भारत-पाकिस्तान के बीच सेमीफाइनल का मैच वर्ल्ड कप का सबसे बड़ा मैच रहा. मीडिया ने इस मैच से पहले ऐसा हाइप बनाया, जिससे यह लग रहा था कि यह कोई क्रिकेट मैच नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हो रहा है. मीडिया की भूमिका सबसे अहम रही. टीवी एंकरों ने इसे क्रिकेट मैच की बजाय देश की प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर रख दिया. मीडिया ने भारत सरकार के एक फैसले की वजह से ऐसा बर्ताव किया. भारत-पाकिस्तान के बीच सेमीफाइनल होगा, यह खबर मिलते ही प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय इससे फायदा उठाने की तैयारी में जुट गए. क्रिकेट डिप्लोमेसी का पासा फेंका गया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसु़फ रज़ा गिलानी को मैच का न्योता भेज दिया गया. इस दौरान गृहसचिव स्तर की बैठक भी हो गई. दोनों प्रधानमंत्रियों ने मिलजुल कर मैच का आनंद उठाया. जब तक प्रधानमंत्री गिलानी भारत में रहे, सबकी नज़र मैच पर टिकी रही, भारत-पाकिस्तान वार्ता में मिली सफलता और असफलता पर पर्दा गिरा रहा.
भारत-पाकिस्तान के रिश्ते क्या क्रिकेट मैच के मोहताज हैं. क्या क्रिकेट मैच की वजह से ही दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों में बातचीत होगी. अगर नहीं तो यह पहल पहले क्यों नहीं हुई. वैसे इस सरकार ने जो किया वह कोई नई बात नहीं है. भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में क्रिकेट डिप्लोमेसी का यह एक नया अध्याय जुड़ा है. क्रिकेट डिप्लोमेसी की शुरुआत फरवरी 1987 में हुई, जब राजीव गांधी ने भारत-पाकिस्तान की टेंशन के बीच जनरल ज़िया उल हक़ को जयपुर के क्रिकेट मैच को देखने का न्योता दिया था. ज़िया उल हक़ मैच देखकर पाकिस्तान लौट गए. इसके बाद पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकी गतिविधियां शुरू कर दीं. 2004 में का़फी दिनों से बंद भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बाद फ्रेंडशिप सीरीज को अंजाम दिया गया. पिछली बार 2005 में मनमोहन सिंह ने जनरल परवेज़ मुशर्ऱफ को बुलाया था. इंडिया मैच हार गया था. इस बार फिर मनमोहन सिंह ने क्रिकेट के बहाने भारत-पाकिस्तान वार्ता की शुरुआत की. यह मनमोहन सिंह का अपना फैसला था. क्रिकेट को डिप्लोमेसी का एक औज़ार बनाने का प्रधानमंत्री का मन था. भारत-पाकिस्तान रिश्ते मुंबई धमाके के बाद से बिगड़े थे. मुंबई धमाकों में पाकिस्तान के अधिकारियों और लोगों का हाथ है, ऐसा जांच से साबित हो गया था. भारत उन अपराधियों को पकड़ने और पाकिस्तान की धरती से आतंकी गतिविधियों को ख़त्म करने की अपील करता रहा है, लेकिन पाकिस्तान ने भारत की एक भी मांग को पूरा नहीं किया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लगा कि पाक प्रधानमंत्री को आमंत्रित करके उन्हें गृहसचिव स्तर की बैठक में कम से कम पाकिस्तान से कुछ आश्वासन तो ज़रूर मिल ही जाएंगे.
भारत-पाकिस्तान के रिश्ते क्या क्रिकेट मैच के मोहताज है. क्या क्रिकेट मैच की वजह से ही दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों में बातचीत होगी. अगर नहीं तो यह पहल पहले क्यों नहीं हुई. वैसे इस सरकार ने जो किया वह कोई नई बात नहीं है. भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में क्रिकेट डिप्लोमेसी का यह एक नया अध्याय जुड़ा है. क्रिकेट डिप्लोमेसी की शुरुआत फरवरी 1987 में हुई, जब राजीव गांधी ने भारत-पाकिस्तान की टेंशन के बीच जनरल ज़िया उल हक़ को जयपुर के क्रिकेट मैच को देखने का न्योता दिया था.
