी बात के लिए दबाव नहीं डाला। शायद इस सोच ने उन्हें फैसला लेने पर विवश किया।
अगले दिन यानी दस मई को वी पी सिंह की डायलिसिस थी। जब मैने उन्हें सोनिया गांधी से हुई बात बताई तो वह सोनिया से मिलने को तैयार हो गए। उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने बहुत सोच-समझकर कांग्रेस की सरकार बनवाने का फैसला लिया है। उनके मन में राहुल और प्रियंका को लेकर अच्छी बातें थीं जो उन्होंने बताईं और कहा कि दोनों को कुछ किताबें पढ़नी चाहिए। वी पी सिंह ने मुझसे साथ चलने को कहा जबकि मैं जाना नहीं चाहता था, लेकिन उनका कहना था कि चलना ही है। जब वी पी सिंह सोनिया गांधी से मिलने दस जनपथ पहुंचे तो वहां अहमद पटेल और डॉक्टर म़ंजूर आलम मौजूद थे। सोनिया गांधी ने वी पी सिंह का स्वागत किया।
वी पी सिंह ने सबसे पहले म़ंजूर आलम को इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि उनकी कोशिशों से मुसलमान भाजपा के ख़िला़फ कांग्रेस के साथ आए। शुरू के दस मिनट अहमद पटेल, डॉक्टर आलम और मैं बातचीत में शामिल थे। इस बातचीत में वी पी सिंह और सोनिया गांधी के बीच एक संपर्क सूत्र तय हुआ जो दोनों के सीधे संपर्क में रहेगा और फोन से बातचीत नहीं करेगा। दरअसल, कांग्रेस को डर था कि उनके सभी लोगों के फोन सुने जा रहे हैं। अहमद पटेल, डॉक्टर आलम और मैं दस मिनट बाद बाहर आ गए तथा वी पी सिंह जी और सोनिया गांधी कमरे में 45 मिनट तक अकेले बातचीत करते रहे।
उस दिन वी पी सिंह ने डायलिसिस जल्दी करा ली और वह डायलिसिस से सीधे मुझे लेकर दस जनपथ गए थे। वक्त करीब छह बजे का रहा होगा। गर्मी की शाम थी और माहौल भी गरम था। जब वहां से निकले तो हल्की आंधी आई थी। घर पहुंचते ही वी पी सिंह ने कहा कि उनकी बात सुरजीत, ज्योति बसु और करुणानिधि से हो चुकी है तथा जब उन लोगों ने वी पी सिंह से उनकी राय के बारे में पूछा तो उन्होंने सब को अपनी इच्छा बता दी थी। हुआ यह था कि रात में जैसे ही वी पी सिंह ने फैसला किया तो उन्होंने बाक़ी तीनों से बिल्कुल सुबह बात कर ली। तीनों जल्दी उठने वाले थे और आपस में न केवल दोस्त थे, बल्कि राजनीति में वी पी सिंह की समझ के कायल भी थे और अक्सर वी पी सिंह की राय पर फैसले भी लेते थे। वी पी सिंह ने बताया कि सोनिया गांधी ने उनसे नई सरकार बनवाने में वामपंथियों और करुणानिधि को तैयार करने का अनुरोध किया है। मुझसे वी पी सिंह ने साफ कहा कि यह ख़बर आगे नहीं जानी है क्योंकि उन्हें करुणानिधि से व्यक्तिगत बात करनी होगी। यह अलग बात है कि तीनों ने वी पी सिंह से वादा कर दिया था और वी पी सिंह ने खासा माहौल बना दिया था।
11 मई को जब वी पी सिंह ने सुबह-सुबह बुलाया तथा कहा कि वह सुरजीत के घर जाकर उनसे मिल आए हैं और उन्होंने देवेगौड़ा से भी बात कर ली है। उन्होंने राय दी की सोनिया गांधी को सुरजीत व देवेगौड़ा से बात करनी चाहिए। दिन में वी पी सिंह ने पहले करुणानिधि से बात की तथा बाद में चंद्रशेखर जी से बातचीत की। शाम में उन्होंने मुझे चंद्रशेखर जी की राय जानने के लिए भेजा तथा कहा कि सोनिया गांधी से चंद्रशेखर जी की बातचीत जल्दी से जल्दी करानी चाहिए।
जब मैं चंद्रशेखर जी से मिला तो उन्होंने कहा कि विश्वनाथ जो कह रहे हैं वह कितना सही है, मैं नहीं जानता, पर उन्होंने कहा है तो मैं ज़रूर सोनिया गांधी से मिलूंगा। मैने कहा कि सोनिया जी आपके यहां आएं तो। चंद्रशेखर जी ने मना करते हुए कहा कि वह खुद ही जाएंगे, पर पहले ज़रा सोचेंगे और वी पी से बात करेंगे। मैंने वी पी सिंह को चंद्रशेखर जी की राय आकर बता दी। वह कुछ सोचने लगे।
12 मई को सुबह दस बजकर बीस मिनट पर सोनिया जी से मैं मिला और उनको वी पी सिंह की राय बताई। उन्होंने देवेगौड़ा जी से कर्नाटक की स्थिति के कारण बात करने में थोड़ी हिचक दिखाई पर मेरे यह

