अटल बिहारी वाजपेयी को उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं देनी चाहिए. इसलिए नहीं कि वे भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री हैं, बल्कि इसलिए कि वे भारत के उन गिने-चुने जीवित राष्ट्रीय नेताओं में हैं, जिनका नाम उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक अपने देश में रहने वाले किसी भी शख्स के लिए अनजान नहीं है. अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के होते हुए भी जब मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री थे तो उन्होंने पहली बार पाकिस्तान की ओर खुलने वाले भारत के दरवाज़े को खोल दिया था. पाकिस्तान से आने वाले लोगों के लिए वीज़ा के नियम न केवल शिथिल किए गए, बल्कि कुछ हद तक बदल भी दिए गए. आज तक हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोग इस बात को नहीं भूले, क्योंकि दोनों देशों के बहुत से लोगों के रिश्तेदार यहां-वहां दोनों जगह हैं. अटल जी की वजह से न केवल मरने से पहले बहुत से लोग, जो सालों पहले बिछड़ गए थे, एक दूसरे का चेहरा भी देख पाए और अपने पुरखों की क़ब्र पर जाकर श्रद्धांजलि भी दे पाए.
पूरे जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से सहमत न होने वाले भारत के मुसलमान केवल अटल बिहारी वाजपेयी से कुछ नज़दीकी महसूस करते रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी कभी कट्टर हिंदुत्व का चेहरा नहीं बनें बल्कि भारतीय मानस के उस पक्ष का चेहरा बने जो कहता है कि मैं तुम्हारी बात सुनूंगा, तुम मेरी बात सुनो. अटल जी के मुस्लिम दोस्तों की अच्छी-खासी तादाद है, जो उन्हें अक्सर याद करती है.
देश अटल जी को उनके शब्दों, अभिव्यक्ति और भाषण कला के लिए तो याद करता ही है, उनकी समझदारी के लिए भी याद करता है. अटल जी ने कभी अपने को खांचे में नहीं बांधा, इसीलिए नेहरू जी व शास्त्री जी उन्हें बहुत पसंद करते थे. अटल जी को विपक्ष में नेहरू स्टाइल राजनीति करने वाला भी कहा जाता रहा है. अटल जी को इंदिरा जी ने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भेजा था.
देश अटल जी को उनके शब्दों, अभिव्यक्ति और भाषण कला के लिए तो याद करता ही है, उनकी समझदारी के लिए भी याद करता है. अटल जी ने कभी अपने को खांचे में नहीं बांधा, इसीलिए नेहरू जी व शास्त्री जी उन्हें बहुत पसंद करते थे. अटल जी को विपक्ष में नेहरू स्टाइल राजनीति करने वाला भी कहा जाता रहा है. अटल जी को इंदिरा जी ने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भेजा था. अटल जी ने भारत-पाकिस्तान के युद्ध में भारतीय नेतृत्व करने वाली महिला इंदिरा गांधी को बिना किसी लाग लपेट के दुर्गा कहा था.
अटल जी अपने दल के अलावा विपक्ष के दूसरे दलों के नेताओं के साथ भी हमेशा संपर्क में रहते थे. किसी भी राष्ट्रीय नेता का नाम लीजिए, उसका आत्मीय रिश्ता अटल जी के साथ निकल आएगा. चंद्रशेखर जी के साथ अटल जी का रिश्ता बहुत ही अजीब था. चंद्रशेखर जी, अटल जी को गुरु जी कहते थे. दोनों जब भी मिलते थे, घंटों बातें करने की चाह रखते थे. भैंरो सिंह शेखावत भारत की राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भाजपा के दूसरे नेता थे, जिनका रिश्ता और संबंध सभी दलों में था. ये ऐसे लोग रहे, जिन्होंने आपसी बातचीत में कभी भी राजनीति नहीं आने दी.
