संघ नहीं चाहता भाजपा मज़बूत हो

9-360x216 (3)यह हमेशा विवाद का विषय रहा है कि विधानसभा का चुनाव मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करके लड़ा जाए या चुनाव के बाद मुख्यमंत्री चुना जाए. ठीक उसी तरह, जैसे लोकसभा चुनाव में कुछ पार्टियां प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करके लड़ती हैं, कुछ पार्टियां ऐसा नहीं करती हैं. 2004 में भाजपा ने आडवाणी जी को प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग कहकर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस ने किसी को भी अपना उम्मीदवार नहीं बनाया था. आडवाणी जी प्रधानमंत्री चुने नहीं जा सके और कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को अपना प्रधानमंत्री बना दिया. अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए तो स़िर्फ बसपा के बारे में सा़फ था कि अगर वह चुनाव जीती तो मुख्यमंत्री मायावती होंगी. सपा और भाजपा के बारे में यह तय नहीं था कि वह किसे मुख्यमंत्री बनाएंगी. समाजवादी पार्टी के बारे में तो कमोबेश कहा जा सकता था कि अगर वह जीती तो मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बन सकते हैं, लेकिन भाजपा में तो किसी को यह पता नहीं था कि आखिर चुनाव लड़ा किसके नेतृत्व में जा रहा है. फिर मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा तो बहुत दूर की बात थी.

लखनऊ में भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक हुई. वहां पर चार कोनों में चार बैनर लगे थे, राजनाथ सिंह, लाल जी टंडन, विनय कटियार और कलराज मिश्र. इन्हीं बैनरों के नीचे हर नेता का गुट अलग-अलग जगहों पर बैठा था और ऐसा लग रहा था जैसे एक बड़े पेड़ के नीचे कुकुरमुत्तों की जमात बैठी हो. भाजपा के नेताओं के दिमाग़ का दिवाला निकल गया लगता है. न उनकी कोई सोच है, न उनकी अब कार्यकर्ताओं पर पकड़ है. अगर आज अटल बिहारी वाजपेयी स्वस्थ होते और वह चुनाव लड़ने का फैसला करते तो उनकी जीत हो ही जाती, ऐसा नहीं कहा जा सकता. लालकृष्ण आडवाणी अगर चुनाव लड़ें तो नहीं कहा जा सकता कि वह जीत ही जाएंगे. जैसा संघ इशारा दे रहा है, अगर उसने फैसला कर लिया कि 75 वर्ष से ऊपर के लोग चुनाव नहीं लड़ेंगे तो लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के सामने रिटायर हो जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है. संघ के एक प्रमुख कार्यकर्ता ने मुझसे कहा कि वोट विचारधारा से मिलते हैं, न कि नरेंद्र मोदी की वजह से. अगर नरेंद्र मोदी आज रिटायर हो जाएं तो भी गुजरात में उतने ही वोट मिलेंगे, जितने उनके रहने पर मिलते.

अ़फसोस की बात यह है कि आज भाजपा में कोई भी ऐसा आदमी नहीं है, जो उसे एक ब्रांड की तरह खड़ा कर सके, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संघ नहीं चाहता कि भाजपा के पैर मज़बूत हों. इसके पीछे एक कारण है कि संघ ने अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा नामक एक टूल क्रिएट किया था, लेकिन अब यह टूल संघ की विचारधारा बढ़ाने की बजाय संघ को ही काट रहा है. आज श्री रामलाल संघ के प्रचारक हैं और भाजपा के संगठन मंत्री हैं. अपनी स्थिति बचाए रखने और मज़बूत बनाए रखने के लिए उन्होंने हरियाणा सहित कई जगहों पर फोन करके कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि संजय जोशी को न बुलाया जाए और अगर वह आएं तो उनका विरोध किया जाए. ऐसे फोन उन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में किए. इसीलिए संजय जोशी जब गुड़गांव में एक रैली में अपनी गिरफ्तारी देने जा रहे थे तो भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उन्हें रैली में भाग लेने और गिरफ्तारी देने से रोक दिया तथा कहा कि अब वह भाजपा के प्राथमिक सदस्य नहीं हैं, इसलिए गिरफ्तारी नहीं दे सकते. इससे दो संकेत मिलते हैं कि या तो संजय जोशी करामाती व्यक्तित्व के मालिक हैं और उनकी क्षमता करिश्माई है या फिर भाजपा आम आदमियों को खुद में शामिल ही नहीं करना चाहती. सच्चाई तो यह है कि संजय जोशी ने कभी भी भाजपा से इस्ती़फा नहीं दिया. उन्होंने नितिन गडकरी के कहने पर अपनी ज़िम्मेदारियों से त्यागपत्र दिया था. वह आज भी पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं. रामलाल ने क्यों हरियाणा में फोन करके कहा कि संजय जोशी को आंदोलन में मत शामिल होने दो, आखिर ऐसी स्थिति क्यों आ गई, रामलाल संजय जोशी से क्यों डर गए? शायद इस डर के पीछे एक कारण यह हो सकता है कि रामलाल को लगता हो कि कहीं संजय जोशी को नितिन गडकरी या आरएसएस संगठन मंत्री न बना दें. इसका मतलब रामलाल जी को अपने अस्तित्व की चिंता थी. संघ के इस वरिष्ठ कार्यकर्ता ने मुझसे बातचीत में कहा कि वास्तविकता तो यह है कि न किसी को विचारधारा की चिंता है और न पार्टी संगठन की. उन्होंने बड़े दु:ख के साथ कहा कि इतना बड़ा संगठन सुरेश सोनी और मदनदास देवी चला रहे हैं, लेकिन वे अपना फीडबैक या फैसले का आधार चपरासियों और ड्राइवरों की बातों को बनाते हैं और उनसे अपने लोगों की जासूसी कराते हैं. ऐसे लोग संगठन क्या चलाएंगे.

