देश को विजेता का इंतजार है

desk ko vijeta ka intjar haiअगस्त का महीना भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण रहा. सरकार, विपक्ष, अन्ना हजारे और बाबा रामदेव इस महीने के मुख्य पात्र थे. एक पांचवां पात्र भी था, जिसका ज़िक्र हम बाद में करेंगे. इन चार पात्रों ने अपनी भूमिका ब़खूबी निभाई. सरकार और विपक्ष ने अपनी पीठ ठोंकी, दूसरी ओर अन्ना और रामदेव ने अपने आंदोलन को सफल कहा. हक़ीक़त यह है कि ये चारों ही न हारे हैं, न जीते हैं, बल्कि एक अंधेरी भूलभुलैया में घुस गए हैं. बात सरकार और कांग्रेस पार्टी से शुरू करें. कांग्रेस की सबसे बड़ी सफलता यह है कि उसकी सरकार ने सभी विपक्षी दलों को, जिनका प्रतिनिधित्व लोकसभा में है, इस बात के लिए मना लिया कि कोई भी दल अन्ना हजारे के लोकपाल बिल पर चल रहे आंदोलन का समर्थन न करे. साथ ही बाबा रामदेव के काले धन पर चल रहे आंदोलन का भी समर्थन न करे. सरकार ने सफलतापूर्वक विपक्षी दलों से कहा कि आज हमारी सरकार है, कल आपकी सरकार होगी. कल आपको भी इन्हीं सवालों में घिरना होगा, इसलिए बेहतर है कि हम सब लोकपाल और काले धन जैसे विषयों को बहस में उलझा दें. न आप मांग करें, न हम कार्यवाही करें. सभी बड़े विपक्षी दल, जो राज्यों में सरकारों में हैं, सरकार की इस बात को इसलिए समझ गए, क्योंकि उन सबको इस बात का पता था कि दोनों ही सवालों पर वे सब कहीं न कहीं फंसने वाले हैं. सरकार की तऱफ से उसके चार मंत्रियों ने सफलतापूर्वक यह काम किया और अपने संबंधों, रिश्तों एवं शाम की बैठकों के ज़रिए प्रमुख विपक्षी दलों को अन्ना हजारे और रामदेव से दूर कर दिया. छोटे दलों की कोई हैसियत नहीं है और न उनके पास कोई ऐसा सांसद है, जो इन सवालों को लोकसभा में उठा सके. एक वक़्त था, जब अकेले चंद्रशेखर, भूपेश गुप्ता, ज्योर्तिमय बसु, नाथपाई, पीलू मोदी, मधुलिमये जैसे सांसद बोलते थे तो सारा सदन ही क्या, सारा देश उनकी बातों को सुनता था. पर अब संसद में छोटे दलों को छोड़ भी दें तो बड़े दलों के पास भी ऐसे सांसद नहीं हैं, जिनकी बातों को लोकसभा या राज्यसभा खामोश होकर सुने और देश उनकी बातों पर ग़ौर करे. दरअसल, यह विडंबना लोकसभा और राज्यसभा की कम, लोकतंत्र की ज़्यादा है. कांग्रेस या सरकार में ऐसे मंत्रियों और सांसदों की पूछ ज़्यादा है, जो देश या विदेश के बड़े पैसे वालों की वकालत करते हैं.

मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा है, जो अब तक यह कहती आई कि अन्ना हजारे का आंदोलन और बाबा रामदेव का आंदोलन उसी की वजह से चल रहा है. संघ प्रमुख मोहन भागवत इस बात को कई बार कह चुके हैं कि उन्हीं के कार्यकर्ता इन दोनों के आंदोलन को चला रहे हैं, लेकिन इस बार अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने उनके तर्कों का अपनी शैली में जवाब दे दिया. अन्ना हजारे के मंच से सावधानीपूर्वक यह खुलासा किया गया कि उनका भाजपा या आरएसएस से कोई रिश्ता नहीं है.

मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा है, जो अब तक यह कहती आई कि अन्ना हजारे का आंदोलन और बाबा रामदेव का आंदोलन उसी की वजह से चल रहा है. संघ प्रमुख मोहन भागवत इस बात को कई बार कह चुके हैं कि उन्हीं के कार्यकर्ता इन दोनों के आंदोलन को चला रहे हैं, लेकिन इस बार अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने उनके तर्कों का अपनी शैली में जवाब दे दिया. अन्ना हजारे के मंच से सावधानीपूर्वक यह खुलासा किया गया कि उनका भाजपा या आरएसएस से कोई रिश्ता नहीं है. शुरू के दो दिन जब अन्ना हजारे के अनशन के समय जंतर-मंतर पर भीड़ नहीं आई तो विपक्ष एवं सत्ता पक्ष की बांछें खिल गईं और उन्होंने कहा कि अन्ना के आंदोलन को जनता ने नकार दिया. जनता ने इस माखौल का जवाब अगले आठ दिन भारी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर दे दिया. दरअसल, यह जवाब भाजपा और संघ को ज़्यादा था, लेकिन विपक्षी दल अंदरूनी तौर पर अपनी सहमति पर क़ायम थे कि अन्ना हजारे का समर्थन नहीं करना है. अन्ना हजारे एवं उनके साथियों को जब यह समझ में आया कि सरकार और विपक्ष की यह मिली-जुली रणनीति है कि अनशन को अनदेखा करो और अगर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, गोपाल राय एवं अन्ना हजारे इस अनशन के दौरान मर भी जाते हैं तो मर जाने दो. इस पर प्रशांत भूषण और देश के तेईस लोगों के बीच बातचीत हुई और यह तय हुआ कि अन्ना हजारे और उनके साथियों को अनशन समाप्त करने के लिए कहा जाए. तेईस लोगों की अपील का मान अन्ना हजारे ने रखा और उन्होंने यह कहते हुए अनशन तोड़ दिया कि वह एक राजनीतिक विकल्प जनता को देंगे. दरअसल, सभी राजनीतिक दलों ने टेलीविजन के ज़रिए एक बहस खड़ी कर दी कि अन्ना हजारे के पास कोई विकल्प नहीं है और अगर जनता उनकी बात मान भी ले तो वह वोट किसे देगी. अगर लोग कांग्रेस को वोट न दें तो क्या भाजपा को वोट दें, क्या भाजपा के लोग कांग्रेस से ज़्यादा ईमानदार हैं. कांग्रेस एवं भाजपा सहित किसी भी विपक्षी दल को यह आशा नहीं थी कि अन्ना हजारे राजनीतिक विकल्प की बात कहेंगे और इसीलिए इस घोषणा के साथ ही सरकार एवं राजनीतिक दलों ने अन्ना हजारे पर हमला बोल दिया तथा कहा कि उन्हें तो राजनीति में आना ही था. टेलीविजन पर बहस कराने वाले महान पत्रकारों ने किसी से यह नहीं पूछा कि आप ही तो कहते थे कि आखिर अन्ना हजारे किसके लिए वोट देने की अपील करेंगे. भाजपा के लिए यह स्थिति सबसे दु:खदायी थी. वह यह मानती थी कि अन्ना हजारे का आंदोलन मुख्य तौर पर कांग्रेस के विरोध में जाएगा और उसे इस विरोध का राजनीतिक लाभ मिलेगा, लेकिन जैसे ही अन्ना हजारे ने विकल्प देने की घोषणा की, भाजपा ने अन्ना हजारे की आलोचना कांग्रेस से भी तेज़ करनी शुरू कर दी. छोटे दल और वामपंथी दल अन्ना के लोकपाल की अवधारणा से सहमत हो ही नहीं पाए. जैसे वे लोकसभा में चुप रहते हैं, वैसे ही वे इस अवसर पर भी खामोश दिखाई दिए. अन्ना हजारे और उनके साथियों को अब तक यह समझ में नहीं आया कि जनता को तैयार किए बिना उनका अनशन करने का फैसला ही ग़लत था. देश के लोग अपने बीच अन्ना हजारे की उपस्थिति चाहते थे और वे अन्ना के मुंह से लोकपाल सहित देश की समस्याएं कैसे समाप्त होंगी, इसे सुनना चाहते थे. अन्ना हजारे पिछले वर्ष अनशन के बाद देश में कहीं नहीं गए, जिसकी वजह बीमारी बताई गई. लेकिन साल भर बाद दूसरा अनशन शुरू करने से पहले भी वह देश में कहीं नहीं गए. वह महाराष्ट्र में घूमे, जहां हमेशा घूमते रहते थे. उन्हें और उनके साथियों को उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं उड़ीसा जाना चाहिए था. उनकी यह यात्रा न केवल उनके विचारों को सा़फ करती, बल्कि देश के लोगों को भी उनके साथ जोड़ती. अगर अन्ना हजारे ने यह क़दम उठाया होता तो उन्हें दस दिन में अपना उपवास समाप्त न करना पड़ता,

बाबा रामदेव का यह आकलन था कि अगर तीसरे दिन भी सरकार न मानी तो वह एक ऐसी घोषणा करेंगे, जिससे सरकार परेशान हो जाए. इसीलिए उन्होंने महाक्रांति शब्द का इस्तेमाल किया. हमारी जानकारी के अनुसार, बाबा रामदेव की योजना दिल्ली में एक करोड़ लोगों को लाकर पूरी दिल्ली ठप्प कर देने की थी, पर ऐन मौक़े पर बाबा रामदेव ने अपना इरादा बदल दिया.