कहने पर कि देश की हालत देखते हुए बात करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, वह फोन करने और बात करने के लिए मान गईं। वी पी सिंह ने यह भी कहलवाया था कि देवेगौड़ा जी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं और उन्होंने न कांग्रेस को इंडोर्स किया है और न ही मुलायम सिंह को इंडोर्स किया है। मुलायम सिंह उस समय प्रधानमंत्री बनने के लिए कांग्रेस के अलावा सभी दलों से बात कर रहे थे। वी पी सिंह ने सोनिया गांधी को कहलवाया था कि मनमोहन सिंह की नीतियों से किसानों को फायदा नहीं मिला, इसलिए किसानों के इश्यूज को सार्ट आउट (किसानों की समस्याओें को हल) करना चाहिए, वरना देवेगौड़ा जी शायद समझौता न करें। हालांकि देवेगौड़ा जी ने वी पी सिंह से कहा कि वह जो भी फैसला करेंगे, देवेगौड़ा उसके साथ रहेंगे। वी पी सिंह ने देवेगौड़ा से सबसे खास बात यह बताई कि सिद्धिरमैया को कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव भाजपा ने दिया है, इसलिए वह अपने सब विधायकों को दिल्ली बुला रहे हैं। मैंने सारी बातें सोनिया जी को बता दीं।
वी पी सिंह की राय थी कि कर्नाटक में किसी तटस्थ कांग्रेस नेता को जेडीएस से संपर्क पर लगाया जाए, कृष्णा को नहीं। कांग्रेस ने इस राय को नहीं माना और अपनी तरह से काम किया। परिणामस्वरूप उस समय भाजपा के सहयोग से देवेगौड़ा का बेटा कर्नाटक का मुख्यमंत्री बन गया और कृष्णा के नेतृत्व में हुए दूसरे चुनाव में कांग्रेस कर्नाटक में बुरी तरह हार गई और बीजेपी की सरकार बन गई।
वी पी सिंह ने यह भी कहा कि मायावती ने कहा कि वह 13 मई को यानी अगले दिन उनसे संपर्क करेंगी। इसी दिन आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे और राजशेखर रेड्डी का बयान आया था कि वह अकेले ही सरकार बनाएंगे पर फैसला रिजल्ट के बाद होगा। इस पर वी पी सिंह ने राय दी कि इस बयान का टीआरएस पर ग़लत असर जाएगा और सभी शंकित हो जाएंगे और भाग जाएंगे।

दोपहर दो बजे मैं देवेगौड़ा जी से मिला। वह कांग्रेस के खासे आलोचक थे। वह पत्रकारों से आधा घंटा बात करते रहे। बाद मेंे काफी कहने-समझाने और वी पी सिंह की इच्छा बताने के बाद वह सोनिया गांधी से बात करने के लिए तैयार हुए। दो बजे से सवा दो बजे का समय तय हुआ कि सोनिया जी उन्हें फोन करें और वह बात करेंगे।

