जीवन में पहली बार अद्भुत दृश्य देखा. अगर उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन मंत्री ओम प्रकाश सिंह ने मुझे आमंत्रित न किया होता, तो मैं इस दृश्य से वंचित रह जाता. देश के करोड़ों लोग इस दृश्य से वंचित हैं. उन्हें नहीं पता कि हमारे देश में कैसे-कैसे अद्भुत आयोजन हो रहे हैं. 25 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा थी और कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी, बनारस और काशी में देव दीपावली मनाई जाती है. देव दीपावली मनाने का भव्य आयोजन पिछले 10-15 सालों से शुरू हुआ. यद्यपि पौराणिक कथाओं में इसका वर्णन हमेशा से रहा है. वाराणसी या बनारस को यहां के निवासी काशी कहते हैं. ऐसा माना जाता है कि काशी तीनों लोकों से न्यारी नगरी है और यह भगवान शिव के त्रिशूल के ऊपर बसी हुई है. काशी के लोगों की मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को स्वर्ग से अमृत बरसता है, यह हमारे हिंदू धर्म-पुराणों में लिखा मिलता है. इसी दिन लोग खीर या मिष्ठान खुले में रखते हैं, ताकि गिरने वाली ओस का अमृत वे पी सकें. यह माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव स्वयं काशी आते हैं और उनकी पूजा-आराधना करने के लिए देवता काशी आते हैं. इस दिन को देव दीपावली के रूप में काशी के लोगों ने मनाना प्रारंभ किया. काशी में 25 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का दृश्य अद्भुत था. जो लोग एक बार देव दीपावली देखने काशी आते हैं, वे हर साल देव दीपावली देखने काशी आने लगते हैं.
इस बार देव दीपावली मनाने के लिए एक मोटे अनुमान के अनुसार, छह से सात लाख लोग देश भर से काशी के घाटों पर पहुंचे. अस्सी घाट से लेकर महिषासुर घाट तक लगभग84 घाट हैं और हर घाट पर स़िर्फ लोग ही लोग थे. आकाश में पूर्णिमा का चांद जगमगा रहा था. शाम 5.30 बजे के बाद हर घाट पर देव दीपावली उत्सव की शुरुआत हुई और लोगों ने अपने संसाधनों से दीपों की अनुपम छटा बिखेर दी. सारे घाट जलते हुए दीपकों से जगमगाते रहे. जितने लोग घाटों पर थे, उन्हें जहां जगह मिली, वहां वे सांस रोककर इस अद्भुत दृश्य के गवाह बने. गंगा का दूसरा किनारा बालू का किनारा है. उस तऱफ भी बहुत बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे और दीप जला रहे थे. लोगों से भरी हुईं सैकड़ों नावें गंगा में तैरने लगीं और लोग महिषासुर घाट से प्रारंभ यात्रा करते हुए अस्सी घाट तक घाटों की अनुपम छटा निहारते दिखाई दिए. मैंने जीवन में कभी इतनी नावें गंगा में तैरते हुए नहीं देखीं. हालांकि, काशी में गंगा में नाव पर घूमने का एक अद्भुत आनंद हमेशा मिलता है. मैं जितनी बार काशी गया, यह आनंद उठाने का मौक़ा मैंने नहीं छोड़ा.
मुख्य चर्चा दशाश्वमेध घाट की, जहां पर हम भगवान शिव की कथा सुनने बैठे हुए थे और उनके स्वागत में मंत्रोच्चार, भजन, गीत हो रहे थे. कहीं पर भी पैर रखने की जगह नहीं थी. उससे आगे गंगा सेवा समिति ने आयोजन किया और वहां उसने भारत के स्वाभिमान की रक्षा के लिए हुए शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ गंगा पूजन शुरू किया. वहां गाने शौर्य और शहादत को नमन करने वाले बजे. आर्मी बैंड ने जवानों के उत्सर्ग को याद कर धुनें बजाईं और सलामी दी. ऐ मेरे वतन के लोगों…जैसा गीत गंगा के पानी के साथ मिलकर लोगों को पूरी तरह अपने में समेट गया. थलसेना, नौसेना एवं वायुसेना के सर्वोच्च अधिकारियों ने देव दीपावली के पावन अवसर पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी और यह वचन दिया कि अगर जान से भी ज़्यादा कुछ देश के लिए न्यौछावर करने की ज़रूरत पड़ी, तो भारतीय सेना के तीनों अंग उसके लिए तैयार हैं.