सारा देश उनके साथ खड़ा होता और तब शायद उन्हें उपवास करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. अगस्त बीत गया, अभी तक अन्ना हजारे की तऱफ से मुद्दों को लेकर देश में घूमने की कोई योजना सामने नहीं आई है. अगर अन्ना हजारे देश में मुद्दों को लेकर नहीं घूमते हैं तो उन्हें यह मान लेना चाहिए कि उनके साथियों द्वारा बनाए गए राजनीतिक दल को भी लोगों का समर्थन नहीं मिलने वाला. अन्ना हजारे, उनके साथियों एवं उनके लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी राजनीतिक दल को देश में नई चुनौतियों का सामना करने वाले दल के रूप में नहीं देखते, इसीलिए वे अपना दल बनाने जा रहे हैं. बाबा रामदेव ने इससे अलग रणनीति अपनाई. उन्होंने कांग्रेस के अलावा देश में सारे राजनीतिक दलों एवं मुख्यमंत्रियों से संपर्ककिया और उनसे काला धन वापस लाने की मांग का समर्थन करने का आग्रह किया. बाबा रामदेव के उत्थान में कांग्रेस का योगदान बहुत ज़्यादा है. लगभग सारे केंद्रीय मंत्री बाबा रामदेव से कभी न कभी योग सीख चुके हैं और कांग्रेस के अघोषित भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी भी बाबा रामदेव से मिल चुके हैं. बाबा को कांग्रेस समर्थित बहुत सारे बड़े पैसे वालों ने भी समर्थन दिया है. बाबा का इस बार का आकलन यह रहा कि विदेशों में सबसे ज़्यादा काला धन कांग्रेस से जुड़े लोगों का है, इसलिए उन्होंने मीडिया के ज़रिए तो कांग्रेस से बात की, लेकिन गए वह विपक्ष के मुख्यमंत्रियों के पास. उनका यह भी मानना रहा कि अगर सारे विपक्षी नेता उनके मंच पर आ जाएंगे तो उससे सरकार पर दबाव पड़ेगा. पर इस बार उन्होंने अपनी रणनीति किसी को नहीं बताई कि अनशन शुरू करने के कितने दिन बाद वह क्या करेंगे. उनकी रणनीति का पता जेल में बंद आचार्य बालकृष्ण, जयदीप आर्य और शिया धर्मगुरु एवं इस्लामिक स्कॉलर मौलाना कल्बे रुशैद रिज़वी को था. आचार्य बालकृष्ण जेल में बंद ज़रूर थे, लेकिन सारे धागे उनके इर्द-गिर्द नाच रहे थे. आचार्य बालकृष्ण को यह अंदाज़ा था कि सरकार उन्हें गिरफ़्तार कर लेगी, इसलिए जेल जाने से पहले उनकी अनुपस्थिति में कौन क्या करेगा, इसका निर्णय उन्होंने कर दिया था. जयदीप आर्य बाबा रामदेव के साथ हमेशा रहते हैं और उनके संवाददाता का काम करते हैं, वहीं मौलाना कल्बे रुशैद रिज़वी उन्हें राजनीतिक मामलों पर सलाह देते हैं. आचार्य बालकृष्ण बाबा रामदेव की आंख, नाक, कान, दिल और दिमाग़ हैं.