यहां से मैं चंद्रशेखर जी के यहां गया। वहां अहमद पटेल पहले से आ चुके थे। इधर-उधर की बात चल रही थी। मैंने बात छेड़ी और उन्हें सोनिया जी से मिलने पर तैयार किया। सोनिया जी चंद्रशेखर जी को चार बजे फोन कर अपने यहां आने के लिए आमंत्रित करने वाली थीं और शाम सात बजे चंद्रशेखर जी वी पी सिंह से मिलने और बात करने उनके घर जाने वाले थे। एक दिन पहले ही वी पी सिंह ने फोन पर चंद्रशेखर जी से कहा था कि वह उनके घर आएंगे, पर चंद्रशेखर जी ने कहा कि नहीं, वह ही वी पी सिंह जी के यहां आएंगे। इसीलिए सोनिया गांधी से मिलने का समय उन्होंने साढ़े सात से आठ बजे का तय किया। उधर सोनिया जी ने ठीक दो बजे देवेगौड़ा जी से बात की तथा चार बजे चंद्रशेखर जी को फोन कर आने के लिए आमंत्रित किया। सोनिया गांधी के फोन करने के कारण एक बड़ा विरोध न उपज पाया।

शाम सात बजे चंद्रशेखर जी वी पी सिंह के यहां गए। वहां पहले से ही प्रेस वाले इंतजार कर रहे थे। उन्हें पता चल गया था। वी पी सिंह ने पहले तो चंद्रशेखर जी से अयोध्या मसले पर बात की तथा उसके बाद राष्ट्रीय स्थिति पर बात हुई। सात बजकर बीस मिनट पर ए बी बर्धन और डी राजा वी पी सिंह से मिलने आए और बताया कि वे सुरजीत के यहां से आ रहे हैं। दोनों ने वी पी सिंह और चंद्रशेखर को बताया कि उन्होंने अपना मन बना लिया है कि कांग्रेस का समर्थन किया जाए। इसके बाद मुलायम सिंह के बारे में बात हुई क्योंक्‌ उसी दिन मुलायम और अमर सिंह, सुरजीत से मिले थे।

चंद्रशेखर जी साढ़े सात बजे यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि हमें देश की होने वाली प्रधानमंत्री से मिलने जाना है। मुझे उन्होंने हाथ पकड़ कर कार में बिठा लिया। अकबर रोड पर प्रेस की भीड़ थी, इसलिए विज्ञान भवन की ओर से दस जनपथ में दाखिल हुए। यहां दोनों नेताओं की पैंतीस मिनट बात हुई। चंद्रशेखर जी ने सोनिया जी से साफ कहा कि मैं विश्वनाथ के कहने से आप का पूरा समर्थन करता हूं। घर लौट कर चंद्रशेखर जी ने प्रेस से कह दिया कि उनको सोनिया के प्रधानमंत्री बनने पर कोई ऐतराज नहीं है। देर रात मैंने वी पी सिंह को बता दिया कि देवेगौड़ा से सोनियाजी की बातचीत और चंद्रशेखर जी से मुलाकात हो गई है।
एक खास बात मैंने रात ही में वी पी सिंह को और बताई। घर लौटते ही चंद्रशेखर जी मुझसे कहा कि -एक बात बता रहा हूं। कांग्रेस इस्तेमाल करती है और फिर फेंक देती है। ध्यान रखना और विश्वनाथ को मेरी तरफ से बता देना-इसके बाद रात ही में वी पी सिंह ने चंद्रशेखर जी से बात की और कहा कि -भाई साहब, हम अपना कर्तव्य करें और उनका कर्तव्य वे ही जानें- हालांकि बाद में दोनों ने अलग-अलग मौकों पर इस कथन को कई बार मुझे याद कराया।