इस देव दीपावली की सबसे खास बात यह रही कि 21 पंडितों ने एक साथ धूप, दीप, महाज्योति एवं वस्त्र आदि से गंगा मैया की आरती उतारी. सभी ओर से हर-हर महादेव का उद्घोष गूंज रहा था. महिलाएं भी आरती करते हुए देखी जा रही थीं. जब महाआरती हुई, तो गंगा में नावों की कतार लग गई. गंगा के पार रेतीले किनारों और काशी की तऱफ के घाटों पर लोगों ने दीपदान किया. उनकी रोशनी से पूरी गंगा जगमगा उठीं. बीच-बीच में आतिशबाजियां भी हो रही थीं, लेकिन गंगा में तैरते हुए दीपों की छटा स्वर्गीय दृश्य दिखा रही थी. कुछ घाट ऐसे भी थे, जहां पर लोग कम थे, लेकिन वहां पर भी दीप जल रहे थे. काशी के घाटों से सटी खड़ी इमारतों, मंदिरों एवं धर्मशालाओं की छतों पर लोग ही लोग नज़र आ रहे थे. हर जगह काशी जयघोष यानी हर-हर महादेव गूंज रहा था.
वाराणसी में लगभग 450 होटल हैं, जो शत-प्रतिशत चार दिनों तक के लिए बुक हो गए थे. एक-एक कमरे में चार-चार, पांच-पांच लोग टिके थे. होटलों का किराया 200 से लेकर 20 हज़ार रुपये प्रतिदिन तक हो गया था, लेकिन बहुत-से लोगों को इससे भी ज़्यादा किराये पर होटलों में जगह नहीं मिली. लोग धर्मशालाओं एवं गेस्ट हाउस में जगह न मिलने की वजह से सीढ़ियों तक पर रह रहे थे. रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड लोगों से भरे पड़े थे. बनारस में प्रतिदिन लगभग 22 फ्लाइटें आती हैं, जिनमें कुछ अंतरराष्ट्रीय फ्लाइटें भी हैं. उनका किराया 200 गुना तक बढ़ गया था. आठ हज़ार रुपये की टिकट 50 हज़ार रुपये तक पहुंच गई थी. दिल्ली से बनारस की एक टिकट 50 हज़ार रुपये तक हो गई थी. वाराणसी और मुगलसराय से गुज़रने वाली ट्रेनें खचाखच भरी हुई आ रही थीं. इन ट्रेनों की संख्या लगभग 175 है. काशी की सड़कों पर बस, टैक्सी, कार एवं ऑटो रिक्शा आदि रैलियों का आभास दे रहे थे, लेकिन वे सब घाट से दो किलोमीटर पहले ही लोगों को उतार रहे थे, क्योंकि रास्ते बंद हो गए थे. घाटों पर दोपहर एक बजे से इतने लोग पहुंच गए थे कि जिन लोगों को सरकार ने पास दिए थे, उनकी भी एंट्री बंद हो गई. जिसे जहां जगह मिली, वह बंदरों की तरह से किसी तरह अपना स्थान बनाकर वहां पर चिपक कर बैठा हुआ था.
काशी में लगभग 500 नावें हैं, जो लोगों के लिए कम पड़ गई थीं. आस-पास के ज़िलों से भी नावें काशी आ गई थीं. सजी-धजी नावें, बजरे गंगा में तैर रहे थे. जिन नावों का किराया आम दिनों में 300 रुपये है, वे कार्तिक पूर्णिमा के दिन 25,000 रुपये ले रही थीं और सारी नावें लगभग 20 दिन पहले ही बुक हो गई थीं. जो बड़ी नावें हैं, जिन्हें मोटरबोट और बजरा कहते हैं, वे तो दो से तीन लाख रुपये में बुक हुई थीं. 21 देशों से विदेशी पर्यटक आए हुए थे और विदेशियों से सारे घाट भरे हुए थे. बनारस के लोग अतिथियों का स्वागत कर रहे थे और उन्हें घाट की तऱफ भेजने में सहायता कर रहे थे. अस्सी घाट पर अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के संत स्वामी चिदानंद मुनि शाम से बैठे हुए थे और वहां पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों की अपार संख्या थी. अनुराधा पौडवाल वहां भजन सुना रही थीं और रात के ग्यारह बजे तक उन्होंने भजन सुनाए. ऐसा कोई स्थान नहीं था, जहां बीच में से निकल कर आर-पार जाया जा सके. तुलसी घाट, जिसके बारे में मान्यता है कि तुलसी दास जी ने यहीं बैठकर रामचरित मानस लिखी, वहां एफिल टावर की प्रतिकृति थी. लोग श्रद्धा के साथ बैठे थे, भजन सुन रहे थे और भजन में शामिल भी हो रहे थे.
