हमने बाबा रामदेव से कई सवाल किए. हमें बाबा रामदेव से कोई शिकायत नहीं है. शिकायत इसलिए नहीं है कि देश में कोई भी आदमी कुछ भी व्यापार करने के लिए स्वतंत्र है, चाहे वह व्यापार कारों का हो, चाहे वह व्यापार मिठाई बनाने का हो, चाहे वह व्यापार योग सिखाने का हो या चाहे वह व्यापार दवाइयां बनाने का हो. बहुत सारे लोग व्यापार कर रहे हैं, लेकिन जब आप अपने दायरे को छोड़कर बाहर निकलते हैं और मुल्क के दायरे में आते हैं तो फिर आपको उन सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए, जिन सवालों का रिश्ता देश के भविष्य से है. यह देश वैसे ही बहुत सारे नेताओं के भ्रामक भाषणों, भ्रामक सपनों और भ्रामक वायदों की वजह से परेशानी में है. यह देश एक तरीक़े से समस्याओं के ज्वालामुखी के ऊपर बैठा हुआ है. ज्वालामुखी फटने के लिए तैयार है, क्योंकि इस देश में न तो किसान सुखी हैं और न नौजवान सुखी हैं, न दलित सुखी हैं, न अल्पसंख्यक सुखी हैं, न उच्च मध्यम वर्ग के लोग ख़ुश हैं और न मध्यम वर्ग के लोग ख़ुश हैं.
अगर अमीर ख़ुश होते, तब भी माना जाता, लेकिन दुर्भाग्य तो यही है कि इस देश में अमीर भी सुखी नहीं हैं, क्योंकि अमीरों के बीच में जिस तरह की बाज़ार की प्रतियोगिता इस सरकार ने शुरू कर दी है, वह कुछ अमीरों को छोड़कर बाक़ी सबके ख़िला़फ है. समान अवसर वहां भी नहीं हैं. इसलिए अब जब कोई भी ऐसा आदमी आता है, जो कहता है कि हम देश के बारे में बात करते हैं, हम देश का स्वास्थ्य सुधारना चाहते हैं, देश को समस्याओं के जाल से निकालना चाहते हैं तो वह सवालों का अधिकारी हो जाता है. उसे यह नहीं मानना चाहिए कि कोई भी उससे सवाल नहीं पूछ सकता है. आप ख़रीद सकते हैं लोगों को, चाहे वे टेलीविज़न के लोग हों या प्रिंट के, जो आपसे सवाल नहीं पूछेंगे. आप ऐसे चैनलों के संपादकों को ख़रीद सकते हैं, जो वही सवाल पूछें, जो सवाल आप पुछवाना चाहते हैं. वे वैसे सवाल पूछ सकते हैं आपसे, जिनसे आपकी पर्सनैलिटी बड़ी हो. लेकिन जो देश से ज़रा भी मोहब्बत करते हैं, प्यार करते हैं, ऐसे लोग आपसे सवाल करेंगे और ये लोग उनको रिप्रजेंट करते हैं, उनका प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इस देश में सरकार बनाते हैं. इसलिए बाबा रामदेव से हमने सवाल किए और उन सवालों का जवाब अभी तक बाबा रामदेव से नहीं आया है.
बाबा रामदेव कहते हैं कि वह बर्मा से लेकर अ़फग़ानिस्तान तक एक हिंदुस्तान बनाएंगे. यह सुनने में बड़ा अच्छा लगता है और शायद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी यही कहता है और बाबा रामदेव भी यही कहते हैं. लेकिन क्या बर्मा से लेकर अ़फग़ानिस्तान तक एक हिंदुस्तान बन सकता है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब चाहिए. आप अगर देश की बात नहीं करते, हम फिर दोहराते हैं, हम कोई सवाल आपसे नहीं पूछते. लेकिन चूंकि आप देश की बात करते हैं, इसलिए सवालों का जवाब देना आपका कर्तव्य है.