13 मई को लोकसभा चुनावों के नतीजे आने वाले थे। सुबह सोनिया गांधी से अहमद पटेल, डॉक्टर मंजूर आलम और मैं मिले। हमारे बीच तमाम संभावनाओं पर बातचीत हुई। दो घंटे के भीतर ही ट्रेंड आने लगे। अचानक वी पी सिंह ने बुलाया और संदेश दिया कि तुरंत सोनिया जी से कहो कि -(1) पार्टी का लीडर चुनने का अधिकार किसी दूसरे को नहीं देना चाहिए और किसी दबाव में नहीं आना चाहिए। (2) सरकार सोनिया के नेतृत्व में बने, किसी दूसरे को नहीं बैठाना है। (3)मुलायम व मायावती को बराबर मानना चाहिए। मुलायम को साथ लेते हैं तो मायावती को भी लेना चाहिए। (4) मुलायम कभी कांग्रेस का हित नहीं चाहेंगे। (5) उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बढ़ना है तो मुलायम का साथ छोड़ना पड़ेगा। (6) अबी लेना है तो दोनों को लें, नहीं तो दोनों को छोड़े पर एक को अगर लेना ही पड़े तो मायावती को लें। (7) इस मसले पर लेफ्ट का दबाव झेलना पड़ेगा। (8) मायावती को छोड़ना नहीं चाहिए नहीं तो दलित भाजपाई हो जाएगा औऱ भाजपा यूपी में ताकतवर हो जाएगी। (9) डिप्टी पीएम कोई नहीं होना चाहिए, मुलायम को तो बिल्कुल नहीं, क्योंकि वह तो दूसरा पावर सेंटर हो जाते हैं। (10) रक्षा, ऊर्जा सूचना और तकनीक मुलायम चाहेंगे पर उनको यह सब देना नहीं चाहिए और (11) चुनाव से पहले मुलायम से अलग होना होगा, अगर कांग्रेस को यूपी में जीतना है तो।
वी पी सिंह के सुझाव तत्काल सोनिया जी के पास जाने ते। अहमद पटेल और मेरी मुलाकात हुई। उन्हें सुझाव लिखवाए। ऊह तत्काल सोनिया जी के पास गए और उन्हें वी पी सिंह के सुझावों के बारे में बताया। मुझे एक घंटे के भीतर उन्होंने कहा कि सौ प्रतिशत इन्हीम सुझावों के आधार पर काम होगा।
इसी दिन लोकसभा के परिणाम आ गए। इसमें कांग्रेस को 145 और भाजपा को 138 सीटें मिलीं। दोनोें दलों की सरकार बनाने की दौड़ शुरू हो गई।
14 मई को दिन भर सोनिया गांधी अपने साथियों से विचार-विमर्श करती रहीं। इधर वी पी सिंह लेफ्ट और करुणानिधि से बात करते रहे। ज्योति बसु ने 15 मई की शाम दिल्ली आकर वी पी सिंह से मिलना चाहा तो वी पी सिंह ने बंगभवन जाकर उनसे मिलना तय किया। 14 तारीख को वी पी सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेंस की, जिसमें उन्होंने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की स्पष्ट मांग की तथा लेफ्ट व करुणानिधि से अपील की कि वे सोनिया गांधी का समर्थन करें। कांफ्रेंस में उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक कार्यक्रम बनाया जा सकता है। सभी सरकार में शामिल हों, इसकी कोशिश भी वी पी सिंह ने शुरू कर दी।
1) 15 मई को वी पी सिंह ने सोनिया गांधी को संदेश भिजवाया कि मायावती ने उनको आश्वस्त कर दिया है वह कांग्रेस के साथ हैं।
2) इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ज्योति बाबू शाम को आ रहे हैं आरै उनके आते ही वी पी सिंह की मुलाकात होगी।
3) सुरजीत, सीताराम येचुरी व प्रकाश करात से वी पी सिंह की बात हुई कि यदि वे सरकार में शामिल होंगे तो राजनीतिक यथार्थ का प्रतिनिधित्व करेंगे।
4) भाजपा को साफ संकेत जाना चाहिए कि कांग्रेस में कहीं कोई मतभेद नहीं है।
5) उनका फैसला डीएमके को प्रभावित करेगा।
6) लेफ्ट को राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता में भागीदारी करनी चाहिए, इस पर सुरजीत, येचुरी, करात और वर्धन तैयार हैं पर उन्हें दक्षिण के लोगों पर भरोसा नहीं है।
7) करुणानिधि कैबिनेट में बाद में शामिल होंगे।
करुणानिधि उनसे अगले दिन यानी 16 मई को मिलेंगे।
वी पी सिंह ने बताया कि उनसे सुरजीत ने कहा कि उन्होंने मुलायम सिंह से कहा है कि तुम सीएम रहो, दिल्ली मत आओ, केवल एक दो मंत्री पद ले लो। उड़ीसा और आंध्र की राजनैतिक स्थिति पर भी कुछ करने का तय हुआ। रात में अचानक ज्योति बसु से मिलने के बाद वी पी सिंह सोनिया गांधी से मिलना चाहते थे। मुलाकात फौरन निश्चित हो गई। इस मुलाकात में वी पी सिंह ने सोनिया गांधी को बताया कि उनकी ज्योति बसु से क्या बात हुई। सोनिया गांधी ने वी पी सिंह को अधिकृत किया कि जैसा ठीक समझें वह ज्योति बसु से कहें, और जो वह कहेंगे उसी का पालन होगा।