24 फ़रवरी को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने पाकिस्तान के साथ होने वाली बातचीत की रूपरेखा तैयार की थी. इस मीटिंग में यह तय हुआ था कि भारत पाकिस्तान के सामने सीमा पार से चलने वाले आतंकवाद, मुंबई धमाके पर कार्रवाई और नक़ली नोट का मामला उठाएगा. इसके अलावा सीमापार चल रहे आंतकी कैंप और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड की आवाज़ के सैंपल के बारे में बातचीत होगी. इस मीटिंग में इस बात पर भी चर्चा हुई कि पाकिस्तान समझौता एक्सप्रेस धमाके का मामला उठा सकता है.
उम्मीद यह थी कि इस मीटिंग से कुछ ठोस बातें निकलेंगी, लेकिन दोनों देशों की बातचीत का नतीजा आशाजनक नहीं निकला. हर बार की तरह बातचीत हुई और एक ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी किया गया. बयान के मुताबिक़ दोनों देशों के बीच अब एक हॉटलाइन चलाई जाएगी, जिसका मक़सद आतंकवाद से जुड़ी कोई भी नई जानकारी जल्द से जल्द बांटना होगा. दोनों देशों ने आतंकवाद के हर स्वरूप को ख़त्म करने का अपना वादा दोहराया और कहा कि इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा दिलाना बेहद ज़रूरी है. 2008 के मुंबई हमलों की तहक़ीक़ात से जुड़ी जानकारी बांटने के लिए दोनों देश एक-दूसरे के न्यायिक जांच आयोगों का स्वागत करेंगे. इस बातचीत में यह भी तय हुआ कि भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) मुंबई हमलों की जांच में एक-दूसरे का सहयोग जारी रखेंगी. इस वार्ता में भारत ने समझौता एक्सप्रेस धमाके की जांच से जुड़ी जानकारी पाकिस्तान को दी और भारत ने कहा कि अदालत में रिपोर्ट दायर हो जाने के बाद ताज़ा जानकारी भी बांटी जाएगी. दोनों देशों ने यह फै़सला किया कि अब गृह सचिव स्तरीय वार्ता सालाना की जगह, हर छह महीने में होगी. वहीं यह भी तय किया गया कि पाकिस्तान के गृह मंत्री भारत आएंगे. हालांकि इसकी तारी़ख की घोषणा अभी नहीं की गई है.
जो बातें सामने आईं उससे यही लगता है कि साझा बयान में पाकिस्तान की तऱफ से कुछ नहीं दिया गया है, मसलन पाकिस्तान से जो कमीशन आने वाला है उसका एक टाइम फ्रेम दिया गया है. इसके मुताबिक़ पाकिस्तान से आने वाला कमीशन अगले चार से पांच सप्ताह के बीच तय होगा, लेकिन भारत से जो कमीशन जाएगा उसके बारे में कोई टाइम फ्रेम नहीं है, कहा गया कि यह राजनायिकों द्वारा तैयार किया जाएगा. पाकिस्तान ने यह भी नहीं कहा कि जरार शाह, लक्की और अबुल कामा का टेप दिया जाएगा. हैरानी की बात यह है कि रहमान मलिक ने जून 2010 में ही गृहमंत्री पी चिदंबरम से यह वादा किया था कि मुंबई के गुनाहगारों की टेप की हुई आवाज़ भारत को सौंप दी जाएगी. पाकिस्तान ने जून 2010 में जो वादा किया, भारत-पाकिस्तान मैच के एक दिन पहले हुई कैबिनेट सचिव की बैठक में उसे ही फिर से दोहरा दिया. सवाल यह है कि अब तक वह टेप क्यों नहीं मिला. अब तक हम पाकिस्तान से आतंकियों की आवाज़ का सैंपल क्यों नहीं ले सके, जबकि पाकिस्तान में छिपे आतंकियों के टेप सबसे महत्वपूर्ण सबूत हैं. पाकिस्तान की समस्या यह है कि अगर वह ये टेप भारत को देता है तो उसे इन आतंकवादियों के ख़िला़फ मामले दर्ज कराने होंगे. मुंबई धमाके