हम एक बात और सा़फ करें. जब देश की बात कोई करता है तो उसे सबसे पहले इस देश को समझना होगा. देश को समझने का मतलब, देश की समस्याओं को समझना होगा और समस्याओं को समझने का मतलब है कि आज जो भी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, चाहे वह आतंकवाद हो, चाहे बेरोज़गारी हो, चाहे भ्रष्टाचार हो, चाहे महंगाई हो, चाहे शिक्षा का ध्वस्त हुआ ताना-बाना हो, चाहे बर्बाद हुआ स्वास्थ्य का नेटवर्क हो, इन सबके कारणों को समझने वाला आदमी ही इस देश के बारे में बात करने का अधिकारी है. इन सवालों को समझने वाला आदमी अगर ये सवाल ही न समझ पाए तो वह इनका हल क्या निकालेगा. इसलिए सबसे पहला सवाल उस व्यक्ति से होता है, जो देश के बारे में बात करता है कि क्या आप इन सवालों को समझते हैं. क्या आप समाज के विकास और समाज के अंतर्विरोध को समझते हैं. क्या आप समाज के विभिन्न वर्गों में पैदा हुए तनावों को समझते हैं. अगर समझते हैं तो इनका हल क्या है. क्योंकि यह मुल्क समस्याओं के ज्वालामुखी के ऊपर बैठा हुआ है. अब कोई भी बेवकूफी इस मुल्क को तबाही और टूटने की तऱफ ले जाएगी, क्योंकि हम सेचुरेशन प्वाइंट पर पहुंच गए हैं. इसलिए बाबा रामदेव जब सारे देश में घूमकर कहते हैं कि हम भ्रष्टाचार के ख़िला़फ हैं, हम इस देश में जो सरकारें चल रही हैं उनके ख़िला़फ हैं और हम देश का स्वास्थ्य ठीक करेंगे तो बाबा से सवाल करना बहुत ज़रूरी हो जाता है. हम अख़बार हैं, हम कोई भी स्टोरी या रिपोर्ट लिखने से पहले जब आपसे संपर्क करते हैं और आपके यहां से जवाब ऐसा आता है और आपके लोग जानते हैं कि उन्होंने क्यों ऐसा जवाब दिया है और यह जवाब किसी और को नहीं दिया है, हमें दिया है, चौथी दुनिया को दिया है. उन्होंने सवालों को अनदेखा किया है. उन्होंने कहा कि आप कर क्या लेंगे. आप नक्कारखाने में तूती हैं. सारे अख़बार वालों को हमने ख़रीद रखा है, सारे टेलीविज़न चैनलों को हमने ख़रीद रखा है. उन पर हम कूदते-फांदते हैं, पेट फुलाते हैं, उसका पैसा देते हैं. कौन हमारे ख़िला़फ स्टोरी करेगा. नहीं, लोग हैं, जो आपसे इसलिए सवाल करेंगे, क्योंकि वे इस देश से प्यार करते हैं, मोहब्बत करते हैं, इस देश को और बर्बाद होते नहीं देखना चाहते. इसलिए बाबा रामदेव का यह फर्ज़ है कि देश से जुड़े हुए जितने भी सवाल हैं, वह उनका जवाब दें.
बाबा रामदेव का एक महत्व है, एक स्थान है. उन्होंने इस देश में बड़ा काम किया. उन्होंने योग के प्रति लोगों की आस्था जाग्रत की. ऐसी आस्था जाग्रत की कि जितने भी बीमार क़िस्म के लोग थे, वे सभी बाबा रामदेव के भक्त हो गए, क्योंकि बाबा रामदेव ने उन्हें मोटिवेट किया कि वे टहलें और थोड़ी एक्सरसाइज़ करें. कुछ दवाइयां भी उनकी काम में आईं. हालांकि वृंदा करात ने उनके ऊपर आरोप लगाए, कई और लोग भी आरोप लगा रहे हैं, पर मैं उसमें नहीं जाना चाहता. मेरा कहना है कि वह काम ठीक है. आपने भरोसा अर्जित किया योग सिखा करके सारी दुनिया में, आपने उस योग को सिखाने की भी एक मार्केटिंग की है और सफल मार्केटिंग की, क्योंकि इतनी बड़ी मार्केटिंग अब तक दुनिया में जितने भी योग सिखाने वाले हिंदुस्तान के लोग गए, उन्होंने नहीं की. उन्होंने दुनिया में तो लोगों को योग सिखा करके पैसा कमाया, पर आपने दुनिया के साथ-साथ पूरे हिंदुस्तान में भी इसकी चेतना जाग्रत करके 60 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का साम्राज्य खड़ा कर लिया. कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि यह आपके योग के प्रति लोगों के पागलपन और आकर्षण का प्रमाण है. जो लोग आपके साथ शामिल हुए शायद 60 हज़ार करोड़ की संपत्ति इकट्ठा करने में, जिन लोगों ने भी अपना हाथ बढ़ाया हाथ मिलाया बाबा रामदेव के साथ, वे सारे लोग इस देश के किसान नहीं हैं, इस देश के मज़दूर नहीं हैं, इस देश के बेरोज़गार नहीं हैं, इस देश के दलित नहीं हैं, इस देश के अल्पसंख्यक नहीं हैं. वे लोग उच्च मध्यम वर्ग के लोग हैं. रामलीला मैदान में जितने लोग आए थे बाबा रामदेव की रैली में, वे सारे लोग भविष्य के सांसद थे. वह संख्या अस्सी हज़ार या एक लाख थी या पांच लाख, मैं इस बहस में नहीं जाता, लेकिन जितने भी लोग थे, भविष्य के प्रधानमंत्री को छोड़ करके क्योंकि उसके लिए बाबा रामदेव का नाम लिखा हुआ है, बाकी सारे पद इन्हीं लोगों के बीच में थे. ये सब वे हैं, जिनके ऊपर इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स लागू होता है. इनका पैसा विदेश में भले ही न हो, लेकिन जिनका विदेश में पैसा है, उनके साथ इनमें से अधिकांश का रिश्ता है.