सोलह मई की सुबह वी पी सिंह पुनः ज्योति बसु से मिले और उन्हें सोनिया गांधी से हुई बात बताई। इसके बाद वह सीधे डायलेसिस पर चले गए। आज का दिन यानी सोलह मई बहुत महत्वपूर्ण था। करुणानिधि चेन्नई से दिल्ली आए और सीधे वी पी सिंगह से मिले। वी पी सिंह ने उनसे सरकार मेंशामिल होने को कहा पर उन्होंने कहा कि वह बाद में शामिल होंगे। दरअसल करुणानिधि से अटल बिहारी वाजपेई की बात हो चुकी थी और करुणानिधि अटल बिहारी वाजपेई को समर्थन देने का मन बना चुके थे। सोनिया गांधी से शाम को करुणानिधि की मुलाकात हुई जिसमें करुणानिदि ने साफ कमिटमेंट नहीं किया। वह वहां से सीधे वी पी सिंह के पास आए। उन्होंने अपनी शंकाएं, अपनी सोच वी पी सिंह को बताईं। वी पी सिंह ने करुणानिधि से सीधे कहा कि उन्हे ंकांग्रेस का समर्थन करना चाहिए और सरकार में शामिल होना चाहिए। करुणानिधि ने वी पी सिंह से पूछा कि वह अटल जी से क्या कहें क्योंकि वह उन्हें समर्थन देने का वायदा कर चुके हैं। करुणानिधि ने वी पी सिंह को सोचकर बताने का वायदा किया।

इस बीच दोंनों चाय पी रहे थे। दो मिनट की खामोशी रही, अब वी पी सिंह ने करुणानिधि से कहा कि मैं एक कागज़ पर कांग्रेस और सोनिया गांधी के सपोर्ट का खत लिख रहा हूं और नीचे करुणानिधि का दस्तखत कर रहा हूं। आप चाहें तो प्रेस बुलाकर कह दें कि दस्तखत मेरे नहीं, वी पी सिंह ने किए हैं। करुणानिधि ने वी पी सिंह का हाथ पकड़ लिया और कहा कि आप क्या कर रहें हैं, आप जैसा कहेंगे मैं करूंगा। फैसला हो चुका था, इतिहास ने फैसला सुना दिया। आधे घंटे के अंदर सोनिया गांधी के पास करुणानिधि के समर्थन का खत पहुंच गया।
यही वह खत था जिसने केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनवा दी,क्योंकि अगर करुणानिधि न मानते तो सोनिया गांधी को मुलायम सिंह या मायावती में से किसी एक का या दोनों का समर्थन लेना पड़ता। उस स्थिति में आपस में टकराव वैसा ही होता जैसा बाद में , पिछले पांच सालों में हुआ। आज वी पी सिंह की डायलेसिस भी थी, उन्होंने अस्पताल से, दिन में फोन कर के सोनिया गांधी को बता दिया था कि उनकी ज्योति बसु से क्या बात हुई थी। करुणानिधि के समर्थन की बात उन्होंने तुरंत सोनिया गांधी को बताने के लिए कहा मैंने अहमद पटेल को जानकारी दे दी।
17 तारीख तक कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनता दल, डीएमके, एनसीपी, केरला कांग्रेस, पीएमके, टीआरएस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, एमडीएमके, एलजेपी, जे एंड के पीपुल्स डोमोक्रेटिक पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और मुस्लिम लीग को मिलाकर अपना मोर्चा बना लिया। समाजवादी पार्टी ने उसे बिना शर्त समर्थन का खत दे दिया। ये सब मिलाकर दो सौ पचहत्तर हो गए। वामपंथियों ने भी भी समर्थन घोषित कर दिया, उनके सांसदों की संख्या साठ थी। 17 मई की रात कांग्रेस ने घोषित किया कि श्रीमती सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनने को तैयार हो गई हैं और वे 18 मई को यानी अगले दिन राष्ट्रपति कलाम से मिलेंगीं।