बाबा रामदेव का यह आकलन था कि अगर तीसरे दिन भी सरकार न मानी तो वह एक ऐसी घोषणा करेंगे, जिससे सरकार परेशान हो जाए. इसीलिए उन्होंने महाक्रांति शब्द का इस्तेमाल किया. हमारी जानकारी के अनुसार, बाबा रामदेव की योजना दिल्ली में एक करोड़ लोगों को लाकर पूरी दिल्ली ठप्प कर देने की थी, पर ऐन मौक़े पर बाबा रामदेव ने अपना इरादा बदल दिया. उन्होंने विपक्षी नेताओं को अपने मंच पर बुलाया, उनसे समर्थन के भाषण कराए और उसके बाद अपने समर्थकों के साथ संसद की तऱफ कूच किया. जब बाबा रामदेव संसद की तऱफ जा रहे थे, तब उनके साथ लगभग चालीस हज़ार अनुयायी थे. दिल्ली अस्त-व्यस्त हो गई और सरकार बाबा रामदेव को तकनीकी तौर पर तो गिरफ्तार कर पाई, लेकिन वास्तविकता में वह गिरफ्तार नहीं थे और यहीं बाबा रामदेव ने यह दिखा दिया कि वह भाजपा और संघ के निर्णय से बंधे नहीं हैं. भाजपा को यह आशा थी कि बाबा कुछ ऐसा करेंगे, जिसकी वजह से दिल्ली में पुलिस लाठियां चलाएगी और उसका ़फायदा वह देश भर में उठाएगी. इस तरह की सलाहें भाजपा से जुड़े संदेश वाहक बाबा रामदेव को दे भी चुके थे. बाबा रामदेव की यह घोषणा कि जो हिंसा करेगा, वह उनका कार्यकर्ता नहीं है और वह शांतिपूर्वक जाएंगे, इसने अनुशासन बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. दिल्ली में किसी राजनीतिक दल का प्रदर्शन, खासकर जिसमें युवा वर्ग के लोग शामिल हों, ऐसा नहीं रहा, जिसमें स्टेशनों पर लूटपाट न हुई हो या दिल्ली में रेहड़ी-खोमचे वाले न लूटे गए हों. वामपंथी कार्यकर्ताओं के अलावा बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे के समर्थकों ने विशुद्ध गांधीवादी तरीक़ा अपनाया और कहीं पर भी एक खोमचे वालों को नहीं लूटा. बाबा रामदेव की घोषित रणनीति के अलावा छुपी रणनीति भी है. उनका और उनके सलाहकारों का यह मानना है कि कांग्रेस तो लोगों की नज़रों में बेनक़ाब हो चुकी है, अब विरोधी दलों को भी बेनक़ाब करना चाहिए, जिसके लिए उन्होंने विरोधी दलों के नेताओं को अपने मंच पर बुलाया और उनसे घोषणाएं कराईं. अब विपक्षी दलों पर ज़िम्मेदारी आ गई है कि वे काले धन एवं लोकपाल के सवाल पर लोकसभा और राज्यसभा में आवाज़ उठाएं. अगर आने वाले शीतकालीन सत्र में उक्त विपक्षी दल लोकसभा और राज्यसभा में बाबा रामदेव की मांगों के समर्थन में आवाज़ नहीं उठाते तो जनवरी में बाबा रामदेव उक्त राजनीतिक दलों को अविश्वसनीय घोषित कर देंगे. अब आपको पांचवें किरदार के बारे में बताते हैं. यह पांचवें सज्जन भारत के भूतपूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह हैं. जनरल वी के सिंह को अन्ना हजारे एवं उनके साथियों ने अपना अनशन समाप्त करने के लिए इसलिए बुलाया, क्योंकि उनका मानना है कि इस समय देश में जनरल वी के सिंह ईमानदारी के पर्याय हैं. इसके पहले जनरल वी के सिंह से यह अनुरोध किया गया था कि वह अपील करें, ताकि तेईस लोगों द्वारा की जा रही अपील को विश्वसनीयता मिल सके. जब जनरल वी के सिंह अन्ना हजारे एवं उनके साथियों का अनशन तुड़वाने के लिए पहुंचे तो पूरा जंतर-मंतर उत्साह से नारे लगाने लगा. नारे