आज अटल बिहारी वाजपेयी बीमार हैं. यह बीमारी उम्र की वजह से है. अ़फसोस इस बात का है कि लोग उन्हें भुलाने लगे हैं. उनसे मिलने जाने वालों की संख्या कम से कम हो रही है. उनकी अपनी पार्टी के लोग भी अब उनसे मिलने नहीं जाते. पिछले लोकसभा चुनाव मे तो उनकी पार्टी में उनकी अपील या उनकी फोटो तक पोस्टरों पर नहीं छापी. उस चुनाव में आडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाने के नारे के साथ भाजपा ने चुनाव लड़ा था. भाजपा इतनी ओवरकॉन्फीडेंट थी कि उस ने अटल जी को इस लायक़ नहीं समझा कि उनसे अपील कराई जाए. जनता को अटल जी की अनदेखी पसंद नहीं आई और भाजपा को वो वोट भी नहीं मिले, जो अक्सर मिल जाते थे.
अटल जी के राजनीति से ग़ायब होने या उन्हें अनदेखा करने से भाजपा में एक बड़ा शून्य उभर आया है. आडवाणी जी उस स्थान को न भर पाए और न भर पाएंगे, ऐसा लगता है. सुषमा स्वराज, वेंकैय्या नायडू, अरुण जेटली, अनंत कुमार जैसे नेताओं में भी अटल जी का एक भी गुण दिखाई नहीं देता. इनकी राजनीति दायरे की राजनीति है. भाजपा का सिकुड़ना अटल जी की अनुपस्थिति का सबसे बड़ा कारण है.
अटल जी बेबाक थे. वे सही मायने में राजनेता और दूरदर्शी हैं. गुजरात दंगों पर वे नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े आलोचक थे और आज भी हैं. उन्हें पता था कि यदि मोदी गुजरात में बने रहते हैं तो देश भाजपा के हाथ से चला जाएगा. उन्होंने पूरी ताक़त लगा दी, लेकिन भाजपा के अपने साथियों और शिष्यों को वे नहीं समझा पाए. आडवाणी जी के नेतृत्व में पार्टी मोदी के पक्ष में खड़ी हो जाए. अटल जी ख़ून के आंसू पी कर रह गए. वही हुआ, जो अटल जी नहीं होने देना चाहते थे. गुजरात बच गया, लेकिन सारा देश भाजपा के हाथ से निकल गया.
आज भाजपा के पास आडवाणी भी नहीं हैं क्योंकि उनकी भी बात अब भाजपा में नहीं सुनी जाती. भाजपा के पास मोदी हैं, येदुरप्पा हैं. भाजपा ने अनुशासन का मिथ तोड़ दिया है. अब उसे कोई अनुशासित पार्टी नहीं कहता. अटल जी की अनुपस्थिति का सबसे बड़ा नुक़सान भारत के लोकतंत्र को हुआ है. भारत में कोई विपक्ष है ही नहीं. अटल जी हमेशा देश की तकलीफ की आवाज़ थे. मैंने ख़ुद उनके पास महाराष्ट्र के आदिवासियों को भेजा था, अटल जी ने उनकी तकलीफ को न केवल सुना बल्कि संसद में भी उठाया. आज भाजपा के नेताओं के पास अपने ही कार्यकर्ताओं की बात सुनने का व़क्त नहीं है तो वे देश के ग़रीबों की आवाज़ कैसे सुनेंगे.
अटल जी का जन्मदिन इस तरह मनाना चाहिए कि लगे कि देश के लिए बहुत कुछ करने वाले नेता को हम याद कर रहे हैं. मैं जानता हूं कि भाजपा या संघ अटल जी के जन्मदिन की खानापूरी करेंगे. क्या देश की जनता भी खानापूरी करेगी? शायद नहीं.
क्रिसमस बीत गया, ईसा मसीह को याद करने का समय है. क्रिसमस की, देर से ही सही, देश को बधाई. लेकिन आज अटल जी को भी जन्म दिन की फिर से एक बार बधाई. अटल जी हमारे बीच रहें और उन कमियों का एहसास कराते रहें जो हमारे आसपास घिर रही हैं. हम हमेशा आपको याद करेंगे अटल जी.