अब 18 मई को श्रीमती सोनिया गांधी अपने साथ समर्थकों का खत लेकर राष्ट्रपति कलाम से दिन में बारह बजे मिलीं और बाहर आने पर पत्रकारों से कहा कि वह डॉ। कलाम से 19 मई को फिर मिलेंगीं। 19 मई को दिन में दो बजे अचानक दस जनपथ से फोन आया कि श्रीमती सोनिया गांधी माखनलाल फोतेदार और नटवर सिंह को वी पी सिंह से मिलने भेज रही हैं। वी पी सिंह का फोन आया कि मैं दस मिनटों में पहुंचू। मैं नज़दीक था पहुंच गया। वी पी सिंह ने बात बताई और अंदाज़ा बताया कि लगता है कांग्रेस के लोगों ने सोनिया गांधी को डरा दिया है। उनका अनुमान सही साबित हुआ। दो पैंतालिस पर माखनलाल फोटेदार लटवर सिंह के साथ वी पी सिंह से मिलने पहुंचे। आते ही दोनों ने चाय पी। चाय पीने के बीच में फोतेदार जी ने ज़ेब से एक कागज़ निकाला और वी पी सिंह को दिखाया। वी पी सिंह ने देखा और मुस्कराए और कहा कि मैं तो चाहता था कि वे ही बनें पर ठीक है, जैसा वे सही समझें। दोनों नमस्कार कर उठ गए। उनके जाते ही वी पी सिंह ने कहा कि शाम को सेंट्रल हॉल की मीटिंग में सेनिया गांधी मनमोहन सिंह का नाम घोषित करने वाली हैं। मुझे उन्होंने इस ख़बर को अपने तक रखने के लिए कहा। यही हुआ, शाम को कांग्रेस पार्टी ने मनमोहन सिंह को अपना नेता चुन लिया। 19 की शाम सोनिया गांधी फिर राष्ट्रपति से मिलीं और इस बार उनके साथ मनमोहन सिंह थे।

14 मई को एक घटना और हुई। गोविंदाचार्य को लगा कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को इतना तेज़ कर दिया जाए कि लोग धरना प्रदर्शन करने लग जाएं। उन्होंने एक वरिष्ठ पत्रकार और संघ के लोगों के साथ योजना बनानी शुरू की और दूसरी ओर उमाभारती को चंद्रशेखर जी के पास भेजा कि वह सेनिया गांधी के खिलाफ बयान दे दें और कहें कि विदेशी मूल की महिला भारत की प्रधानमंत्री नहीं बन सकती। उमाभारती को चंद्रशेखरजी ने टाल कर लौटा दिया। चौदह की ही रात को आडवाणी जी चंद्रशेखर जी के पास पहुंचे और उन्हें साथ आने के लिए अनुरोध किया। चंद्रशेखर जी ने कहा कि मैंने सोच समझ कर फैसला किया है और मैं विश्वनाथ को वचन दे चुका हूं, मैं उन्हीं के साथ रहूंगा। देर रात चंद्रशेखर जी ने बुलाया और सारी बातें बताई, और कहा कि विश्वनाथ और सोनिया गांधी को बता दो।

अब आई बाईस मई। दिन था शनिवार, इस दिन शपथ होनी थी। अचानक अहमद पटेल का फोन आया कि वे तुरंत वी पी सिंह से मिलना चाहते हैं और मैं भी वहीं रहूं। वह मिलने आए और उन्होंने वी पी सिंह से कहा कि रामविलास पासवान शपथ नहीं ले रह ेहैं क्योंकि लालू यादव ने रेल मंत्रालय के लिए ज़िद कर दी है। उन्होंने अनुरोध किया कि वी पी सिंह चलें और पासवान को समझाएं। वी पी सिंह तैयार हो गए और अहमद पटेल की गाढ़ी में बैठ गए। मैं बाहर खड़ा था, और पत्रकार के नाते जाना नहीं चाहता था, पर वी पी सिंह ने थोड़ा सख़्त होकर कहा कि बैठिए। दोनों पासवान के यहां गए। रामविलास पासवान का लॉन उनके समर्थकों से भरा पड़ा था। अहमद पटेल और वी पी सिंह का रामविलास ने उठ कर स्वागत किया लेकिन मंत्री बनने से इंकार कर दिया।