लगाने वालों में एक विशेष वर्ग भी था, जो उपस्थित मीडियाकर्मियों का था. जब जनरल वी के सिंह ने अपना भाषण शुरू किया तो सब सांस रोक कर बैठ गए और जैसे ही उन्होंने कहा कि 1991 के बाद की सभी सरकारों ने असंवैधानिक और देश के आम लोगों के हितों के विपरीत रास्ता अपनाया है, तो न केवल जंतर-मंतर, बल्कि देश में जहां भी लोग टेलीविजन पर उन्हें देख-सुन रहे थे, तालियां बजाने लगे. जनरल का पूरा भाषण एक ऐसे योद्धा का भाषण था, जो जनता के हितों के लिए जनता की सेना बनाकर लड़ाई लड़ने की घोषणा कर रहा हो. उन्हीं जनरल वी के सिंह को बाबा रामदेव ने अपने मंच पर आने का आमंत्रण भेजा, क्योंकि बाबा रामदेव का मानना है कि देश के लोगों की लड़ाई सफलतापूर्वक लड़ने और विजय हासिल करने का माद्दा जनरल वी के सिंह में सबसे ज़्यादा है. जब जनरल वी के सिंह बाबा रामदेव के मंच पर पहुंचे तो वहां उपस्थित पचास हज़ार लोग जनरल वी के सिंह के स्वागत में नारे लगाने लगे. जनरल वी के सिंह ने यहां पर किसानों, ग़रीबों एवं अल्पसंख्यकों के हितों का विस्तृत वर्णन किया और जनता से यह संकल्प कराया कि वह एक नया देश बनाने के लिए लड़ाई लड़ेगी. जनरल वी के सिंह ने जैसे ही जय जवान-जय किसान का नारा दिया, पचास हज़ार लोग जय जवान-जय किसान के नारे लगाने लगे. वी के सिंह एकमात्र ऐसी शख्सियत के रूप में उभरे, जिन्हें अन्ना का स्नेह हासिल है और वह बाबा रामदेव के भी स्नेह पात्र हैं. जनरल वी के सिंह का भाषण जिन्होंने अन्ना हजारे के मंच से सुना और जिन्होंने रामदेव के मंच से सुना, उनका कहना है कि जनरल का दोनों मंचों से दिया गया भाषण सबसे ज़्यादा सा़फ, सबसे ज़्यादा राजनीतिक और सबसे ज़्यादा लोगों में उत्साह जगाने वाला था. उनका मानना है कि भ्रष्टाचार के खिला़फ आंदोलन करने वाले सभी अग्रणी नेताओं में स़िर्फ जनरल वी के सिंह एक राजनीतिक व्यक्तित्व और दूरदर्शी नज़र आते हैं. यह सारी स्थिति कुछ सवाल खड़े करती है कि आखिर कांग्रेस या भाजपा सहित कोई भी राजनीतिक दल अब अपने बूते रैली क्यों नहीं करता और अगर उन्हें लगता है कि बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे के आंदोलन का कोई मतलब नहीं है तो उन्हें दिल्ली में दस हज़ार से लेकर एक लाख लोगों तक की कम से कम दस दिनों की रैली करनी चाहिए और जनता को बताना चाहिए कि अब उसके खोमचे नहीं लुटेंगे. दूसरा सवाल यह कि अन्ना के लोगों और बाबा रामदेव के बीच राजनीतिक मतभेद हैं, उद्देश्य को लेकर मतभेद हैं या प्रक्रिया को लेकर मतभेद हैं और ये मतभेद गहरे हैं, सतही हैं या राजनीतिक दलों को मूर्ख बनाने के लिए एक रणनीति के तहत हैं. एक प्रमुख सवाल यह भी है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने यह कैसे मान लिया कि वे अनशन करेंगे और सरकार उनकी बात मान लेगी. इसकी वजह स़िर्फ यह हो सकती है कि या तो वे सरकार के चरित्र को नहीं जानते या आंदोलन की तकनीक को नहीं जानते. अब इस अंधी गली से निकलने का रास्ता जो पहले तलाश पाएगा, वही विजयी होगा और यह देश एक विजेता का स्वागत करने के लिए तैयार बैठा है.


    Leave a Reply