श्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग पर एक कमेंट लिखा और उस कमेंट पर कांग्रेस एवं भाजपा में भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी के एक मंत्री, जो भविष्य में महत्वपूर्ण कैबिनेट मंत्री बन सकते हैं, ने कहा कि भाजपा ने अपनी हार मान ली है. मंत्री महोदय यह कहते हुए भूल गए कि उन्होंने अपनी बुद्धिमानी से लालकृष्ण आडवाणी जी के आकलन को वैधता प्रदान कर दी. उन्हें यह समझ में नहीं आया कि इसी बयान में आडवाणी जी यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस को 100 से कम सीटें मिलेंगी. महान कांग्रेस की महान बुद्धिमानी के ऐसे सबूत तलाशने की ज़रूरत अब नहीं होती, वे कहीं भी बिखरे हुए मिल जाते हैं.
भाजपा इसलिए परेशान हो गई, क्योंकि आडवाणी का बयान सा़फ कह रहा है कि प्रधानमंत्री भाजपा का नहीं होगा यानी नरेंद्र मोदी नहीं बनेंगे. भाजपा के नेताओं ने संतुलित प्रतिक्रिया दिखाई और इसे आडवाणी जी का लोकतांत्रिक अधिकार बताया, लेकिन आडवाणी जी के ब्लॉग से सबसे ज़्यादा धक्का नरेंद्र मोदी को लगा होगा. नरेंद्र मोदी को यह मालूम है कि इतना आगे बढ़ने के बाद पीछे जाना उनके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है. इस बार दिसंबर में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने खुद को देश का भावी प्रधानमंत्री बनाकर पेश करने का निर्णय किया था. वह गुजरात के लोगों से कहने वाले थे कि अभी गुजरात जिताओ, फिर देश को प्रधानमंत्री गुजरात से मिलेगा. वह यह भी कहना चाहते थे कि देश को सरदार पटेल प्रधानमंत्री के रूप में नहीं मिले, लेकिन मैं गुजरात के गौरव की तरह प्रधानमंत्री पद पर जाऊंगा.
आडवाणी के ब्लॉग ने फिलहाल नरेंद्र मोदी की इस भावी रणनीति को भोथरा कर दिया है. नरेंद्र मोदी के सामने दूसरी परेशानी केशुभाई पटेल के रूप में खड़ी हो गई है. गुजरात में पटेल समाज बहुत असर रखता है और केशुभाई पटेल इस समुदाय के सबसे बड़े एवं सबसे बुज़ुर्ग नेता हैं. उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली है. उनके साथ काशीराम राणा जुड़ गए हैं. काशीराम राणा भी पिछड़ों के बड़े नेता हैं. पर इन दोनों से ज़्यादा महत्वपूर्ण नाम, जिसे लोग नहीं जानते हैं, लाल जी पटेल का है. लाल जी पटेल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं और वह पिछले कई सालों से संघ से स़िर्फ इसलिए लड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें नरेंद्र मोदी की कार्यशैली पसंद नहीं है. लाल जी पटेल का मानना है कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात में न केवल भाजपा के सभी पुराने कार्यकर्ताओं को एक किनारे खड़ा कर दिया है, बल्कि संघ के सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को भी दृश्य से हटा दिया है. केशुभाई पटेल और काशीराम राणा की नई पार्टी के पीछे लाल जी पटेल का दिमाग़ है.
अगर भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री नहीं होगा और कांग्रेस 99 से आगे नहीं बढ़ेगी तो राजनीतिक स्थिति क्या होगी. लालकृष्ण आडवाणी देश के वरिष्ठ नेता हैं और उम्र के इस पड़ाव पर वह अपने ईमानदार आदमी को सामने रखेंगे, इसे मानना चाहिए. इस बयान से यह मतलब निकलता है कि अगर भाजपा को कांग्रेस को सत्ता से बेद़खल करना है तो उसे एक बड़ा संयुक्त मोर्चा बनाना होगा और उसका नेतृत्व किसी ग़ैर भाजपा नेता को देना होगा. ग़ैर भाजपा नेताओं में कई नाम हो सकते हैं, जिनमें पहला नाम नीतीश कुमार का, दूसरा मुलायम सिंह का, तीसरा शरद यादव का और चौथा ममता बनर्जी का हो सकता है, लेकिन ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव तो कांग्रेस के साथ हैं. कांग्रेस इस तरह की रणनीति बनाएगी, इसमें संदेह है, क्योंकि कांग्रेस की पूरी कार्यप्रणाली लोकतंत्र के दायरे से बाहर की कार्यप्रणाली है. कांग्रेस ने तो पिछले साढ़े सात साल में अपने सहयोगी दलों के साथ बातचीत करने के लिए एक समन्वय समिति तक नहीं बनाई और यह समन्वय समिति बनाई भी तब, जब शरद पवार ने कांग्रेस की नाक पर घूंसा मारा. एक छोटी पार्टी ने देश की सबसे बड़ी पार्टी को हिला दिया. ऐसा लगता है कि मुलायम सिंह यादव, ममता बनर्जी, शरद पवार एवं करुणानिधि कांग्रेस के साथ स़िर्फ तकनीकी तौर पर हैं, मानसिक तौर पर नहीं.