अहमद पटेल चुप बैठे थे। वी पी सिंह ने कहा कि आपको मंत्री बनना है पर उन्होंने विनम्रता से कहा कि बाद में देखेंगे। आधे घंटे तक बात हुई लेकिन पासवान नहीं माने। अहमद पटेल सीधे सोनिया गांधी से हर पांच मिनट के बाद बातें कर रहे थे। रामविलास पासवान के घर के अंदर उनकी पत्नी के पास कुछ लोग बैठे थे जो उनके मंत्री बनने के विरोधी थे जो और चाहते थे कि रेल मंत्रालय मिले तभी वे शपथ लें। पासवान उठ कर अंदर चले गए और वापस नहीं आए।

इस बीच वी पी सिंह ने कहा कि पासवान को दो मंत्रालय दीजिए, अहमद पटेल ने सोनिया जी से बात की, वे तैयार थीं। पर पासवान स्वास्थ्य मंत्रालय चाहते थे, पहले तो सोनिया गांधी ने हां कर दी लेकिन दो मिनट बाद उनका फोन आया कि उसे तो उन्होंने पीएमके को देने का वायदा कर दिया है। वी पी सिंह ने कहा कि स्टील और रसायन व उर्वरक दे दीजिए। अहमद पटेल तुरंत उठे और सोनिया गांधी के पास चले गए।

वी पी सिंह ने मुझे कहा कि रामविलासजी को क्या हो गया है, उन्हें राजनीति समझनी चाहिए। मैं आया हूं, बैठा हूं और वे घर के अंदर हैं, जाइए और बुलाकर लाइए। मैं अंदर गया। रामविलास जी का हाथ पकड़ कर एक कोने में ले गया और उन्हें वी पी सिंह की व्यथा बताई। वे मेरे साथ ड्राइंग रूम में आए, वी पी सिंह ने उनसे कहा कि वे उन्हें लेकर ही जाएंगे, नहीं तो बैठे हैं। इधर वी पी सिंह ने शपथ ग्रहण में जाने के लिए अपनी गाड़ी घर भेज दी ताकि वह उनकी पत्नी को लेकर आ सके। वी पी सिंह अपने कपड़े भी नहीं बदल सके।

रामविलास पासवान घर के अंदर गए और अपनी पत्नी और वहां बैठे लोगों को फैसला सुना दिया कि वी पी सिंह जी आए हैं, कह रहे हैं, मैं उन्हें अनदेखा नहींकर सकता, मैं शपथ लेने चल रहा हूं। दस मिनट के भीतर पासवान कपड़े पहन वी पी सिंह के पास आ गए। तब तक वी पी सिंह की गाड़ी उनकी पत्नी को लेकर आ गई थी। उसी गाड़ी में वी पी सिंह ने पासवान को बैठाया और राष्ट्रपति भवन चल दिए।

इतिहास ने पांच साल की भूमिका लिख दी थी और अब फिर वही हालत है, नई सरकार बनननी है पर कुछ भी निश्चित नहीं है। हां इन पांच सालों में चंद्रशेखर जी और वी पी सिंह जब तक जीवित रहे, उन्हें इस बात का दुख रहा कि कांग्रेस ने ग़रीबों के लिए, जितना करना चाहिए था नहीं किया।

इतिहास का यह अनकहा, अनछुआ टुकड़ा अब आपके सामने है, वी पी सिंह और चंद्रशेखर अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन सोनिया गांधी, अहमद पटेल और डॉ। मंज़ूर आलम हमारे बीच हैं। जो पांच साल पहले नहीं आए वे अब आ रहे हैं, जैसे प्रधानमंत्री जिसे हम चाहेंगे उसे बनाएंगे, प्रधानमंत्री तीसरे मोर्चे का बनेगा, प्रधानमंत्री कांग्रेस से बाहर का होगा, मनमोहन सिंह को हम नहीं बनने देंगे आदि आदि पांच साल पहले अकेले वी पी सिंह ने आगे बढ़कर कांग्रेस की मुश्किलें आसान कर दीं थीं, इस बार कैन आसान करेगा यह दजेखना दिलचस्प होगा।


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