मैं स़िर्फ बाबा रामदेव से यह पूछना चाहता हूं कि बाबा रामदेव, आप अगर कोई आर्थिक नीति बनाते हैं तो जो लोग आपके साथ हैं, इनको ले करके आप उनका पालन कैसे कर पाएंगे. यह इमोशनल इश्यू है विदेश से काला धन वापस लाने का. लेकिन उस काले धन से सौ गुना धन तो यहां पर है, हिंदुस्तान की इकोनॉमी में उसका चलन है. वह पैसा तो वहां दबा हुआ है, जिसको ला करके यहां का काम होगा, लेकिन जिस पैसे का यहां चलन है और जिसको चलाने वाले आपके दाएं-बाएं-आसपास देखे जा रहे हैं, उसके बारे में आप कुछ क्यों नहीं कहते. यह सवाल हम स़िर्फ इसलिए पूछ रहे हैं, क्योंकि आप हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री पद की ओर देख रहे हैं. आप कहेंगे कि आप प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते तो जो कोई भी होशियार आदमी होगा, यही कहेगा. आपके लोग तो कह रहे हैं कि बाबा प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. और सवाल प्रधानमंत्री पद का भी नहीं है, सवाल है इस देश में उन नीतियों के लागू होने का, जिनका सीधा फायदा देश के 80 प्रतिशत लोगों को हो.
बाबा रामदेव कहते हैं कि वह बर्मा से लेकर अ़फग़ानिस्तान तक एक हिंदुस्तान बनाएंगे. यह सुनने में बड़ा अच्छा लगता है और शायद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी यही कहता है और बाबा रामदेव भी यही कहते हैं. लेकिन क्या बर्मा से लेकर अ़फग़ानिस्तान तक एक हिंदुस्तान बन सकता है? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब चाहिए. आप अगर देश की बात नहीं करते, हम फिर दोहराते हैं, हम कोई सवाल आपसे नहीं पूछते. लेकिन चूंकि आप देश की बात करते हैं, इसलिए सवालों का जवाब देना आपका कर्तव्य है. आप जवाब न दें, आपकी मर्जी, लेकिन हम सवाल आपसे पूछते रहेंगे. एक बात आखिर में बता दें कि जो जिस चीज़ को जानता है, उसे वही काम करना चाहिए. उदाहरण के लिए, अगर हम घोषणा कर दें कि दारा सिंह कथक नृत्य करेंगे. बड़ी भीड़ होगी, लोग ताली बजाएंगे, दारा सिंह भी लटकते-मटकते थोड़ा कुछ शरीर को हिलाएंगे-डुलाएंगे और होगा कि ओह यह कथक नृत्य है, इस तरह का कथक नृत्य है, लेकिन वह कथक नृत्य नहीं होगा. उसी तरीक़े से अगर हम बिरजू महाराज को कहें कि आप दारा सिंह से कुश्ती लड़िए तो लोग बहुत आएंगे देखने के लिए, लेकिन वह कुश्ती कुश्ती होगी क्या? दारा सिंह डांस नहीं कर सकते और बिरजू महाराज कुश्ती नहीं लड़ सकते. बाबा रामदेव क्या कर सकते हैं, वह बाबा जी तय करें. लेकिन कहावतें हज़ारों साल के अनुभव से बनती हैं. ऐसी ही एक कहावत है, बिच्छू का मंत्र न जाने, सांप के बिल में हाथ डाले.
सांप के बिल में हाथ ज़रूर डालिए, लेकिन सांप का मंत्र जान लीजिए. इस मुल्क को बनाने में आप अगर कोई रोल प्ले करना चाहते हैं तो पहले इस मुल्क को एक बार समझ लीजिए. यह हमारी हर उस आदमी से विनम्र अपील है, जो इस देश की सत्ता को अपने हाथ में लेना चाहता है. 60 साल से ज़्यादा आज़ादी को आए हो चुका है. 60 साल की उम्र छोटी उम्र नहीं होती. अब लोग बहुत कुछ समझने लगे हैं. इसलिए किसी को भ्रम में नहीं रहना चाहिए और जो भ्रम में रहता है, उसका हश्र बहुत बुरा होता है. हम हर उस आदमी से, बाबा रामदेव से भी अनुरोध करेंगे कि सवालों का जवाब दें और सवालों का जवाब देने के साथ-साथ इस देश को समझने का (समझाने का नहीं), यहां की समस्याओं की जड़ जानने का प्रयास अवश्य करें.