लोकसभा की लॉबी में गुलज़ारी लाल नंदा और आर आर मोरारका का सामना हुआ. नंदा जी ने आंखें चढ़ाते हुए मोरारका से कहा कि आप क्यों भारत सेवक समाज और भारत साधु समाज को परेशान कर रहे हैं, इनके ख़िला़फ जांच करने का कोई मतलब नहीं है.
इतिहास को देखने से दो सीखें तो ज़रूर मिलती हैं, कि या तो हम आगे बढ़े हैं या फिर हम जहां थे, वहां से भी पीछे खिसक गए हैं. हम भारत के संसदीय इतिहास की दो घटनाएं बताते हैं और फैसला करने का आप से आग्रह करते हैं. आप इन्हें पढ़ें और देखें कि हमारी लोकसभा की उस समय क्या गरिमा थी, और आज हमारी लोकसभा की क्या गरिमा है.इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन चुकी थीं और गुलज़ारी लाल नंदा भारत के गृहमंत्री थे. लोकसभा का सत्र चल रहा था. गुलज़ारी लाल नंदा भारत सेवक समाज और भारत साधु समाज से जुड़े हुए थे. इन दोनों संस्थाओं को भारत सरकार से अनुदान मिलता था. जिन संस्थाओं को भारत सरकार अनुदान देती है, यदि उनके ख़िला़फ कोई शिकायत हो तो संसद की लोक लेखा समिति उसकी जांच करती है. भारत सेवक समाज और भारत साधु समाज के ख़िला़फ ऐसी ही शिकायतों पर उस समय की लोक लेखा समिति जांच कर रही थी. लोकलेखा समिति के अध्यक्ष श्री आर आर मोरारका थे. लोकसभा की लॉबी में गुलज़ारी लाल नंदा और आर आर मोरारका का सामना हुआ. नंदा जी ने आंखें चढ़ाते हुए मोरारका से कहा कि आप क्यों भारत सेवक समाज और भारत साधु समाज को परेशान कर रहे हैं, इनके ख़िला़फ जांच करने का कोई मतलब नहीं है. मोरारका जी ने उनसे कहा कि मेरा इससे कोई लेना देना नहीं है, मैं तो केवल अध्यक्ष हूं, समिति के बाक़ी सदस्य इस मसले में जांच कर उचित फैसला लेंगे. नंदा जी आख़िर दो बार प्रधानमंत्री रह चुके थे, उन्हें लगा कि आर आर मोरारका को उनकी बात माननी ही चाहिए. उन्होंने फिर ज़ोर दिया कि जांच बंद होनी चाहिए. लोक लेखा समिति के अध्यक्ष आर आर मोरारका ने कहा कि यह उनके हाथ में नहीं है. दोनों इसके बाद सदन में चले गए. अगले दिन फिर सदन प्रारंभ हुआ. लोकसभा के स्पीकर ने प्रश्न काल प्रारंभ किया. अचानक थोड़ी देर बाद आचार्य कृपलानी ने खड़े होकर गुलज़ारी लाल नंदा के ख़िला़फ विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना करने का आरोप लगा दिया. दादा कृपलानी अमरोहा से संसद का उप चुनाव जीत कर लोकसभा के सदस्य बन चुके थे. इंदिरा जी सदन में मौजूद थीं.दादा कृपलानी ने स्पीकर से कहा कि गृहमंत्री ने सदन की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष को धमकी दी है और उन पर दबाव डालने का प्रयास किया है. गुलज़ारी लाल नंदा ने खड़े होकर सफाई दी कि उन्होंने आर आर मोरारका से कांग्रेस पार्टी के सदस्य के नाते बात की थी और दूसरा यह कि श्री चांदी वाला भारत सेवक समाज और भारत साधु समाज का काम अच्छी तरह कर रहे हैं. आचार्य कृपलानी तत्काल खड़े हुए और कहा कि मैं चांदीवाला या सोनावाला की बात नहीं सुनना चाहता. श्री नंदा ने सदन की कमेटी के अध्यक्ष पर एक मामले को लेकर दबाव डाला है, अतः इनके ख़िला़फ मामला बनता है. श्रीमती गांधी ख़ामोश होकर सारी बातें सुनती रहीं. नंदा जी को सभ्य शब्दों में सदन से माफी मांगनी पड़ी और तब जाकर यह मामला शांत हुआ.