नई संभावनाएं जब भी पैदा होती हैं तो उनके बिखरने का खतरा भी उतना ही बड़ा होता है. देश को इस बात का भरोसा दिलाना कि हम परिवर्तन लेकर आएंगे, मुश्किल होता है. जनता को लगता है कि जाने समझे अविश्वासी बेहतर हैं, क्योंकि उनकी गड़बड़ियां उसे मालूम हैं. वह नए लोगों पर कैसे भरोसा करे, जो उसे यह भी नहीं बता पा रहे कि आखिर वे कौन से क़दम होंगे, जिन्हें वे लागू करेंगे, अगर वे सत्ता में आ गए तो.
एफडीआई के सवाल पर कांग्रेस और सहयोगी पार्टियों के भीतर एक नई जंग हो सकती है. यह विषय तय करेगा कि कांग्रेस के अलावा जितनी पार्टियां हैं, उन्हें कितनी चिंता इस देश के 70 प्रतिशत लोगों के रोज़गार की है. यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने जनता के बीच आंदोलन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. ये आंदोलन लोगों में इस बात की भावना भर रहे हैं कि ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियां उनके हित के खिला़फ हैं. यह भावना बढ़ना खतरनाक हो सकता है. हालांकि कांग्रेस एवं भाजपा सहित सारे राजनीतिक दल यह मानते हैं कि बाबा रामदेव या अन्ना हजारे का आंदोलन कोई असर नहीं डालेगा, पर हक़ीक़त इसके विपरीत है. जिसे साइलेंट मेजोरिटी कहते हैं, जो तटस्थ मतदाता हैं, वे अन्ना हजारे और बाबा रामदेव द्वारा उठाए गए सवालों पर सोचने लगेंगे. जो नए मतदाता बने हैं, उन्होंने ज़ोर-शोर से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने का निर्णय ले लिया है, इसीलिए अब वोटिंग लगभग 70 प्रतिशत हो रही है. ग़रीब अपनी रोटी-रोज़ी को लेकर ज़्यादा जागरूक हो गया है, इसीलिए यह घड़ी न केवल कांग्रेस, बल्कि भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों के लिए सोचने की घड़ी है.
दो साल पहले यह माना जाता था कि देश में यथास्थिति के खिला़फ, भ्रष्टाचार के खिला़फ, अपराध के खिला़फ और सरकार एवं विपक्ष की निष्क्रियता के खिला़फ कोई आवाज़ नहीं उठ सकती. जब चारों ओर अंधेरा था, निराशा फैली हुई थी, उसी समय अचानक अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव ने आवाज़ उठाई. इन आवाज़ों का विरोध राजनीतिक दलों ने किया और उस विरोध ने जनता को सक्रिय कर दिया. जनता की इस सक्रियता ने नई संभावनाएं पैदा कर दी हैं. नई संभावनाएं जब भी पैदा होती हैं तो उनके बिखरने का खतरा भी उतना ही बड़ा होता है. देश को इस बात का भरोसा दिलाना कि हम परिवर्तन लेकर आएंगे, मुश्किल होता है. जनता को लगता है कि जाने समझे अविश्वासी बेहतर हैं, क्योंकि उनकी गड़बड़ियां उसे मालूम हैं. वह नए लोगों पर कैसे भरोसा करे, जो उसे यह भी नहीं बता पा रहे कि आखिर वे कौन से क़दम होंगे, जिन्हें वे लागू करेंगे, अगर वे सत्ता में आ गए तो. यही इस स्थिति का महत्वपूर्ण बिंदु है. लोग साधु स्वभाव पर कई बार भरोसा करके धोखा खा चुके हैं, इसलिए वे अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव पर भरोसा करने से पहले कई बार सोचेंगे. लेकिन भरोसा करने की बुनियादी शर्त एक ही है कि अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव जनता को यह बताएं कि कौन सी बीस चीज़ें फौरन लागू होनी चाहिए और वे बीस मुद्दे ऐसे हों, जिनका रिश्ता जनता की भूख, रोज़ी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास और भ्रष्टाचार मुक्ति से हो.
आडवाणी जी के ब्लॉग का विश्लेषण करने से ये बातें निकलती हैं और आडवाणी जी को इस बात के लिए बधाई देनी चाहिए कि उन्होंने उम्र के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर सत्य का दर्शन करना शुरू किया और सत्य का दर्शन कराना शुरू किया.