अ़फसोस की बात यह है कि आज भाजपा में कोई भी ऐसा आदमी नहीं है, जो उसे एक ब्रांड की तरह खड़ा कर सके, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संघ नहीं चाहता कि भाजपा के पैर मज़बूत हों. इसके पीछे एक कारण है कि संघ ने अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा नामक एक टूल क्रिएट किया था, लेकिन अब यह टूल संघ की विचारधारा बढ़ाने की बजाय संघ को ही काट रहा है. आज श्री रामलाल संघ के प्रचारक हैं और भाजपा के संगठन मंत्री हैं. अपनी स्थिति बचाए रखने और मज़बूत बनाए रखने के लिए उन्होंने हरियाणा सहित कई जगहों पर फोन करके कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि संजय जोशी को न बुलाया जाए और अगर वह आएं तो उनका विरोध किया जाए.

संघ की समझ की बात करें. पिछले बीस सालों से भाजपा का संगठन संघ की ओर से मदनदास देवी और सुरेश सोनी चला रहे हैं और इन्हीं 20 सालों में भाजपा की साख लगातार कम हुई है. भाजपा के झगड़े भी सामने आए हैं, गुटबाज़ी खूब फली-फूली है. संघ के वरिष्ठ नेताओं को चाहिए कि वे इन दोनों को हटाएं और दूसरे लोगों को पार्टी का कार्यभार सौंपें, लेकिन सरसंघ चालक और संघ के दूसरे वरिष्ठ लोगों को इस बात की चिंता ही नहीं है. उन्हें लगता है कि भाजपा अगर उनकी बात नहीं सुन रही है तो वह भाड़ में जाए. जब फिर से लोकसभा में 2 की संख्या रह जाएगी, तब फिर उसे मजबूरन संघ के पास वापस आना पड़ेगा. इसलिए न तो भाजपा नेताओं को चिंता है कि उनके बीच का एक नेता प्रधानमंत्री पद का दावेदार बने और वे उसका साथ दें और न अब संघ इसकी चिंता कर रहा है. अब तो भाजपा में भी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं बचा, जो उसे चिंता करने के लिए मजबूर करे. जो ऐसा कर सकते थे, जैसे गोविंदाचार्य और संजय जोशी, उन्हें योजनापूर्वक भाजपा से बाहर भेज दिया गया. संघ के बारे में एक बात समझने वाली है. संघ फौजी तैयार करता है. संघ न कमांडर तैयार करता है, न कर्नल तैयार करता है और न जनरल तैयार करता है. इसलिए भाजपा में प्रधानमंत्री कौन हो, इसकी चिंता किसी को नहीं है. संघ के लोगों का मानना है कि अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा कोई सर्वमान्य व्यक्तित्व भाजपा विकसित नहीं कर पाई, जिसे प्रधानमंत्री बनने लायक़ माना जा सके. अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में संघ का मानना है कि उनके हाथ की लकीरों में प्रधानमंत्री बनना लिखा था और दूसरा यह कि कभी जवाहर लाल नेहरू ने कह दिया था कि अटल बिहारी वाजपेयी भविष्य में प्रधानमंत्री बनेंगे, इसीलिए वह प्रधानमंत्री बन गए.

