देश अगले कुछ दिनों तक संकट में अभी और रहेगा. संकट में इसलिए रहेगा, क्योंकि हमारी महान सरकार संकट सुलझाना कम जानती है, संकट पैदा करना ज़्यादा जानती है. नियम नए सिरे से लिखने की कोशिश हो रही है. जब नियम नए सिरे से लिखे जाएं और पहले से बने उन नियमों की अनदेखी की जाए, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने मान्य किया है, तब लगता है कि संकट जानबूझ कर प्रकट किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के कम से कम सात फैसले ऐसे हैं, जो यह बताते हैं कि जब भी कभी जन्मतिथि का संकट हो या उस पर बहस हो या कन्फ्यूजन हो कि किसी आदमी की जन्मतिथि क्या हो. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सा़फ-सा़फ कहता है कि ऐसी स्थिति में हाईस्कूल का प्रमाणपत्र आ़खिरी सबूत, आखिरी प्रमाण माना जाए. जो जन्मतिथि हाईस्कूल के प्रमाणपत्र में लिखी गई है, वही उस व्यक्ति की जन्मतिथि मानी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अब भारत की सरकार बदल रही है. भारत की सरकार यह फैसला कर रही है कि किसी भी फॉर्म में, जैसे यूपीएससी के फॉर्म में अपने हाथ से किसी ने अपनी जो जन्मतिथि लिख दी, किसी क्लर्क ने जो जन्मतिथि लिख दी या किसी ने ग़लती से जो जन्मतिथि लिख दी, वही जन्मतिथि सही है, लेकिन उन्हीं दिनों आए हुए हाईस्कूल के प्रमाणपत्र में जो जन्मतिथि लिखी है, वह सही नहीं है. ऐसा सरकार किसी और के साथ नहीं कर रही, बल्कि भारत के थल सेनाध्यक्ष के साथ कर रही है. सरकार सांसदों की बात, मीडिया की बात या सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निकले हुए संकेत को मानना ही नहीं चाहती. सरकार ने यह फैसला कर लिया है कि वह किसी भी स्थिति में जनरल वी के सिंह, जो भारत के थल सेनाध्यक्ष हैं, की जन्मतिथि वही मानेगी जो यूपीएससी के फॉर्म में लिखी हुई है, न कि वह, जो उनके हाईस्कूल प्रमाणपत्र में लिखी हुई है.
यह सारी कहानी 2006 में शुरू हुई, जब जनरल जे जे सिंह भारत के थल सेनाध्यक्ष थे. जनरल जे जे सिंह आज राज्यपाल हैं. उन्होंने उस समय अंदाज़ा लगाया कि चाहे जन्मतिथि 1950 हो या 1951, जनरल वी के सिंह भारत के थल सेनाध्यक्ष बनेंगे ही. अगर वी के सिंह थल सेनाध्यक्ष बनते हैं और जन्मतिथि 1951 रहती है तो एक वह शख्स, जो जनरल जे जे सिंह के समाज का है, सिख समाज का, भारत का थल सेनाध्यक्ष नहीं बन पाएगा. इसीलिए उन्होंने काग़ज़ खंगाले और उन काग़ज़ों में हाथ से लिखे हुए यूपीएससी के फॉर्म को निकाला, जिसे बाद में खुद यूपीएससी ने बदल दिया. उन्होंने अपने यहां यह नोट लिखा कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 1950 मानी जाए, न कि 1951. सेना का सिपाही जो सीमा पर है या सेना का वह सिपाही जो बैरक में है, वह हतप्रभ है और उसके मन में एक संदेह पैदा हो रहा है कि क्या उसका जनरल अपनी जन्मतिथि को लेकर झूठ बोल रहा है? क्या उसका जनरल जिसके ऊपर अभी तक कोई दाग़ नहीं है, उसने स़िर्फ 10 महीने का एक्सटेंशन पाने के लिए झूठ बोला या झूठे दावे कर रहा है? यह संदेह भारतीय सेना के एक गौरवशाली सिपाही, जो भारत का थल सेनाध्यक्ष बना, के ऊपर एक दाग़ है, धब्बा है. इस धब्बे को सा़फ करने की ज़िम्मेदारी मुख्यत: सरकार की होनी चाहिए, क्योंकि सरकार का दायित्व है कि वह अपने उन लोगों के हितों की रक्षा करे, जो सरकार नाम की संस्था की नींव होते हैं.
भारत का थल सेनाध्यक्ष या तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्ष ऐसे ही खंभे हैं, जिनके ऊपर सरकार टिकी होती है, लेकिन सरकार खुद अपने ही खंभे या अपने ही आधार की बेइज़्ज़ती करने या उसकी शान को धुंधलाने में लग गई है. क्या रास्ता है? एक रास्ता है कि जनरल वी के सिंह इस दाग को लिए हुए चुपचाप सेना से रिटायर हो जाएं. दूसरा रास्ता यह है कि जनरल अपने इस दाग़ को धोने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में जाएं. जहां तक हमें पता है, भारत के थल सेनाध्यक्ष सबके पास अपना रिप्रेजेंटेशन भेज चुके हैं. सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में मनमोहन सिंह की सरकार ने यह फैसला लिया है कि जनरल की किसी भी बात को न सुना जाए और उन्हें ज़बरन अगले साल 31 मई को रिटायर कर दिया जाए तथा उसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह को भारत का थल सेनाध्यक्ष बनाया जाए. जनरल बिक्रम सिंह कैसे भी जनरल हों या उन पर जो भी आरोप लग रहे हों, सांसद उनके खिला़फ चिट्ठी लिख रहे हों, उससे हमारा यहां कोई मतलब नहीं है. हमारा मतलब स़िर्फ इतना है कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि के विवाद का निपटारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की रोशनी में होना चाहिए या नहीं और 2006 तक इस मसले को क्यों नहीं उठाया गया? 2006 में ही इस मसले को क्यों उठाया जनरल जे जे सिंह ने ? जनरल दीपक कपूर ने इस मसले का हल क्यों नहीं निकाला? दोनों किस इंटरेस्ट की वजह से इस मसले को टालते रहे, क्योंकि उनकी यह हिम्मत तो नहीं थी कि वे आ़खिरी फैसला कर सकें. उन्होंने इस फैसले को टाल दिया.
लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह के ऊपर एक आरोप यह भी है कि उनकी बहू पाकिस्तानी मूल की है और इन दिनों शायद वह अमेरिका की नागरिक हो गई है. अमेरिका का नागरिक तो फाई भी था. वही फाई, जिसके सेमिनार में हमारे देश के बड़े-बड़े पत्रकार जाने लगे थे. अभी एक महीना नहीं बीता है, जब अमेरिका ने फाई को गिरफ्तार किया और इस आरोप में कि वह आईएसआई से पैसा लेकर हिंदुस्तान के लोगों को कश्मीर के सवाल पर बोलने के लिए उकसाता था और हमारे बुद्धिजीवी हिंदुस्तान के हितों के खिला़फ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बोलते थे.
भारत की थलसेना गौरवशाली सेना है. भारत की थलसेना देश की सीमाओं की रखवाली करती है. भारत की थलसेना किसी भी आपदा में देश के लोगों की मदद करती है. वह इस देश का गौरव है. उस सेना के एक जनरल की जन्मतिथि का विवाद खुद पैदा करना, उसके बाद उसे हवा देना और खबरें लीक करना, कुछ ऐसा है, मानों हम अपने आप अपनी आंख फोड़ रहे है या अपनी नाक काट रहे हैं. हम नहीं जानते, भारत सरकार ऐसा क्यों कर रही है. वे कौन सी ताक़तें हैं, जो 40 हज़ार करोड़ के होने वाले सौदे के ऊपर नज़रें लगाए हुए हैं? भारत की सेना को इस सामान को खरीदना है. मौजूदा जनरल इसमें शायद पड़ना नहीं चाहते. अगर जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 1950 रहती है तो जनरल बिक्रम सिंह नए सेनाध्यक्ष होंगे और इस सामान को खरीदेंगे और यदि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 1951 रहती है तो लेफ्टिनेंट जनरल के टी परनायक नए सेनाध्यक्ष होंगे और तब वह इस सामान को खरीदेंगे. लेफ्टिनेंट जनरल के टी परनायक जनरल वी के सिंह की तरह निहायत ईमानदार और सा़फ-शफ़्फा़फ इंसान हैं. हिंदुस्तान की सेना में इन दोनों जनरलों को लोग सैल्यूट करते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय हथियार मा़फिया के लिए शायद यह सबसे ब़ड़ी डिसक्वालीफिकेशन है. इसलिए उसका इंटरेस्ट है कि जनरल वी के सिंह या तो अपने घर के दरवाजे उसके लिए खोल दें या जल्दी से जल्दी इस्ती़फा देकर रिटायर हो जाएं, ताकि लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह को इस पद पर आने का मौका मिल सके.
हम लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह के खिला़फ नहीं हैं, लेकिन हमें इतनी चिंता ज़रूर है कि हिंदुस्तान की सेना में अब ऐसा कोई आदमी चीफ नहीं बनना चाहिए, जिसके ऊपर आरोप लगे हुए हों. संसद के एक सदस्य ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह के ऊपर आरोप लगाए हैं. इन आरोपों का कोई जवाब अभी तक प्रधानमंत्री ने नहीं दिया है. लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह के ऊपर एक आरोप यह भी है कि उनकी बहू पाकिस्तानी मूल की है और इन दिनों शायद वह अमेरिका की नागरिक हो गई है. अमेरिका का नागरिक तो फाई भी था. वही फाई, जिसके सेमिनार में हमारे देश के बड़े-बड़े पत्रकार जाने लगे थे. अभी एक महीना नहीं बीता है, जब अमेरिका ने फाई को गिरफ्तार किया और इस आरोप में कि वह आईएसआई से पैसा लेकर हिंदुस्तान के लोगों को कश्मीर के सवाल पर बोलने के लिए उकसाता था और हमारे बुद्धिजीवी हिंदुस्तान के हितों के खिला़फ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बोलते थे. प्रधानमंत्री क्यों इन आरोपों के जवाब नहीं दे रहे, यह तो वही जानें, लेकिन देश नज़र गड़ाए हुए है कि अगर प्रधानमंत्री एक ऐसे जनरल को सेना का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, जिसके ऊपर दाग़ है और जिसकी स़फाई खुद प्रधानमंत्री नहीं दे रहे हैं तो हमें लगता है कि इस देश में आने वाले दिन थोड़ी ज़्यादा परेशानी के होने वाले हैं.