यह दृश्य तब था, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने देव दीपावली का देश में कोई प्रचार नहीं किया था. अगर उत्तर प्रदेश सरकार इस समारोह का देश या विश्व में प्रचार करे, तो यह संख्या 10 गुनी हो सकती है. उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई एवं लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव गंगा सेवा समिति के मुख्य अतिथि थे. उन्होंने घाटों का जायजा लेते हुए देखा कि वहां पर गंदगी है. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलने वाले जल निगम की टंकी के नीचे भी उन्हें गंदगी दिखाई दी. उन्होंने अपने साथ बैठे सिंचाई विभाग के सचिव दीपक सिंघल को इंगित करके कहा, गंदगी का यह हाल है. शिवपाल यादव ने पर्यटन मंत्री ओम प्रकाश सिंह से कहा कि इस समारोह को और भी भव्य बनाना चाहिए, अच्छी नावें होनी चाहिए. लोगों को देव दीपावली देखने में दिक्कत न हो, इसका इंतजाम अगले साल से होना चाहिए. उत्तर प्रदेश सरकार के इन दो मंत्रियों का मानना है कि अगले साल से देव दीपावली के मौक़े पर और भी अच्छे इंतजाम होने चाहिए, यह एक सकारात्मक संकेत है.
लेकिन सरकार को किसी एक चीज के ऊपर नहीं, बल्कि पूरे बनारस पर ध्यान देना चाहिए. इसलिए नहीं कि बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव क्षेत्र है, बल्कि इसलिए कि बनारस सारे देश की आस्था का केंद्र है. यहां सारे देश से लोग आते हैं. बनारस कुंडों का शहर है. हर कुंड की अलग मान्यता है, लेकिन वे अविकसित और गंदे हैं. बनारस के घाटों के ऊपर निर्माण पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. हाईकोर्ट की आलोचना का सवाल नहीं है, लेकिन उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि बनारस के घाट टूटे-फूटे रहेंगे, तो लोगों की जानें जाएंगी. हाईकोर्ट अपने आदेश के ऊपर पुन: विचार करे. वह होटलों और गेस्ट हाउसों का निर्माण न होने दे, यह बात समझ में आती है, लेकिन घाटों का निर्माण या मरम्मत न हो, यह बात समझ में नहीं आती.
बनारस की सड़कें बहुत ज़्यादा विकास मांगती हैं, लेकिन काशी के लोग तमाम कमियों के बावजूद मस्त, मलंग, औघड़ किस्म के हैं. पूरे बनारस में कहीं पर भी गमछा पहने हुए लोग मिल जाते हैं. मस्त, हंसमुख टिप्पणी करने वाले और भगवान शिव में आस्था रखने वाले बनारस के लोग इस मायने में धन्यवाद के पात्र हैं कि वे बनारस में आए हुए पर्यटकों का अनादर नहीं करते, बल्कि दिल खोलकर स्वागत करते हैं. इसके बावजूद बनारस में शुरू से कुछ ऐसे लोग अवश्य हैं, जो बनारस की संस्कृति को कलुषित कर रहे हैं. शायद देश भर के चोर भी इस समारोह में पहुंचते हैं, इसलिए बहुतों के मोबाइल फोन कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गायब हुए और देव दीपावली की पूजा करने के बाद भीड़ से निकलते हुए बनारस निवासी मंत्री शिव पटेल का मोबाइल भी गायब हो गया. पर यह बहुत छोटा हिस्सा है. बड़ा हिस्सा बनारस की मस्ती, बनारस का फक्कड़पन और देव दीपावली महोत्सव की शान है, जिसने बनारस में छह-सात लाख लोगों को कार्तिक पूर्णिमा के दिन पहुंचा दिया. अगर सरकार इस आयोजन को और गंभीरता से ले, तो पर्यटन बनारस की आर्थिक स्थिति में कमाल का काम कर सकता है.