पंद्रहवीं लोकसभा मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और लाल कृष्ण आडवाणी की लोकसभा है. इस लोकसभा के एक सदस्य जसवंत सिंह हैं जो लोक लेखा समिति के अध्यक्ष हैं. इन्हें लोकसभा के अध्यक्ष ने लोक लेखा समिति का अध्यक्ष नामांकित किया है. इन्हें अगर हटाना हो तो यह केवल लोकसभा के अध्यक्ष ही कर सकते हैं. जसवंत सिंह के घर 31 अगस्त को अचानक सुषमा स्वराज पहुंचीं. वे वहां तीस मिनट से ज़्यादा रहीं. वे जसवंत सिंह को भाजपा में वापस ले जाने के लिए कहने नहीं गई थीं. वे जसवंत सिंह से कहने गई थीं कि जसवंत सिंह लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दें.सुषमा स्वराज ख़ुद इस लोकसभा की सदस्य हैं. उनका जसवंत सिंह को इस्ती़फा देने के लिए कहना लोकसभा के विशेषाधिकार और सदन की अवमानना का विषय बन जाता है. देश के सभी अख़बारों ने इस ख़बर को प्रमुखता से छापा. लेकिन यह लोकसभा निर्जीव लोकसभा है. किसी सदस्य ने लोकसभा अध्यक्ष को सुषमा स्वराज के ख़िला़फ विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव का नोटिस नहीं भेजा है. इसमें आचार्य कृपलानी जैसा शायद एक भी सदस्य नहीं है जिसे लोकसभा के सम्मान की चिंता हो.इतिहास की ये दो घटनाएं बताती हैं कि लोकसभा के चरित्र में कितना फर्क़ आ गया है और सदस्य कितने ज़्यादा असंवेदनशील हो गए है. वैसे कारण की तलाश भी मज़ेदार है. भाजपा के ही एक नेता अनंत कुमार की पत्नी एक संस्था चलाती हैं जिसे राज्य सरकार अनुदान देती है. अनंत कुमार की स़िफारिश पर भाजपा की कई सरकारों ने कुछ संस्थाओं को अनुदान दिया है और ये संस्थाएं बच्चों को दोपहर का भोजन देती हैं. अनंत कुमार को डर है कि जसवंत सिंह कहीं लोक लेखा समिति की जांच के दायरे में दोपहर का भोजन देने वाली स्वयं सेवी संस्थाओं को न ले आएं.हमारी ये मांग है कि दोपहर के भोजन की योजना में लगी सभी संस्थाओं की व्यापक जांच होनी चाहिए. ग़रीब बच्चों को दिए जाने वाले भोजन में भयानक भ्रष्टाचार तो है ही, कभी-कभी सड़े खाने की वजह से बच्चे बीमार भी होते हैं और हमेशा के लिए भयानक बीमारियों के जाल में फंस जाते हैं. भारत में ग़रीब बच्चों को भोजन देने के नाम पर जहां कई संस्थाएं भारत की सरकार से, राज्य सरकारों से अनुदान लेती हैं वहीं दूसरी ओर वे विदेशों में एक व्यापक पैसा जुटाओ अभियान चलाती हैं. यह पैसा कभी ग़रीब बच्चों की भूख मिटाने में इस्तेमाल नहीं होता. कहां होता है, यह जांच का विषय है. और यह एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से जसवंत सिंह कुछ ताक़तों की आंख की किरकिरी बने हुए हैं.