भाजपा की टॉप लीडरशिप की बात करें. ये सरकार की हर बात का विरोध करते हैं, लेकिन अंत में सरकार की गोद में जाकर बैठ जाते हैं. यशवंत सिन्हा हर दूसरे दिन बयान देते हैं कि वह एफडीआई का विरोध करेंगे, लेकिन शायद उन्हें खुद नहीं मालूम कि उन्हें अगली बार लोकसभा का टिकट मिलेगा भी या नहीं. जो भाजपा फौजियों को तैयार करती है, वह जनरल बाहर से इंपोर्ट करती है. पिछली सरकार का उदाहरण हमारे सामने है. उसमें प्रमुख मंत्रालय जिनके पास थे, उनमें अरुण शौरी, राम जेठमलानी, सुषमा स्वराज, जसवंत सिंह एवं यशवंत सिन्हा, ये पांचों भाजपा से नहीं हैं. संघ के लोगों का कहना है कि इन पांचों ने भाजपा का इस्तेमाल किया है. संघ के लोगों का कहना है कि जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया, फिर उन्हें पार्टी में वापस ले लिया गया. जिन्हें पार्टी ने कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी, उन्होंने विभिन्न पार्टियों से खुद के राष्ट्रपति होने की संभावनाएं तलाश लीं. अरुण शौरी के ऊपर भाजपा का सत्यानाश करने की ज़िम्मेदारी संघ के लोग डालते हैं. उनका कहना है कि जैसे ही भाजपा कमज़ोर और सत्ता से बाहर हुई, अरुण शौरी ने भाजपा को खूब गाली दी. शायद इसलिए कि कांग्रेस उन्हें अपनी गोद में बैठा लेगी. संघ के लोगों का स्पष्ट मानना है कि भाजपा राज करने के लिए पैदा नहीं हुई. भाजपा के पास कोई लीडर नहीं है. भाजपा चाहे जितना शोर-शराबा करे, लेकिन संघ जो उसका गुरु है, वह चाहता ही नहीं कि भाजपा कहीं पहुंचे, क्योंकि उसे पता है कि उसके लोग कैसे हैं, वे नेता हो ही नहीं सकते. संघ को यह पता है कि सत्ता में कांग्रेस ही आने वाली है. इसके पीछे संघ का एक विश्लेषण है. संघ कहता है कि राहुल गांधी भले ही मूर्ख या गधे हों, सोनिया गांधी भले ही इटली की हों और उन पर कुछ भी आरोप लगते रहें, लेकिन जनता को यह पता है कि वह जब बोलेंगी तो 100 लोग उनकी बात पार्टी में सुनेंगे ही. भाजपा में तो यही पता नहीं कि लीडर कौन है. उदाहरण के रूप में संघ के लोग संजय जोशी का नाम लेते हैं कि उन्होंने त्यागपत्र तो दिया प्रभारी के पद से, लेकिन पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा कर दी कि उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है. इतनी बड़ी जानी-बूझी ग़लती करने के बाद भी प्रकाश जावड़ेकर प्रवक्ता बने हुए हैं, इसे संघ के लोग भाजपा में चल रही ओछी हरकतों का नमूना बताते हैं. संघ के लोगों को इस बात का दु:ख है कि भाजपा के सारे बड़े नेता हमेशा कांग्रेस का विरोध करते हैं, लेकिन निर्णय लेने के समय कांग्रेस के पक्ष में खड़े हो जाते हैं. सारे पिछले फैसले उदाहरण के रूप में हमें बताए गए. आम जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है. भाजपा विपक्ष के लायक़ है ही नहीं और यह तब तक विपक्ष के लायक़ नहीं बन सकती, जब तक संघ के क़ब्ज़े में नहीं चली जाती है. संघ के लोगों का मानना है कि डॉक्टर न हो और नीम-हकीम हो तो जान का खतरा ज़्यादा है. इस समय भाजपा में कोई डॉक्टर नहीं है और संघ यह चाहता नहीं है कि वहां कोई डॉक्टर हो. इस समय भाजपा में उसका अपना कोई एक नेता नहीं है और संघ यह चाहता नहीं है.