के मास्टरमाइंड पाकिस्तान में छिपे हैं. भारत सरकार यह भी नहीं पूछ सकी कि उन आतंकियों के ख़िला़फ पाकिस्तान में जो तहक़ीक़ात हो रही है, वह कहां तक पहुंची, इस मामले की स्थिति क्या है. तो क्या यह मान लिया जाए कि सरकार ने पाकिस्तान में छिपे मुंबई के धमाके में शामिल आतंकवादियों को सज़ा दिलाने में ढिलाई कर दी है. सरकार की गुनाहगारों को पकड़ने की इच्छाशक्ति कम हो गई है. पाकिस्तान ने यह भी वादा नहीं किया कि पाकिस्तान में जो आतंकी कैंप चल रहे हैं, उन्हें बंद किया जाएगा. साथ ही नक़ली नोटों से हिंदुस्तान जूझ रहा है. सारे सबूत मौजूद हैं कि भारत में नक़ली नोट पाकिस्तान से आते हैं. फिर भी इस बातचीत में पाकिस्तान ने यह आश्वासन तक नहीं दिया कि नक़ली नोटों के मामले में वह कोई ठोस क़दम उठाएगा.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्रालय पहले भी पाकिस्तान के झांसे में आ चुके हैं. यह कहानी जुलाई 2009 शर्मल शे़ख की है, जब भारत ने मुंबई हमले के ज़िम्मेदार आतंकियों के बारे में पाकिस्तान से कार्रवाई करने को कहा. तब पाकिस्तान ने यह आश्वासन दिया कि मुंबई के गुनाहगार पाकिस्तान के गुनाहगार हैं. धमाके के लिए ज़िम्मेदार आतंकियों को किसी भी क़ीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा. पाकिस्तान ने यहां तक कहा कि ज़रूरत पड़ी तो वह अपने क़ानून में बदलाव करके भी आतंकियों को सज़ा दिलाएगा. भारत सरकार पाकिस्तान के झांसे में आ गई. इसके बाद मनमोहन सिंह ने बातचीत शुरू करने का मन बनाया और बलूचिस्तान को भी साझा बयान में शामिल करने की अनुमति दी. पाकिस्तान की अब यह रट है कि शर्मल श़ेख में भारत ने बहुत सारे वादे किए थे, जिससे अब वह मुकर गया है. असलियत यह है कि भारत जितनी पाकिस्तान को राहत देता है, पाकिस्तान उतना ही उसका अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता है. अब सवाल यह है कि पाकिस्तान की बातों पर कितना भरोसा किया जाए.
दरअसल भारत-पाकिस्तान बातचीत की सफलता की पहली शर्त यह है कि पाकिस्तान के नेता इतने शक्तिशाली हों कि वे बातचीत में जो वादे करें उसे पूरा कर सकें. वर्तमान प्रधानमंत्री यूसु़फ रज़ा गिलानी और राष्ट्रपति आस़िफ अली ज़रदारी दोनों ही अपनी-अपनी परेशानियों से घिरे हैं. दोनों ही कमज़ोर हैं, इसलिए भारत को उनसे किसी तरह की रियायत की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. अगर वे भारत के साथ अपने वादे निभाएंगे तो पाकिस्तान में उनके लिए राजनीतिक अस्तित्व का सवाल खड़ा हो जाएगा. मुशर्ऱफ जिस समय बातचीत कर रहे थे, उस समय वह इस स्थिति में थे, लेकिन पहले वकीलों के आंदोलन और बाद में लाल मस्जिद की घटना से उनकी स्थिति कमज़ोर होती चली गई. भारत-पाकिस्तान वार्ता भी पटरी से उतर गई. युसु़फ रज़ा गिलानी की पाकिस्तान में क्या स्थिति है, इसका जायज़ा भारत सरकार को पहले ही लेना था. क्या वह कोई बड़ा फै़सला ले सकते हैं, इस पर पहले विचार कर लेना था, तब निमंत्रण भेजना था. क्रिकेट को बहाना बनाकर बातचीत को सफल करने की कोशिश भारत सरकार के लिए महंगी पड़ी. क्रिकेट का सेमीफाइनल तो भारत जीत गया, लेकिन क्रिकेट डिप्लोमेसी में भारत की हार हुई है.