भगवान बुद्ध के समय तेज़ी से एक वाक्य चला था, संघम्‌ शरणम्‌ गच्छामि. उसी तरह जब भाजपा के सारे नेता अपनी असफलताओं से परेशान हो जाएंगे, तब वे संघ की शरण में जाएंगे और उस समय संघ निर्णायक उलटफेर करेगा. संघ को फौजी चाहिए, लीडर नहीं चाहिए. इसके बाद संघ अपने विश्वसनीय 5-7 लोगों को भाजपा की कमान सौंपेगा. इसके बाद दोबारा योजना बनेगी और शायद तब भाजपा दोबारा सत्ता में आ पाए. भाजपा संघ के माध्यम से तभी सत्ता में आ पाएगी, जब वह संघ की पूरी विचारधारा को मानेगी और संघ की विशुद्ध और संपूर्ण विचारधारा को मानने का मतलब है कि भाजपा कभी सत्ता में नहीं आ सकती है.

भगवान बुद्ध के समय तेज़ी से एक वाक्य चला था, संघम्‌ शरणम्‌ गच्छामि. उसी तरह जब भाजपा के सारे नेता अपनी असफलताओं से परेशान हो जाएंगे, तब वे संघ की शरण में जाएंगे और उस समय संघ निर्णायक उलटफेर करेगा. संघ को फौजी चाहिए, लीडर नहीं चाहिए. इसके बाद संघ अपने विश्वसनीय 5-7 लोगों को भाजपा की कमान सौंपेगा. इसके बाद दोबारा योजना बनेगी और शायद तब भाजपा दोबारा सत्ता में आ पाए. भाजपा संघ के माध्यम से तभी सत्ता में आ पाएगी, जब वह संघ की पूरी विचारधारा को मानेगी और संघ की विशुद्ध और संपूर्ण विचारधारा को मानने का मतलब है कि भाजपा कभी सत्ता में नहीं आ सकती है. इसकी वजह है कि आप देश की 20 प्रतिशत जनता को कुएं में नहीं फेंक सकते. 20 प्रतिशत मुसलमानों को कोने में खड़ा करेंगे या कुएं में फेंकेंगे? यह भी नहीं कहा जा सकता कि सारे के सारे मुसलमान टेरेरिस्ट हैं. यह एक इत्ते़फाक है कि ज़्यादातर टेरेरिस्ट मुसलमान हैं और यह इत्ते़फाक भी इसलिए है कि मुसलमानों को लगता है कि उनके साथ ग़लत हुआ है. जिस दिन मुस्लिम क़ौम के सामने यह सा़फ हो जाएगा कि उसके साथ अब ग़लत नहीं होगा, उस दिन मुसलमान भी इस देश की वैसी ही रक्षा करेंगे, जैसे बाक़ी लोग करते हैं. कैप्टन अब्दुल हमीद ने अपने शरीर पर बम बांधकर पाकिस्तान के खिला़फ अपनी शहादत दी, जो सारे हिंदुस्तानियों के लिए एक गर्व की बात है और यह अब्दुल हमीद की ओर से पाकिस्तान नामक मुस्लिम राष्ट्र को जवाब था. यह बात तो 1965 की है, लेकिन पिछले कारगिल युद्ध में बहुत से मुसलमान हिंदुओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े और उन्होंने अपनी जान दे दी. इसलिए न मुसलमान टेरेरिस्ट होते हैं और न पूरी क़ौम बदनाम होती है. इस तरह की बातें करने से देश नहीं चलता और संकीर्ण मानसिकता से कुछ होता नहीं. यह भाजपा और संघ की वैचारिक सीमा है. इसलिए संघ या तो अपनी मानसिकता बदले या अपना आइडियोलॉजिकल पैटर्न बदले, अन्यथा दीपक के तले हमेशा अंधेरा होता है. संघ कितनी भी रोशनी कर ले, उसके नीचे पलने-बढ़ने वाले लोग हमेशा अंधेरे में ही रहेंगे और अंधेरे में रहने वाले लोग हमेशा अच्छे लोगों को बाहर फेंक देते हैं, अब चाहे वह संजय जोशी हों, गोविंदाचार्य हों, मदनलाल खुराना हों या कोई और. चाणक्य वेश्याओं को चंद्रगुप्त के पास भेजता था, ताकि चंद्रगुप्त को ज्ञान मिल सके. लेकिन ये लोग तो किसी वेश्या के नज़दीक भी नहीं गए और फिर भी चपरासियों और ड्राइवरों के कहने पर इन पर ओछे आरोप लगाकर इन्हें दरकिनार कर दिया गया. इस तरह से देश नहीं चलता. संघ के कुछ ईमानदार नेताओं ने मुझसे सा़फ कहा, दे आर नॉट फिट टू रूल द कंट्री.


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